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Buxar Top News: अपनी वीरानियों में कई कहानियां छिपाए है, कचहरी की उदास शाम ..


व्यवहार न्यायालय यानी कि कचहरी में हर शाम अपने आप में एक अलग उदासी लिए होती है.हालांकि, इस उदासी के अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने होते हैं.ऐसी ही एक उदास शाम का जिक्र हमने इस लेख में किया है.

- अलग-अलग जिम्मेवारियों में बंधे लोगों के लिए इस शाम के अलग-अलग हैं मायने.
- पलायन की खामोशी में छिपी रहती हैं अनेकों पीड़ाएँ.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: व्यवहार न्यायालय यानी बक्सर कचहरी परिसर में शाम ढ़लते ही सन्नाटा पसर जाता है. बंदरों की झुंड मानो मनुष्यों के पलायन का संकेत दे रहे हो. गत दिनों भी एक ऐसी ही शाम उदास थी. पुलिसिया शासन और न्याय की जेल भेजने की प्रक्रिया कम त्रासदायक नहीं होती हैं.
बरामदे में हथकड़ी औऱ रस्सियों में बंधे नरमुंड कभी अपने लगते कभी पराये औऱ तिस पर घूरती पथरायी आँखे मानो किसी अनहोनी घटना की बयां कर रही हो. भूख से उदास औऱ कांत चेहरे के बारे में साथ आये सिपाही से पूछने पर पता चला कि वे लोग मुफ्फसिल थाना क्षेत्र में बालू मजदूर थे औऱ सरकार की खनन कानून के खिलाफ काम कर रहे थे कि राज्य ने ही दबोच लिया है.
गोया कि इस देश मे हर व्यवसाय करना ही कानून से खेलना है.
बालू व्यवसाय से जुड़ना अभी जेल जाने की ही तैयारी है.
इसी राज्य सरकार ने गांव गांव दारू का लाइसेंस जारी कर लोगों को पीने की आदत लगाई जब वे टुन्न होने लगे तो जेल जाने की तैयारी राज्य सरकार ने ही कर दी.
अभी हरा बांस व पेड़ काटना, खुले में प्यार इज़हार करना सब गैर कानूनी हैं बस क़ानून की नज़र आप पर नहीं है, जेल तो कभी भी जा सकते हैं ?
कचहरी परिसर की शाम गांव गिराव से गिरफ्तार होकर आये देशवासियों की उदासी का मंज़र खड़ा करता है अखबारों में ही आ पाता हैं कि किसी के पास से हथियार तो कोई किसी अपराध में लिप्त तो कोई वारंटी जिसको न्यायालय ने ही गिरफ्तारी का आदेश दे रखा हो.
बंदरों के झुंड के बीच उदास कचहरी में दरोगा कहीं गाड़ी के बोनट तो कहीं चबूतरे पर बैठ कर कागजी खानापूर्ति करते हैं तो चेहरे लटकाए पेशकार जेल भेजने का कारा अधिपत्र तैयार कर रहे थे, घर से बेटी का चॉकलेट का फोन भी आ रहा है ,सूर्य अस्त हो रहा है,अंधेरा का डर गिरफ्तार नरमुंड के अलावे पेशकार और पुलिस दोनों को है,सबकों कोफ़्त है अपने चेहरे पर, लेकिन जो जेल जा रहा है उसको अंधेरा और तिमिर लग रहा है, भूख भी लगी है प्यास भी,गांव से साथ आये छूटने वाले है, जेल का स्याह चेहरा सामने आने वाला है कचहरी की शाम तो ढलेगी और सुबह नए कैदी फिर आएंगे लेकिन जो आज शाम इस कचहरी से जेल जा रहे हैं उनके लिये यह शाम और डरावनी है.
उनके लिये कचहरी बधस्थल ही लगता है श्मशान की वीरानी और चन्द पुलिस वाहनों में चेहरे छिपाये लोग पता नही गांव की सुनसान गलियों में क्या जुर्म कर आये हैं कि जेल का रास्ता इस वीरान कचहरी से ही खुलता है.














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