Buxar Top News: चाय पर चर्चा: न्यायधर्म का पालन करने वाले राजा पर लगे आरोप को सही नहीं मानते हैं चौबे जी ..
प्रजा अपना कर्तव्य समझ राजा का यथोचित सम्मान करती है और राजा भी अपना धर्म समझ उस सम्मान को सहर्ष स्वीकार करते हैं.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: न्याय का मंदिर आजकल चर्चा में है चर्चा का कारण हाथों में न्यायडंड लिए न्यायधर्म का पालन करने वाले राजा स्वयं है. कहा जा रहा है कि राजा के न्याय में कहीं चूक हो गई है. इसी बीच शुक्रवार की सुबह न्यायालय के मुख्य द्वार के सामने चौबे जी के चाय दुकान पर बैठ चाय की चुस्कियों के साथ चर्चाएं शुरु हुई. चाय के साथ हो रही इस चर्चा के केंद्र बिंदु में आज भी राजा ही रहे. बातचीत के क्रम में चौबे जी ने राजा को बड़ा ही दयालु बताया और कहा कि वे तो सदैव ही न्यायधर्म का पालन करते हैं. फिर उनके न्याय को लेकर सवाल क्यों?
दरअसल चौबे जी का राजा के प्रति यह सहानुभूति पूर्ण रवैया इसलिए था क्योंकि चौबे जी का सामना प्रतिदिन राजा से होता है. राजा के आचार-विचार तथा व्यवहार से चौबे जी पूर्णरूपेण परिचित हैं. न्याय का डंड थामे राजा प्रतिदिन सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक के दौरान सपत्निक चौबे जी के चाय दुकान पर पहुंचते हैं चाय पीते हैं और फिर मॉर्निंग वॉक पूरा करने निकल जाते हैं. अब चूँकि न्याय के मंदिर में लोगों को न्याय प्रदान करने वाले राजा स्वयं ही चौबे जी के सामने होते हैं ऐसे में चौबे जी अपना कर्तव्य बखूबी निभाते हैं. वह कभी राजा से चाय के पैसों की मांग नहीं करते हैं और राजा भी बखूबी अपने धर्म का निर्वहन करते हुए कभी भी चाय के पैसे देने की इच्छा नहीं रखते हैं.
चाय पीने के बाद राजा का मॉर्निंग वॉक पुनः शुरु हो जाता है. हालांकि, मॉर्निंग वॉक का कोई निर्धारित रुट तो नहीं होता है लेकिन, चौबे जी के चाय की दुकान किसी भी रुट के मध्य जरुर आती है और राजा के चाय पीने का यह सिलसिला निरंतर जारी रहता है.
इसी क्रम में एक दिन ऐसा वाकया सामने आया जिसने राजा और चौबे जी दोनों को धर्म संकट में डाल दिया. दरअसल चौबे जी की चाय दुकान की बोहनी नहीं हुई थी और न्यायधर्म का पालन करने वाले राजा को भी चाय के पैसे नहीं देने थे ऐसे में चतुर चौबे जी एक रास्ता निकाला, उन्होंने अपने बाएं हाथ से राजा के दाएं हाथ में 10 रुपए का नोट थमाया और फिर राजा के दाएं हाथ से अपने दाएं हाथ में वह दुबारा ले लिया. इस प्रकार चौबे जी की बोहनी भी हो गई राजा के धर्म का भी पालन हो गया.
बताया जाता है कि दिन भर न्याय के दरबार की गतिविधियों में व्यस्त रहने वाले राजा नियमित रूप से प्रजा के संपर्क में रहते हैं. न्याय की आस लेकर उनके दरबार में आने वाली प्रजा से उनके घरों तक जाकर मिलते हैं. उनका मॉर्निंग वॉक भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है. जिस क्षेत्र में पीड़ित प्रजा का निवास होता है, मॉर्निंग वॉक के रूट का निर्धारण उसी हिसाब से होता है. कभी यह रूट पांडेयपट्टी से चक्रहँसी तक होता है तो कभी यह रूट गोलंबर तक भी विस्तारित हो जाता है. राजा प्रजा के दरवाजे तक पहुंच कर उसके कष्टों के निवारण के साथ-साथ उसे न्याय देने का भरोसा देते हैं यहां भी प्रजा अपना कर्तव्य समझ राजा का यथोचित सम्मान करती है और राजा भी अपना धर्म समझ उस सम्मान को सहर्ष स्वीकार करते हैं.
बताया जाता है कि राजा बहुत न्याय प्रिय है अपनी न्यायप्रियता का उदाहरण वे सदैव प्रस्तुत करते रहते हैं. हालांकि, कभी-कभी यह लोगों को ऐसा भ्रम हो जाता है कि राजा का न्याय सही नहीं है. लेकिन, वस्तुतः ऐसा होता नहीं है. बहरहाल आज भी चौबे जी के चेहरे पर प्रतिदिन अपना कर्तव्य निभाने की खुशी स्पष्ट देखी जा सकती है दूसरी तरफ राजा भी अपने न्यायधर्म के पालन में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.
चौबे जी की चाय दुकान एक द्विज की कायांतरण की कथा मात्र नहीं है अपितु यह उन द्विजों की भी कथा के साक्षी है जो सामने न्याय के दरबार में न्याय का दंड थामे है, कहते है कि न्याय का दण्ड से राजा भी अछूता नहीं रहता लेकिन चौबे की चाय के बिकने के साथ दण्ड, न्याय और द्विज सब बिक जाते हैं...
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