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Buxar Top News: सरकारी तंत्र के उदासीन रवैये से समस्याओं के मकड़जाल में फंसे किसान - युवराज |

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ होने के साथ ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीर भी गहराने लगी है क्योंकि कृषि एवं किसान के मध्य आने वाली बाधाएँ भी इनके आगमन के साथ ही सुरसा की तरह मुँह बाए जैसे प्रतीक्षारत रहती हैं ।
बीज ,खाद ,सिंचाई ,फसल खरीद ये ऐसी समस्याएं हैं जिसने किसान को कभी चैन की न तो दो रोटी खाने दी और ना ही भूल कर सपने में भी सुख की कल्पना ही करने दी । आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात में यदि समस्याओं के मकड़जाल से अब तक कोई मुक्त नहीं हो सका है तो वो किसान ही हैं । सरकारी तंत्र के उदासीन रवैये का दोहरा मार भी इन्ही पर पड़ता आ रहा है । जय जवान जय किसान का नारा जैसे एक वाक्य मात्र तक सिमट कर रह गया है । उक्त बातें डुमराँव राज के युवराज श्री चन्द्रविजय सिंह एवं महाराज कुमार शिवांग विजय सिंह ने प्रेस वार्ता के दौरान कही
आगे इन द्वय ने कहा कि किसानों को लाभ पहुचाने के बहुत सारे कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है लेकिन दुःख की बात यह है कि इन सभी लाभों से किसान आज भी महरूम है । ना उसे अच्छी बिज मिल पा रही है और ना ही सिंचाई का कोई माकूल संसाधन । नहर तो है लेकिन वो अपनी बदहाली पर आँशु बहा रहा है । अपनी टूटी - फूटी ढांचा लिए वो किसानों के दुर्दशा के साथ ही अपनी दुर्दशा पर भी मूकदर्शक बना हुआ है । नहर के मरम्मती एवं सिंचाई के नाम पर लाखों रुपयों का आवंटन अवश्य होता है लेकिन उसकी राशि अफसरों के कलम और कागज तक ही सिमित होकर रह जाते हैं । जिन किसानों को भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है आज वो आर्थिक चिंताओं के बोझ तले इतने दबे हुए हैं जिनसे मुक्ति अपने जीवन के किताब को बंद करके ले रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद भी इनके दुःख और दर्द को समझने वाला कोई नहीं है । किसानों के सहायतार्थ ना जाने कितने ही सरकारी पदों का सृजन किया गया है लेकिन इन पदों का क्या मतलब जिससे किसानों का हित ही ना सधे । वातानुकूलित कार्यालय में बैठ कर किसानों के तपते शरीर का मर्म ऐसे लोग कभी नहीं जान सकते ।
 प्रदेश में नीतीश सरकार ने शराब बंदी कर निश्चय ही एक साहसिक एवं प्रसंसनीय कार्य किया है लेकिन एक ही बात को मुद्दा बनाकर चलना भी न्यायोचित नहीं है । प्रदेश में किसानों के दुर्दशा में सुधार के लिए स्थाई बंदोबस्त करने की नितान्त आवश्यकता की जरूरत महसूस तो होती है परंतु इस मामले में कोई भी कदम राज्य सरकार की तरफ से उठता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा। सबसे बड़ी दुर्दशा तो उन किसानों की है जो बंदोबस्ती की भारी भरकम रकम चुकाने के बाद अपनी फसल को बेचने के लिए दर - दर की ठोकर खाते हैं और उन्हें अंततः अपनी फसल को बिचौलिए के माध्यम से बेचना पड़ता है जिनसे उन्हें आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ता है उनकी दुर्दशा यही समाप्त नहीं होती बल्कि उस समय असहनीय हो जाती है जब मालगुजारी के रकम चुकाने के बाद भी यदि उनकी फसल प्राकृतिक आपदा की शिकार हो जाती हैं और उन्हें फसल क्षति-पूर्ति का लाभ से वंचित कर दिया जाता है और उसे भू स्वामी को दे दिया जाता है। यह मजदूर किसानों के साथ छलावा नहीं तो क्या है ?
इन्होंने आगे अपने वक्तव्य में कहा कि केंद्र सरकार को भी किसानों के दुर्दशा पर गहन विचार करने की आवश्यकता है। उन्हें हलाला , तीन तलाक और मनुस्मृति जैसे औचित्यहीन तथ्यों से बाहर निकल कर सर्वप्रथम किसानों के प्रति अपनी नीति एवं रणनीति स्पष्ट करनी चाहिए तभी जय जवान जय किसान का नारा सार्थक हो सकता है । इन द्वय ने अपने बातों को कुछ इस कदर समाप्त किया जो तथाकथित सेक्युलरवादियों पर भारी सा पड़ता प्रतीत होता है । उन्होंने कहा कि
"देश को ना भजन से दिक्कत है ना अजान से दिक्कत है..
देश को दिक्कत पीटते जवान और आत्महत्या करते किसान से है "

मौके पर ब्रम्हा पांडेय , शिवजी पाठक नंदजी यादव , अम्बरीष पाठक , सुरेंद्र प्रसाद , बबन यादव , रमेश प्रसाद , सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे ।


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