Buxar Top News: योग साधना के जैसा हो गृहस्थ जीवन, सम्पूर्ण संसार सुख-शांति व समृद्धि से होगा परिपूर्ण – कृष्णानन्द शास्त्री |
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सृष्टि में विवाह
की परम्परा अनादि है और अनन्त है। सनातन धर्म में गृहस्थ जीवन को सर्वोत्कृष्ट एवं
सर्वोतम स्थान प्राप्त है। सभी देवी देवता, ऋषि मुनि, नाग-गन्धर्व, विद्याधर गृहस्थ ही
है। लक्ष्मी नरायण, सीताराम, रूकमणी कृष्ण,
उमा शंकर, शची इन्द्र आदि। विवाह
का मुख्य एवं सनातन अर्थ भोग की निवृत योग की प्राप्ति है। उक्त बाते रामरेखा घाट
स्थित रामेश्वरनाथ मंदिर में चल रहे लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दौरान आयोजित कथा के
दौरान कथावाचक कृष्णानन्द शास्त्री ने कहा।
उन्होने कहा कि स्त्री पुरूष दोनो
मिलकर काम को नियंत्रित करते हुए मोक्ष को प्राप्त करेंगे इसी उद्देश्य की पूर्ति
हेतु वैदिक विवाह का विधान है। मानव को प्राप्तव्यच्तुः पुरूषार्थ में धर्म, अर्थ,
काम, मोक्ष में अर्थ और मोक्ष के मध्य काम पुरूषार्थ आता है। जिसका सीधा अर्थ होता
है अर्थ यानि धन से प्राप्त काम (कामनाओं) से मोक्ष को प्राप्त करने का उद्योग।
शिवजी का पार्वती से विवाह करने का उद्योग भी इसी अर्थ में है। वर्तमान में विवाह भोग
का कारण बन चुका है परिणामतः काम विवश होकर सन्ताने उत्पन्न हो रही है। अतएव दैवी
गुणों की अपेक्षा आसुरी वृति ज्यादा होने से संसार में अत्याचार, कदाचार, व्यभिचार, दुराचार, आदि दुःख एवं
अशान्ति की सृष्टि हो रही हे। समाज एवं परिवार के साथ व्यक्ति स्वयं दुःखी हो गया
है। कूर्म पुराण के द्वारा यही शिक्षा दी गई है कि विवाह को योग साधना मानकर यदि
गृहस्थ जीवन जिया जाए तो दैवी गुण सम्पन्न सन्ताने जन्म लेगी और सम्पूर्ण संसार
सुख शान्ति समृद्धि से पूर्ण होगा।
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