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Buxar Top News: लालू ने युवाओं का दमन किया मगर नितीश ने एक पीढ़ी को ही बर्बाद किया | - अमित |



बक्सर टॉप न्यूज़,बक्सर: अखंड भारत के सबसे पुराने और वैश्विक महत्व वाले तीन विश्वविद्यालयों में से दो-दो विश्वविद्यालय देने वाले बिहार की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था देख तरस आती है। अपने आप को बिहार की आवाम का मसीहा बताने वाले बिहार के सभी प्रमुख सरकार / नेताओं ने अपने स्तर से युवाओं के भविष्य को कुचला है। बीते 25 वर्षों के पठन-पाठन पर अगर नजर डालें तो एक बात स्पष्ट होती है कि श्री लालू प्रसाद की सरकार ने तो युवाओं के 15 वर्षों का दमन किया लेकिन श्री नितीश कुमार ने तो एक पीढ़ी को ही बर्बाद करने का कार्य किया। तस्वीर साफ करना चाहूँगा कि श्री लालू प्रसाद के सरकार के समय से ही शिक्षकों की कमी झेल रहे विद्यालय तथा शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, नाम-मात्र शिक्षकों की भर्ती कर अपने दायित्वों से मुँह मोड़ लिया गया और रही-सही कसर श्री नितीश कुमार ने पूरी कर दी। नितीश कुमार ने तो “quality of education” को “quantities of education” में तब्दील कर दिया। महज 1500 रुपए मासिक मानदेय से विद्यालयों में अंधाधुंध शिक्षकों की भर्ती शुरू कर दी जो न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था का मज़ाक था वरन अकुशल मजदूर के मजदूरी से भी कम। और जब लगभग सम्पूर्ण बिहार की शिक्षा व्यवस्था इनलोगों के हाथ में हो तो आप खुद सोच सकते हैं (शतप्रतिशत शिक्षकों के संबंध में मेरी राय ऐसी नहीं है लेकिन अधिकांश या फिर कहें 90प्रतिशत के बारे में तो है ही)।


वर्तमान में चुनावी नजाकत को समझते हुये इन नियोजित शिक्षकों द्वारा पठन-पाठन बंद कर सामान-पद सामान-वेतन हेतु आंदोलन चलाया जा रहा है, मेरी कहीं से भी ऐसी नियति नहीं है कि शिक्षकों को उनका उचित हक न मिले बल्कि मैं तो बस इतना जानना चाह रहा हूँ कि उन गरीब छात्र-छात्राओं को किस बात की सजा दी जा रही है। शिक्षण कार्य एक ऐसा पेशा है जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती इस बात को सरकार तथा शिक्षकों को समझना चाहिए। छात्र-छात्राओं के भविष्य के कीमत पर पठन-पाठन ठप करने को कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। सरकार ने आपाधापी में वैश्विक मदद पाने हेतु कम खर्च में अकुशल शिक्षक नियुक्त कर शिक्षक छात्र अनुपात तो कुछ हद तक सही कर लिया लेकिन अब वही अनुपात सरकार के सामने आर्थिक बोझ बन खड़ा है। एक साथ लगभग 5 लाख अकुशल शिक्षकों को वेतनमान देना बिहार के आर्थिक व्यवस्था को तबाह करने के लिए काफी है।
शिक्षा से जुड़ी तमाम प्रक्रियाओं का केंद्र-बिंदु होते हुए शिक्षकगण बच्चों के भविष्य निर्माण में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। अगर एक शिक्षक उत्साह के साथ बच्चों को सीखने-सिखाने में रूचि लेता है और समाज तथा अभिभावकों के साथ मिल कर उनकी उन्नति के लिए प्रयास करता है तो वह अकेले अपने दम पर बुनियादी सुविधाओं के नहीं होते हुए भी बड़ा परिवर्तन ला सकता है। परन्तु, शिक्षकों को अपने काम में प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी क्षमता निर्माण का काम निरंतर चलता रहे। बिहार में बेहतर शिक्षक उम्दा प्रशिक्षण के अनुभव से महरूम हैं। अतः, शिक्षण-कौशल के आधुनिक तौर-तरीकों से अंजान यहां के शिक्षक बच्चों को रटे-रटाए पुराने तरीकों से ही पढ़ाते हैं। आज दुनिया भर में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं। रटने और विषय-वस्तु को घोंट कर पीने के बजाय उसे समझने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जा रहा है। बच्चों को सोचने, समझने, तर्क और वितर्क करने, विश्लेषण करने, आदि जैसे कौशलों से संवारने की ज़रूरत है। इस ओर बदलाव के लिए न केवल प्रशिक्षण कार्य को ठीक करना पड़ेगा बल्कि शिक्षकों के चयन प्रक्रिया में भी उचित बदलाव
लाना होगा।



नोट:- हो सकता है मेरी टिप्पणी अधिकांश शिक्षकों को नागवार लगे लेकिन ये हकीकत है बीते वर्षों में जो शिक्षकों की नियुक्ति हुई है उनमें अधिकांश योग्य नहीं हैं फिर भी अगर किन्ही की भावना आहत हुई हो तो उसके लिए मैं खेद प्रकट करता हूं।

अमित राय, आरटीआई एक्टिविस्ट एवं युवा समाजसेवी, बिहार


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