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Hindi Top News: प्रेरणादायक है सम्राट अशोक महान का जीवन दर्शन- डॉ. सुरेंद्र कुमार सिंह ।

सम्राट अशोक ने तात्कालिक धर्मआचारों तथा विश्वासों को अंगीकार नहीं किया. प्राणियों के प्रति अहिंसा के सिद्धांत पालन  करते हुए यगो में पशु वध की अनुमति नहीं दी.

हिंदी टॉप न्यूज़, बक्सर: सम्राट अशोक महान एक धर्म परायण प्रजावत्सल न्याय प्रिय एवं योद्धा थे. सम्राट अशोक का जन्म अशोकावादन बौद्ध ग्रंथ के अनुसार 304 ईसापूर्व में हुआ था. इनके पिता का नाम बिंदुसार तथा माता सुभद्रांगी थी. मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलीपुत्रा अर्थात आधुनिक पटना थी उस समय यह नगर 9 मील लंबा और डेढ़ मील चौड़ा था. मगध साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक तथा सुदूर दक्षिण भारत तक फैला हुआ था. अशोक अपने भाइयों में पढ़ने लिखने और हथियार चलाने में तेज था. वह चुस्त-दुरुस्त और साहसी तथा चतुर थे. उसकी प्रतिभा एवं योग्यता अपने भाइयों में अपेक्षा अधिक थी. अशोक के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना कलिंग युद्ध है जो उसके राज्य अभिषेक के 8 वर्ष बाद हुआ था. कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय इतना द्रवित हुआ की उन्होंने शपथ पूर्वक प्रतिज्ञा ली कि साम्राज्य विस्तार के लिए वह कभी  शस्त्र ग्रहण नही करेंगे. कलिंग युद्ध के बाद अशोक मे दया और करुणा का भाव इतना जागृत हुआ कि उन्होंने बौद्ध धर्म का मार्ग अपना लिया.  साथ ही साथ उन्होंने एक व्यक्तिगत धर्म जो "अशोक धम्म" के नाम से, बाद में ,प्रसिद्ध हुआ का  मार्ग प्रशस्त किया. अशोकदिव्या वादन के अनुसार उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली.

विख्यात है सहनशीलता: 
सम्राट अशोक की सहनशीलता विश्व विख्यात है उन्होंने विभिन्न संप्रदायों को भी संरक्षण दिया तथा विभिन्न अनुयायियों को आदर का भाव प्रदान किया.  अशोक ने अपने उपदेशों में इस बात पर अधिक जोर दिया की प्रजा आत्मन निग्रह करें और बहु
शुर्तहो अर्थात विभिन्न संप्रदायों के सिद्धांतों का ज्ञान प्राप्त करें तथा अन्य संप्रदायों के प्रति विद्वेष यादि ना करें. जिससे उनके प्रति  सहिष्णुता और सद्भाव बना रहे. अशोक का धम्म इतना स्वभाविक था कि   उसने कभी अपने व्यक्तिगत धार्मिक विचार प्रजा पर  लादने  का प्रयत्न नहीं किया. यह विचार महत्वपूर्ण है कि अपने शिलालेख में उसने बौद्ध धर्म के तात्विक चार आर्य सत्य अष्टांगिक मार्ग और निर्माण के लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया है.जिस धर्म का स्वरूप उन्होंने संसार के सामने रखा वह व्यावहारिक रुप से  सारे धर्मों का सार है. जीवन को अपेक्षाकृत सुखी और पावन बनाने की विचार से उसने कुछ आचरणों का विधान किए. उन्होंने माता पिता, गुरु और वृद्धों की  सुश्रुषा और आदर पर अत्यधिक जोऱ दिया. ब्राह्मणों ,श्रमणों ,संबंधियों, मित्रों ,वृद्धो के प्रति  उचित व्यवहार कि उन्होंने सराहना की. अशोक ने धर्म के निम्नलिखित गुणों का परिगणन किया -- दान, दया, सत्य ,साधुता ,संयम ,कृतज्ञता  इत्यादी. 

