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Buxar Top News: केंद्र की तरह हर राज्य के पास भी हो आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था - अमित राय.

13 साल बीत जाने के बावजूद जिस तरह से जनता का इसके प्रति प्रतिक्रिया रही है वह बेहद ही निराशाजनक है. यह बेहद ही चिंताजनक है की इतने सालों बाद भी सिर्फ देश के 0.3 प्रतिशत लोगों ने ही इसका उपयोग किया है. 




- जब है वन नेशन तो हो वन आरटीआई व्यवस्था.
- एक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए डाकखाना जाना और लंबी कतार में लगना नहीं है तर्क संगत.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: आरटीआई कानून हमारे लिए जरुरी क्यों है? इसे समझना आज बेहद जरुरी है. इस कानून के प्रति जनता की भागीदारी जितनी बढ़ेगी उतना ही ज्यादा इस कानून को मजबूती मिलेगी. बीते लगभग 13 सालों में यह अपेक्षा की गई कि यह जनता और सरकार को करीब लाएगी. जहां जनता को सरकार के कामकाज की जानकारी प्राप्त करने का हक प्राप्त हो सकेगा. सरकार जनता के प्रति गंभीर होकर अपना कार्य करेगी. मगर आज 13 साल बीत जाने के बावजूद जिस तरह से जनता का इसके प्रति प्रतिक्रिया रही है वह बेहद ही निराशाजनक है. यह बेहद ही चिंताजनक है की इतने सालों बाद भी सिर्फ देश के 0.3 प्रतिशत लोगों ने ही इसका उपयोग किया है. 

अधिकांश जनता आरटीआई से दूर

एक पारदर्शी व्यवस्था बनाने, सरकार के काम-काज पर प्रश्न करने, किसी अन्य तरह की जानकारी हासिल करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने अपनी जनता को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के रुप में एक शक्ति प्रदान की. इससे यह विश्वास जगा की इसके कारण लोकतंत्र को और भी मजबूती मिलेगी और जनता को सरकार से सवाल करने का अधिकार भी. लगभग 13 वर्ष हो चुके हैं सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 को लागू हुए. जनता को इससे बेहद फायदा भी हुआ है और आरटीआई की उपयोगिता भी सिद्ध हो चुकी है. मगर इसके प्रति जागरूकता की कमी और सरकारी महकमे का इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाना इस कानून को देश की अधिकांश जनता से दूर रखे हुए है. जरुरी है इस कानून को कारगर बनाने के लिए इस ओर भी ध्यान दिया जाए.

आरटीआई के लिए पारदर्शिता जरुरी

सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को लेकर यह बात कही थी कि जब तक लोग जानेंगे ही नहीं तो वह बोलेंगे क्या. इस बात पर गौर किये जाने की जरुरत है. वाकई जो आम जनता सरकार बनाती है उसे तो यह अधिकार मिलना ही चाहिए की वह सरकार के काम-काज की अथवा सरकार से संबंधित कोई भी जानकारी सुगमता से प्राप्त कर सके. आज के इस दौड़-भाग के जिंदगी में भी जब हम जब हम कोई सामान लेते हैं तो बड़े गौर से उसे देखते हैं, दो-चार दुकानों में जाते है. वैसे में आम जनता जो सरकार चुनने का कार्य करती है और जिस सरकार के हर एक फैसले का असर उनपर होना होता है, उन्हें तो हर हाल में सरकार के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने की एक पारदर्शी और आसन सा साधन मुहैया करवाया जाना चाहिए.

आरटीआई मामलों के निपटारे में लग सकते हैं 17 साल

आरटीआई के जरिये बस एक प्रश्न पूछने के लिए डाकखाना जाना, लंबी कतार में खड़े हो इंतज़ार करना कहां तक तर्कसंगत है? बावजूद उसके आपको अपने जवाब के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, बस यहीं नहीं कोई कमी हो गई तो आपको उसी प्रक्रिया को फिर से दोहराने की जरुरत होगी. यहीं नहीं विभागों को जवाब नहीं देना हो तो उसकी भी अपनी पेचीदगी है. जिस राज्य में आरटीआई के इतने लंबित मामले पड़े हैं वहां के सूचना आयोग का इतना ढीला रवैया बेहद शर्मिंदगी भरा है. असेसमेंट ऐंड ऐडवोकेसी ग्रुप और साम्य सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ आरटीआई के लंबित मामलों की जो रफ़्तार है उसके मुताबिक मामलों के निपटारे में राज्यों को 17  साल तक लग सकते हैं, यह खेदजनक है.

क्या चाहते हैं हम?

एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो वन नेशन, वन आरटीआई क्यों नहीं हो सकता?

*अमित राय, आरटीआई एक्टिविस्ट, बिहार*















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