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Buxar Top News: शिक्षा के दुश्मन: सावधान ! विद्यालय में कहीं आपका बच्चा तो नहीं बना बाल मजदूर ..



सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है शिक्षक केवल वेतन वृद्धि तथा विभिन्न सुविधाओं के लिए आंदोलनों में समय व्यतीत करते हैं. 

- हाल चौसा प्रखंड के चुन्नी मध्य विद्यालय का.
- बोले श्रम अधीक्षक, होगी कानूनी कारवाई.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए सरकार एक और जहां विभिन्न प्रकार के योजनाएं चला रही है वहीं दूसरी तरफ विद्यालय प्रबंधन सरकार की इन ख्वाहिशों पर पानी फेरने को आमादा है.

सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है शिक्षक केवल वेतन वृद्धि तथा विभिन्न सुविधाओं के लिए आंदोलनों में समय व्यतीत करते हैं. यही नहीं मध्यान्ह भोजन जैसी महत्वकांक्षी योजना शिक्षकों के भ्रष्टाचार के कारण बच्चों को स्कूल से जोड़ने की योजना ना होकर केवल शिक्षकों की कमाई का एक बेहतर जरिया हो गया है. स्कूलों की स्थिति जानने के लिए हमारी टीम चौसा प्रखंड के चुन्नी मध्य विद्यालय पहुंची जहां स्थिति वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी थी. 

विद्यालय के बाहर चहलकदमी कर रहे बच्चे
शिक्षक चला रहे थे मोबाइल, बच्चे खेल रहे थे बाहर:
सबसे पहले हम विद्यालय के प्रथम खंड में पहुंचे. दरअसल, चुन्नी मध्य विद्यालय दो खंडों में चलता है पहले खंड में कक्षा 6 से 8 एवं दूसरे खंड में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई होती है. दिन के करीब 2:15 बज रहे थे कक्षा 6 से 8 तक के खंड में बच्चे बाहर खेल रहे थे एवं शिक्षक निश्चिंत होकर मोबाइल चला रहे थे. बच्चों से पूछने पर बच्चों ने बताया कि तकरीबन 2 घंटे से उन्हें खेलने के लिए छोड़ दिया गया है. जैसे ही हमारे संवाददाता इस विषय पर जानकारी लेने के लिए शिक्षकों के पास पहुंचे उन्होंने तत्काल सभी बच्चों को अंदर बुला लिया एवं शैक्षणिक गतिविधियां शुरू हो गई. बच्चों के बाहर खेलने के विषय पर पूछे जाने पर शिक्षक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए.
 खाद्य सामग्री की बोरियां उठाकर लाते बच्चे

बच्चों से कराई जा रही थी मजदूरी:
तत्पश्चात, हमारी टीम विद्यालय के दूसरे खंड में पहुंची वहां का नजारा तो और भी चकित कर देने वाला था. वहां स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई छोड़ कर बाल मजदूरी में लगे हुए थे दरअसल हेड मास्टर स्वयं उनसे खाद्यान्न की बोरियां उठवाकर रखवा रहे थे. इस घटनाक्रम को कैमरे में कैद करते हुए हमारे संवाददाता ने जैसे ही हेड मास्टर से इस विषय पर पूछा उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तथा उन्होंने तत्काल बच्चों को यह काम छोड़ देना का निर्देश दिया. 

प्रधानाध्यापक गर्जन राम

प्रधानाध्यापक ने तीन बार बदला बयान, अंततः स्वीकारा बच्चों से करवा रहे थे काम:
बाद में जब प्रधानाध्यापक से पूछताछ की गई तो वह बगले झांकने लगे. एक बार उन्होंने कहा कि बच्चे बाहर के हैं दूसरी बार उन्होंने कहा कि बच्चे काम करने वाली रसोईया के हैं. तीसरी बार उन्होंने बताया कि बच्चे स्कूल के ही हैं. बहरहाल, वास्तविक सच्चाई तो यही थी कि बच्चे विद्यालय के थे और खाद्यान्न की बोरियां उठवाकर विद्यालय में रखवा रहे थे. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी था कि आखिर बच्चों को शिक्षा से महरुम रखने का अधिकार शिक्षकों को किसने दिया? और क्या बच्चों के विद्यालय जाने का उद्देश्य अब शिक्षा ग्रहण करना नहीं होकर केवल गैर शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों का हाथ बंटाना रह गया है?

बोले अधिकारी, गंभीर है मुद्दा, तीन साल तक की हो सकती है सजा: 
शिक्षा के मंदिर में बच्चों की इस दुर्दशा के संदर्भ में जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की गयी तो उन्होंने स्पष्ट कहा, कि बच्चों के अध्ययन-अध्यापन में कोई भी कोताही कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी.उन्होंने स्पष्ट कहा कि मामले की जाँच वह स्वयं करेंगे तथा दोषी शिक्षकों को किसी सूरत में नहीं बख्शा जाएगा दूसरी तरफ श्रम अधीक्षक ने बताया कि किसी भी बच्चे से बाल मजदूरी कराना कानूनी अपराध है तथा इस तरह के मामलों में तीन साल तक के कारावास का प्रावधान है. 

बहरहाल, सवाल यह भी है कि सरकारी शैक्षणिक  संस्थानों में शिक्षा का स्तर गिराने वाले इन शिक्षकों को क्या कहा जाए ...... शिक्षा का दुश्मन !




















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