Buxar Top News: यहाँ चपरासी से भी कम है शिक्षकों का वेतन, उसपर भी चार माह से है बंद ..
कई पर्व-त्योहारों की रौनक भी वेतन के आभाव में बदरंग हो गयी.
-हाल नियोजित शिक्षकों का.
- जुलाई से बंद है शिक्षकों का वेतन, एक माह आ वेतन भेजा जा रहा.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: जिले के प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों के नियोजित शिक्षकों को विगत चार महीने से वेतन नहीं मिला है. इससे उनके समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. जुलाई 2017 से अब तक नियोजित शिक्षकों का वेतन नहीं मिला है. इस दौरान कई पर्व-त्योहारों की रौनक भी वेतन के आभाव में बदरंग हो गयी. शिक्षकों ने बताया कि सरकार द्वारा बार-बार समय पर वेतन देने की बात कही जाती है. लेकिन ऐसा नहीं होता है.
केंद्र से राशि नहीं मिलने की कही जाती है बात:
दरअसल सरकार यह बहाना बनाती है कि उसे सर्व शिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार से शिक्षकों की वेतन की 40% राशि समय से नहीं मिल पाती जिसके चलते शिक्षकों का वेतन का सर समय भुगतान नहीं हो पाता. लेकिन वास्तव में यह केवल बहानेबाजी ही मानी जायेगी, क्योंकि सरकार अगर चाहे तो 60% की राशि से भी उनके कई माह के वेतन का भुगतान कर सकती है. शिक्षकों ने बताया कि, सरकार शिक्षण कार्यों के अलावा भी उनसे विभिन्न प्रकार के कार्यों को कराती है बावजूद उसके सरकार का ध्यान शिक्षकों को हो रही आर्थिक परेशानियों पर नहीं रहता.
चपरासी को मिलता है शिक्षकों से ज्यादा वेतन:
एक ओर जहाँ सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है वहीं शिक्षकों का वेतन भी ऐसा है जो उनके कार्यों के अनुपात में काफ़ी कम है. मध्य विद्यालय में कार्यरत एक शिक्षक ने बताया कि उनका मासिक वेतन 14 हज़ार रुपये है जबकि, आदेशपाल का वेतन 24 हज़ार. वहीं जहाँ आदेशपाल की ड्यूटी सिर्फ स्कूल तक ही होती है वहीं शिक्षकों को शिक्षण के अलावे भी कई गैर - शैक्षणिक कार्यों में अपना योगदान देना होता है. जिससे कि उनके अंदर असंतोष की भावना बढ़ती जा रही है.
क्या कहते हैं डीपीओ:
मामले में शिक्षा विभाग के डीपीओ रामेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि शिक्षकों का एक माह का वेतन उनके खाते में भेजा गया है.
एक माह का वेतन दे कर की जा रही है खानापूर्ति:
बहरहाल, एक माह का वेतन शिक्षकों के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. क्योंकि कई महीनों से वेतन ना मिलने के कारण कर्जदार हो गए शिक्षकों पर आर्थिक दबाव ज्यादा बढ़ गया है. ऐसे में एक माह का वेतन दे कर सरकार भी महज खानापूर्ति कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करती नज़र आ रही है.
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