Buxar Top News: विजयादशमी महोत्सव: श्रीराम विवाह का अलौकिक दृश्य देख भाव-विभोर हुए श्रद्धालु ..
श्रीराम धनुष का खंडन कर देते हैं. तभी वहां परशुराम जी पहुंच आते हैं और शिव धनुष को टूटा हुआ देख काफी क्रोध करते हैं. वह धनुष तोड़ने वालों को दंडित करने की बात करते हुए सभा कक्ष में बैठे योद्धाओं को ललकारते हैं
- शिव धनुष टूटने से क्रोधित हुए परशुराम.
- कृष्ण लीला में दामा पंथ लीला का हुआ मंचन.
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: श्री रामलीला समिति बक्सर के तत्वाधान में रामलीला मैदान के विशाल मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयदशमी महोत्सव के क्रम में दसवे दिन गुरुवार को देर रात्रि रामलीला मंचन के दौरान "लक्ष्मण परशुराम संवाद व राम विवाह" प्रसंग का मंचन किया गया.
जिसमें दिखाया गया कि जब श्रीराम धनुष का खंडन कर देते हैं. तभी वहां परशुराम जी पहुंच आते हैं और शिव धनुष को टूटा हुआ देख काफी क्रोध करते हैं. वह धनुष तोड़ने वालों को दंडित करने की बात करते हुए सभा कक्ष में बैठे योद्धाओं को ललकारते हैं. परशुराम जी के कटु वचन से लक्ष्मण जी भड़क जाते हैं और लक्ष्मण परशुराम के बीच उग्र संवाद छिड़ जाता है. काफी लंबे समय तक चले संवाद को रोकने के लिए श्री राम जी हस्तक्षेप करते हैं और अपने छाती पर अंकित मृग ऋषि चरण चिन्ह दिखाते हैं. चरण चिन्ह देखते ही परशुराम जी का संदेह दूर हो जाता है. वह राम के समक्ष अपना आयुध समर्पण कर वन में तपस्या के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. इधर राजा जनक अपने दूतों को अवधपुरी भेजकर विवाह का संदेश भिजवाते हैं. महाराज दशरथ अयोध्या से बारात लेकर आते हैं और राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न चारो भाइयों का विवाह धूमधाम से संपन्न होता है. सखियां मंगल गान करती हैं. श्री सीता राम विवाहोपरांत बारात लौट कर अयोध्यापुरी आती है. पूरे अयोध्यावासी मंगल मनाते हैं और माताएं परछावन करती हैं. चारों तरफ खुशी का माहौल छा जाता है. इस दौरान मंडल के कलाकारों ने अपने मनमोहक प्रदर्शन से दर्शकों को झूमने पर विवश कर दिया. पूरा मैदान जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा.
वही दिन में कृष्ण लीला मंचन के दौरान "दामा पंथ" नामक प्रसंग का मंचन किया गया. मंचन के द्वारा पूरा परिसर खचाखच भरा पड़ा था. जिसमें दिखाया गया कि दामा मेदनीपुर के एक ब्राह्मण थे. पेशे से शिक्षक दामाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे. उनकी नौकरी इसी प्रवृत्ति के कारणवश छुट जाती है. वह भगवान का भजन कीर्तन करने लगे. तभी उनकी नौकरी एक नवाब के यहां लग जाती है. वह नवाब इनको मंगल बेड़िया का तहसीलदार बना देता है. एक बार वहां पर सूखा पड़ जाने के कारण किसानों में हाहाकार मच जाता है. दयालु किस्म के दामाद जी किसानों के लिए अन्न का गोदाम खोल देते हैं. इस पर दामाजी की शिकायत उनका मियां मुंशी नवाब से कर देता है. नवाब दामा को फांसी देने का हुक्म देता है. दामाजी बिट्ठल भगवान का कीर्तन करते हैं. बिट्ठल भगवान दामा जी के चाकर बनकर नवाब के यहां पहुंचते हैं. उनके पास एक झोली रहती है. उसी झोली के द्वारा नवाब के खाली गोदाम को भर देते हैं. नवाब बिट्ठल भगवान पर मोहित हो जाता है. बिट्ठल भगवान अंर्तध्यान हो जाते हैं. नवाब यह देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो दामाजी के समीप पहुंच कर उन्हें फांसी से उतरवाकर मुंशी को फांसी पर चढ़ा देता है और हिंदू धर्म अपनाकर भगवान की भक्ति करने लगता है. यह प्रसंग देख दर्शक भाव विभोर हो गए. वृंदावन श्री धाम से पधारे सुप्रसिद्ध रामलीला मंडल के स्वामी शिवदयाल शर्मा (दत्तात्रेय) के सफल निर्देशन मे श्री श्यामा-श्याम रामलीला व रासलीला मंडल के पारंगत कलाकारों द्वारा मंचन के दौरान रामलीला पूजा समिति के सभी पदाधिकारी गण उपस्थित रहें.
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