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पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का निधन ..

मंगलवार की सुबह करीब सात बजे उन्हेांने अंतिम सांस ली. अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित जॉर्ज फर्नांडिस वाजपेयी सरकार में देश के रक्षामंत्री थे. आखिरी बार वह अगस्त 2009 से जुलाई 2010 के बीच तक राज्यसभा सांसद रहे थे

- 88 वर्ष की अवस्था में ली अंतिम साँस.

- क्रांतिकारी नेता के रुप में देश करेगा याद.



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: लंबे समय से बीमार चल रहे भारत के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का निधन 88 वर्ष की अवस्था में दिल्ली के एक अस्पताल में हो गया. मंगलवार की सुबह करीब सात बजे उन्हेांने अंतिम सांस ली. अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित जॉर्ज फर्नांडिस वाजपेयी सरकार में देश के रक्षामंत्री थे. आखिरी बार वह अगस्त 2009 से जुलाई 2010 के बीच तक राज्यसभा सांसद रहे थे. फर्नांडिस ने रक्षा मंत्रालय के अलावा उद्योग मंत्रालय, रेलवे, संचार जैसे कई अहम विभागों को भी संभाल चुके थे.  

जीवन वृत्त:

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म मैंगलोर में तीन जून 1930 को हुआ था. उन्होंने लीला कबीर से 21 जुलार्इ, 1971 में विवाह किया था. वर्ष 1967 से 2004 तक वह नौ बार लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे. सांसद के रूप में उनका आखिरी कार्यकाल अगस्त 2009 और जुलाई 2010 के बीच राज्यसभा सांसद के रूप में था. जॉर्ज फर्नांडिस ने संघवादी, कृषिविद्, राजनीतिक कार्यकर्ता और पत्रकार रहे हैं. जॉर्ज फर्नांडिस ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स में भी किसी फायरब्रांड नेता से कम नहीं थे. अपने जीवन में उन्होंने मजदूरों के हक की लड़ाई भी खूब लड़ी. ईसाई परिवार में जन्मे फर्नांडिस, संसद में कभी अंग्रेजी में नहीं बोले. उनकी हिंदी, मराठी और कन्नड भाषाओं पर अच्छी पकड़ रही है. 

आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए बन गये थे 'खुशवंत:

आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज फर्नांडिस पगड़ी पहन कर और दाढ़ी रख कर सिख का भेष धारण कर लिया था. हालांकि, गिरफ्तारी के बाद तिहाड़ जेल में कैदियों को वह गीता के श्लोक भी सुनाते थे. फर्नांडिस के साथ जेल में रहे विजय नारायण के मुताबिक, "पुलिस हमें ढूंढ रही थी. हम ना सिर्फ छिप रहे थे, बल्कि अपना काम भी कर रहे थे. गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज ने पगड़ी और दाढ़ी के साथ एक सिख का भेष धारण किया था. उन्होंने बाल बढ़ा लिये थे. वह मशहूर लेखक के नाम पर खुद को ‘खुशवंत सिंह' कहा करते थे." फर्नांडिस के साथ नारायण और अन्य लोगों को 10 जून, 1976 को कोलकाता में गिरफ्तार किया गया था. कुख्यात बड़ौदा डायनामाइट मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया था. इस मामले में उन पर सरकार का तख्तापलट करने के लिए सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी मुकदमा चलाया गया था. नारायण के मुताबिक, ‘‘सेंट पॉल्स चर्च में जार्ज के पास एक टाइपराइटर, एक साइक्लोस्टाइल मशीन थी. वह इसी से पत्र लिखते थे, जिसे मैं विभिन्न स्टेशनों पर रेलवे मेल सर्विस के काउंटरों पर डालने जाया करता था. मैंने पुलिस से बचने के लिए एक बनारसी मुस्लिम बुनकर का वेश धारण किया था. हम भले ही छिप रहे थे, लेकिन निष्क्रिय नहीं थे. जार्ज को 10 जून की रात को भारतीय वायुसेना के एक कार्गो विमान में दिल्ली ले जाया गया, मुझे पुलिस हिरासत में रखा गया और करीब एक पखवाड़े तक कोलकाता में पुलिस के खुफिया ब्यूरो द्वारा मुझसे पूछताछ की गयी. बाद में हम सभी को दिल्ली के तिहाड़ जेल में डाल दिया गया और मुकदमा तीस हजारी कोर्ट में चला.













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