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Buxar Top News: खुलासा: जिले के सिंचाई संसाधनों में लग गया घुन, 90 प्रतिशत नलकूप बेकार ...




बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: जिले के सिंचाई संसाधनों में घुन लग गया है। नतीजा यह है कि डेढ़ दशक पूर्व जो सरकारी नलकूप लगे थे उनमें से 75 प्रतिशत किसी न किसी वजह से पानी देना बंद कर दिया है। वहीं नाबार्ड फेज-11 के तहत तीन वर्ष पूर्व लगाये गये 92 नये टयूबवेलों में से विद्युतीकरण के अभाव में 90 ठप हैं। जबकि इसके लिये कई साल पहले विश्व बैंक कोष से 92 लाख रुपये विद्युत बोर्ड में जमा कर दिया गया है। जिसमें कुछ वर्ष पूर्व सदर प्रखंड के शेरपुर व रामोबरिया में गड़े केवल दो को विद्युतीकृत किया गया।


आरटीआई एक्टिविस्ट एवं युवा समाजसेवी अमित राय को दिये गए विभागीय आंकड़ों के मुताबिक पहले से लगे 199 में से 150 टयूबवेल बेकार हैं और दस वर्ष के अंतराल में उसे चालू कराने की कवायद नहीं हुई। जरा आंकड़ों पर गौर करें तो बीस नलकूप विद्युत दोष से ठप हैं, जबकि 73 संयुक्त (विद्युत व यांत्रिक) दोष के कारण पानी देने में अक्षम हैं। 14 असफल हैं तो 29 में असामाजिक तत्वों ने ईट व पत्थर का टुकड़ा डाल बोरवेल को नाकाम कर दिया है। यही नहीं दो अल्प जलश्राव के चलते मृत हैं। वहीं रियाहशी इलाके में गड़े होने के कारण पटवन हेतु कमांड क्षेत्र से ही बाहर हो गये और ट्रांसफार्मर जलने से दो से पानी नहीं निकल रहा है। ऐसे में सूखे से निबटने के लिये वैकल्पिक संसाधनों की निर्भरता ही खत्म हो गयी है। नलकूप प्रमंडल का कहना है कि 42 की मरम्मति को वर्षों पूर्व प्राक्कलन भेजा गया, लेकिन सरकार द्वारा स्वीकृति नहीं मिलने से खराब नलकूपों के दोष दूर नहीं हो सके। वहीं नाबार्ड फेज-11 के तहत लगे 90 नये नलकूप विद्युतीकरण नहीं होने से अभी तक चालू ही नहीं हुआ। दियारा क्षेत्र का एकमात्र सिंचाई का संसाधन नलकूप है। फिर भी उसे दुरुस्त नहीं कराया जा रहा। जिससे प्रत्येक साल किसानों की खेती चौपट हो जा रही है।

सरकार से प्राप्त आंकड़ो बताते हैं कि ज्यादातर ट्यूबवेल्स के मेंटेनेंस के लिये व अन्य मद में करोड़ो रूपये केवल बक्सर को प्राप्त होता है तथा बिजली बिल भी दिया जाता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब नलकूपों के मरम्मति के लिए हर वर्ष पैसे खर्च किये जाते हैं तो नलकूप चालू क्यों नही होते, या अगर चालू नही है तो बिजली का बिल कैसा?



आरटीआई एक्टिविस्ट व समाजसेवी अमित राय ने कहा कि बिहार में खेती-किसानी करना घाटे का सौदा हो गया है। खुद को लोक नायक जयप्रकाश नारायण का शिष्य एवं समाजवादी मानने वाले पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने अपने डेढ़ दशकों के शासन में किसानों से मज़ाक के अलावा कुछ नहीं किया। अगर लालू प्रसाद सरकारी नलकूप (स्टेट बोरिंग) की हालत दुरुस्त कर देते तो यह राज्य के लाखों किसानों के लिए बड़ी बात होती !

अब बात करते हैं बिहार के दूसरे समाजवादी नेता एवं मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। वह बिहार में अपनी तीसरी पारी खेल रहे हैं। किसानों के लिए उन्होंने कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन हर खेतों में बिजली पहुंचाने की उनकी घोषणा अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। बिहार में तकरीबन साढ़े पांच हजार सरकारी नलकूप (स्टेट बोरिंग) हैं, जिनमें अधिकतर खराब हो चुके हैं। इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि पिछले कई दशकों से कोई सिंचाई परियोजना नहीं बनी है। अगर बनी भी तो उसकी हालत कैमूर-रोहतास स्थित दुर्गावती जलाशय जैसी हो गई। उल्लेखनीय है कि दुर्गावती जलाशय परियोजना 40 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है। बक्सर, भभुआ, रोहतास और भोजपुर जिलों की पहचान धान के कटोरे के रूप में होती है। यहां बेहतरीन किस्म के धान की पैदावार होती है, लेकिन पानी की कमी के चलते पूरे शाहाबाद इलाक़े की गौरवमयी पहचान खत्म हो रही है। पुरानी नहरों में पानी नहीं होता, नई नहरें बनाई नहीं जा रही हैं। मलई बराज परियोजना का उदाहरण लोगों के सामने है। इस पर करोड़ों रुपये ख़र्च किए गए हैं, लेकिन जिस मक़सद से यह परियोजना बनी, वह आज तक पूरा नहीं हो सका। सिचाई विभाग में किस कदर लूट मची, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो इंजीनियर या बाबू इसमें कार्यरत हैं, उनकी पांचों उंगलियां घी में डूबी रहती हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि इस विभाग में कार्यरत बड़े से लेकर छोटे कर्मचारियों  को केवल सरकारी पैसे लूट कर धन कमाने से मतलब है किसानों से नहीं ...

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