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बेरोजगारों को मुनाफ़े का रोजगार बाँट रहे हैं बक्सर वाले भैया ..

यही नहीं, किसान बेहद कम जगह (100 वर्गफीट तक) में भी इस खेती को कर सकते हैं. कृषि विभाग के आत्मा के द्वारा भी किसानों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है हालांकि, प्रशिक्षण में सभी किसानों को नहीं मिल पाता.

- बक्सर के युवा दिखा रहे हैं कम लागत से ज्यादा मुनाफ़े की राह
- कम लागत में दे रहे हैं किसानों को ज्यादा मुनाफा कमाने का आधार

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: एक तरफ जहां मौसम की बेइमानी किसानों को पारंपरिक खेती से विमुख कर रही है वहीं, दूसरी तरफ मशरूम की खेती किसानों के लिए न सिर्फ बेहतर विकल्प बनकर सामने आई है बल्कि, उन्हें आर्थिक मजबूती भी प्रदान कर रही है. मशरूम की खेती से किसान हर साल लाखों रुपयों की कमाई आसानी से कर सकते हैं. खास बात यह है कि, मशरूम की खेती करने के लिए किसानों को मौसम के उतार-चढ़ाव से कोई लेना देना नहीं होता है. यही नहीं, किसान बेहद कम जगह (100 वर्गफीट तक) में भी इस खेती को कर सकते हैं. कृषि विभाग के आत्मा के द्वारा भी किसानों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है हालांकि, प्रशिक्षण में सभी किसानों को नहीं मिल पाता.

ऐसे में बक्सर के रहने वाले दो युवाओं ने किसानों को घाटे से उबारने तथा युवाओं को बेरोजगारी से लड़ने के लिए मशरूम की खेती के रूप में कमाई का एक नया हथियार देना शुरू किया है. युवाओं ने केवल 5,700 रुपये पैकेज के द्वारा किसानों को 60 दिनों 15 हज़ार से 20 हज़ार रुपये कमाने की तरकीब बताई है. कम ही दिनों में दर्जनों बेरोजगार और किसान इनस जुड़ कर मुनाफे की तरकीब सीख कर लाभान्वित हो रहे हैं.

सिविल लाइन के रहने वाले राजेश कुमार एवंम सतीश कुमार ने यह पहल शुरू की है. दोनों युवा स्टार्टअप के लिए एक छोटी रकम लेकर ये युवा न सिर्फ किसानों को प्रशिक्षित करते हैं बल्कि, उन्हें मशरूम के बीज वगैरह भी उपलब्ध कराते हैं. इसके पूर्व भी उन्होंने किसानों को वैज्ञानिक खेती से जोड़ने के लिए शैवाल की खेती सिखाई थी. अब वह किसानों को त्वरित व भरपूर लाभ दिलाने के लिए मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण और प्रेरणा दे रहे हैं. यही नहीं मशरूम उत्पादन के बाद उसका बाजार भी वह किसानों को उपलब्ध करा रहे हैं.

पौराणिक काल से ही मशरूम को माना जाता है उत्तम आहार:

बताया जाता है कि, मशरूम को पौराणिक काल से ही उत्तम आहार माना जाता है. यूनानी योद्धा रणभूमि में इसी आहार का उपयोग शक्ति वर्धन के लिए करते थे. ऋग्वेद में तो इसे देवताओं के आहार की संज्ञा भी दी गई है.

कैसे करते हैं मशरूम की खेती: 

राजेश कुमार तथा सतीश कुमार बताते हैं कि मौसम की मार से हो रहे नुकसान के कारण किसानी छोड़ रहे किसान केवल 10 बाई 10 के छोटे से कमरे में 60 दिनों के अंदर 15 से 20 हज़ार रुपये मशरूम की खेती से कमा सकते हैं. हल्की नमी के साथ भूसे से भरे बैग में इसका बीजारोपण किया जाता है. यह बीज तैयार मशरूम के रूप में 30 दिनों में निकलता है और 60 दिनों तक निकलता रहता है.

आसानी से मिलते हैं खरीददार, ताज़े तथा सूखे उत्पाद की भी है मांग:

उन्होंने बताया कि, किसानों द्वारा उत्पादित मशरूम को आसानी से बाजार में ग्राहक मिल जाते हैं इसके अतिरिक्त उनके द्वारा भी किसानों से मशरूम खरीद लिया जाता है. राजेश और सतीश के मुताबिक बाजार में केवल ताजे मशरूम नहीं बल्कि सुखाए हुए तथा मशरूम पाउडर की भी खासी मांग है. जिसकी अच्छी खासी कीमत मिलती है. ताजा मशरूम जहां 100 से डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो बिकता है वहीं, मशरूम पाउडर 800 रुपये प्रति किलो तक बेचा जाता है.

कैसे मिली प्रेरणा:

दोनों ने बताया कि समाज के लिए कुछ अलग करने की प्रेरणा ने उन्हें अलग-अलग स्टार्टअप प्लान तैयार करने की सोच दी. इस सोच के तहत उन्होंने पहले तो स्वयं पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा विभिन्न उत्पादों की खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया तत्तपश्चात वह बक्सर के बेरोजगारों को रोजगार बांटने की मुहिम पर निकल पड़े. इनसे प्रशिक्षण प्राप्त कर दर्जनों युवा अपना रोजगार शुरू कर चुके हैं. वह कहते हैं कि, आज स्वरोजगार अपना कर युवा न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान कर सकते हैं.

राजेश से संपर्क करने के लिए उनके मोबाइल नंबर पर 9122373133 फोन कर सकते हैं.












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