अशोक ने कहा क्रोध ,मान, ईर्ष्या आदि से प्रज्वलित पाप से छुटकारा  ही धर्म है: 

सम्राट अशोक ने तात्कालिक धर्मआचारों तथा विश्वासों को अंगीकार नहीं किया. प्राणियों के प्रति अहिंसा के सिद्धांत पालन  करते हुए यगो में पशु वध की अनुमति नहीं दी. पशु वध उन्होंने सर्वथा निषेध कर दिया. कुछ अनुष्ठानों को  उसने अनुचित ,अश्लील  और निरर्थक समझ कर निषिद्ध कर दिया. ये अनुष्ठान थे जन्म, मृत्यु, विवाह, यात्रा के संबंध में अधिकतर स्त्रियों के द्वारा किए जाते थे. अपने व्यवहारिक जीवन में उचित आचरण को ही उसने सबसे बड़ा धम्म  कहा. सेवको  तथा दासों के साथ उचित व्यवहार ,माता पिता के आज्ञा करण, मित्रों ,साथियों संबंधियों ,ब्राह्मणों तथा  श्रमिकों के प्रति  उदारता और यज्ञार्थ प्राणी -वध से विरक्ति वास्तविक धम्म है उसने अपने शासनकाल में मांसाहार ,नृत्य, संगीत प्रधान समाजों को उन्होंने सर्वथा था बंद कर दिया. अशोक ने   मनुष्य और पशुओं के चिकित्सा के लिए अस्पताल भी खोले. जनता के लिए कुएं और विश्राम गृह भी बनवाएं उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में अशुद्धियों के पौधे अन्यत्र दूसरे जगह से लाकर अपने अपने राज्य में लगवाएं. अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा कोे बोधिवृक्ष की एक शाखा लेकर श्रीलंका भेजा जहां उसने शांति और भाईचारे का संदेश दिया और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए काफी प्रयास किया.
अशोक का शासन प्रबंध राजतान्त्रिक  होते हुए भी प्रजातांत्रिक गुणों का  समावेश था. अपनी प्रजा को पितातुल्य मानता था. राजा को उन्होंने प्रजा का पिता कहा. अपने द्वितीय कलिंग लेख मे  वह कहते हैं कि सारे मनुष्य मेरी संतान है और जिस प्रकार में अपने संतान को चाहता हूं कि वह सब प्रकार की समृद्धि और सुख इस लोक और परलोक में भोगें ,ठीक उसी प्रकार मैं अपनी प्रजा के सुख समृद्धि की कामना करता हूं.


प्राचीन जगत की महान हस्तियों में से एक हैं सम्राट अशोक:

सम्राट अशोक का चरित्र निसंदेह प्राचीन जगत के महत्तम व्यक्तियों में स एक हैं इतिहास के महान व्यक्ति कांस्टेंनटाईन ,मार्क्स आरीलियस , अकबर, खलीफा उमर और दूसरे के साथ उनकी तुलना की गई है. वास्तव में सर्वथा उचित नहीं है अशोक की उदारता की मूर्ति थे और मानवता के सबसे बड़ा पुजारी. उनकी सहानुभूति और स्नेह  मानव जगत को लांघ कर  प्राणीमात्र तक पहुंचती है. उन्हें अपने कर्तव्य का गहरा ध्यान रहता था. जिस कारण उन्होंने अपने पद और स्थान से संबंधित सुख तक को त्याग दिया हर घड़ी और हर स्थान पर शासन का कार्य और प्रजा के कल्याण करने को तत्पर रहते थे. सम्राट अशोक अपनी प्रजा के हित और सुख की भावना उसके जीवन में इतनी प्रबल हो गई थी कि अपने कार्य और परिश्रम से वह कभी संतुष्ट नहीं हो पाते थे. उस के शासनकाल मे पाली राष्ट्रभाषा बन गई. आज हम चैत्र मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को महान सम्राट अशोक विश्व विजेता की जयंती मानकर यह संदेश प्रसारित कर रहे हैं. बौद्ध धर्म का प्रचार या  बुद्ध के उपदेशों का प्रचार चीन, जापान, लंका, वर्मा, मलाया, अफगानिस्तान यादि देशों में कराया.

 वर्तमान समय में आज अशोक के सहिष्णुता की जरूरत महसूस की जाने लगी है. हर इंसान में सहिष्णुता एक आंतरिक गुण है जिसको जरूरत  है उभारने की तथा  मानवतावादी  सिद्धांत अपनाकर  घर ,परिवार ,देश ,समाज मे अमन शान्ति फैलाकर सबका विकास करने की . सम्राट अशोक की मृत्यु  232 ईसापूर्व में 40 वर्षों के दीर्घ शासन  के पश्चात हुई.

जय हो न्याप्रिय सम्राट अशोक महान !

- डॉ. सुरेंद्र कुमार सिंह















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