2019: छोटे मुद्दों से नहीं मिलती 'इतनी बड़ी जीत' - Election Analysis
किसी ने जातीय समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग को इस विशाल बहुमत का कारण बताया तो किसी ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को इसकी जड़ बता डाला. किसी ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक को इसका श्रेय दिया तो किसी ने अमित शाह की संगठनात्मक क्षमता को इससे जोड़ा. इसी प्रकार से इकॉनमी, प्रधानमंत्री की मेहनत, विपक्ष की कमजोरी सहित तमाम केंद्रीय मुद्दों और सैकड़ों, हज़ारों स्थानीय मुद्दों को गिनाया जा सकता है.
पर क्या वाकई इन सभी मुद्दों को मिलाकर यह बड़ी जीत संभव है. आप जवाब दें इससे पहले आपको बता दें कि भारत की आजादी के तकरीबन 70 साल बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरी बार इतने विशाल बहुमत के सहारे सत्ता में अपने दम पर आए हैं.
सच कहा जाए तो इतने विशाल बहुमत और उसके पीछे के कारणों को समझने के लिए आपको अपना हृदय और मस्तिष्क उसी अनुपात में विशाल करना होगा. निश्चित रूप से आप संकुचित दृष्टि से, एकपक्षीय नजरिये से इसे समझने में सफल नहीं होंगे.
भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत राजनीतिक आधार देने वाले और उसे पार्टी लाइन से हटकर बाहरी दुनिया में स्वीकार्य बनाने वाले अटल बिहारी बाजपेई इस संदर्भ में कहते हैं कि-
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
निश्चित रूप से यह जीत छोटे मुद्दों के आधार पर...
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