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याद किए गए देश के लिए सर्वस्व त्यागने वाले पंडित शिव विलास मिश्र ..

1947 में जब देश आजाद हुआ तो वे बीमार थे, गांधी मैदान पटना के झंडोतोलन समारोह में भाग लेने के लिए बीमार होने और डॉक्टरों के मना करने के बावजूद हॉस्पिटल से गांधी मैदान पटना गये. वापस लौटने के बाद तबीयत अधिक बिगड़ जानेके कारण पटना में ही इलाज के दौरान  26 सितंबर 1947 को उनकी मौत हो गयी थी.

- स्वतंत्रता सेनानी ने देश के लिए त्याग दिया घर-बार.
- केसठ निवासी पंडित शिव विलास मिश्र को आजादी के बाद भी नहीं मिला उचित सम्मान.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: डुमराँव रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक सभागार में नगर के युवाओं एवं समाजसेवियों द्वारा स्वतंत्रता सेनानी पंडित शिव विलास मिश्र का श्रद्धांजलि सभा आयोजित किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत स्वतंत्रता सेनानी पंडित शिव विलास मिश्र के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया. कार्यक्रम के उपरांत एक सभा का आयोजन किया गया. मौके पर  सामाजिक कार्यकर्ता ओम प्रकाश भुवन, कमलाकांत सिंह यादव, राजीव रंजन सिंह, मिथिलेश राय संटू मित्रा, रोहित सिंह, धनंजय पांडेय समेत कई लोगों ने सभा को संबोधित किया. वक्ताओं ने कहा कि, आजादी के दीवाने स्वतंत्रता सेनानी पंडित शिव विलास मिश्र का जीवन युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई है. जिनके बदौलत हम भारत में स्वतंत्रता पूर्वक रहते हैं लेकिन, उनको आज समाज भूल गया है, यह प्रश्न दिल को कुरेदने वाला है. 

वक्ताओं ने कहा कि, पत्नी और अपने तीन दुधमुंहे बच्चों को प्रकृति के भरोसे छोड़कर सैकड़ों नौजवानों की टीम के साथ अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबवानेवाले डुमरांव अनुमंडल के केसठ गांव निवासी पंडित शिव विलास मिश्र की यादें अब गुम होती जारी रही हैं. देश को आजादी दिलाने के लिये अपना सर्वस्व बलिदान करने वालों में स्वतंत्रता सेनानी स्व. मिश्र का जन्म 1891 ई0 को केसठ गांव में हीं हुआ था. विङंबना है कि, ऐसे वीर सपूतों व इन आजादी के दिवानों के घरों में आज भी धुप अंधेरा पसरा हुआ है और इनके परिजनों की सुधि लेने वालों में ना तो सरकार है और ना ही समाज जिसके लिए इन शहीदों ने अपनी कुर्बानी दी. इनके पुत्र स्व. विजय शंकर मिश्र बताते थे कि, पिता पंडित शिव विलास मिश्र ने अपना आधा जीवन तो हजारीबाग जेल में ही बिताया, यही नहीं ब्रितानी सरकार इनके घर का निर्माण भी नहीं होने दिया. घर के चौखट किवाड़ भी बार-बार उखाड़े जाते रहे. इनका पुस्तैनी घर आज भी अंग्रेजों के जुल्मों की गवाही देते हैं.

प्रशासनिक उपेक्षा के कारण स्व. मिश्र का घर भी आज जमीन के नीचे आधा दब चुका है. जहां आजादी के नग़मे गाये गये और स्वतंत्र भारत का नया इतिहास लिखा गया. इनके परिजनों को कोई मलाल नहीं है. फिर भी दुख भरे लहजे में बताते हैं कि, कभी भी राजनीतिक दलों के नेताओं और ना ही सरकार या उसके अधिकारियों ने इनके परिवार की कभी सुधि ली. जिन्होने अपने देश की आजादी के लिए अपना घर बार त्याग कर आजादी के लड़ाई में अंग्रजो से लोहा लिया था. जिन्होंने अपने दुधमुंहे बच्चों व पत्नी को छोड़ कर देश को आजाद कराने की भुमिका निभाने के लिए चुपके से घर से निकल पड़े थे, ऐसे महान वीर सपुतों के सम्मान में ना तो प्रखंड मुख्यालय पर आदमकद प्रतिमा स्थापित हो सका और ना ही इन सभी के याद में आज तक शिलापट्ट लगाया गया जबकि, देश को आजाद हुए 70 वर्ष बीत गये. फिर भी इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को आज तक सरकारी सहायता भी प्राप्त नही हो सका. इस तरह से स्थानीय सड़के व सरकारी भवन का नामकरण सेनानियों के नाम पर करने के लिए केसठ के ग्रामीणों ने कई बार मांग भी की, जो आज तक पूरी नहीं हो सकी. स्व. मिश्र जब अपना घर बार त्याग कर 1929 से 1942 तक महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. उस वक्त भी घर की स्थिति ठीक नहीं थी जो आज तक ठीक नहीं हो पायी. जानकारी के अनुसार पंडित शिव विलास मिश्र आजादी की लड़ाई के दौरान हजारीबाग जेल में डेढ वर्ष तक बंद रहे. अंग्रेजो द्वारा बर्बरतापूर्ण पिटाई के कारण उनका जबड़ा टूट गया, जिसके चलते वें कैंसर से ग्रसित हो गये.1947 में जब देश आजाद हुआ तो वे बीमार थे, गांधी मैदान पटना के झंडोतोलन समारोह में भाग लेने के लिए बीमार होने और डॉक्टरों के मना करने के बावजूद हॉस्पिटल से गांधी मैदान पटना गये. वापस लौटने के बाद तबीयत अधिक बिगड़ जानेके कारण पटना में ही इलाज के दौरान  26 सितंबर 1947 को उनकी मौत हो गयी थी.


कार्यक्रम के दौरान सभा का संचालन छात्र नेता दीपक यादव ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डीके कॉलेज के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर श्याम नारायण राय ने किया. मौके पर सुरेश सिंह, अमर चौबे, रविन्द्र सिंह, नीरज सिंह, बबलू पांडेय, शुभम सिन्हा, महावीर यादव समेत कई लोग मौजूद रहे.














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