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Buxar Top News: स्टेशन पर यात्रियों के साथ शव भी करते हैं इंतज़ार ..



बताया जाता है कि रेलवे स्टेशन पर ऐसे शवों को रखे जाने की कोई व्यवस्था नहीं होना इस परिस्थिति को जन्म देता है । रेल सूत्रों की माने तो लगभग प्रतिदिन दिन के कई घंटे लोग शवों के साथ बैठ कर अपनी ट्रेनों के इंतज़ार में बिताते हैं 
बुधवार को प्लेटफॉर्म पर रख शव

- रोज होती है मानवता तार-तार, मूकदर्शक हैं अधिकारी.

- कमज़ोर दिल वालों और बच्चों के लिए सज़ा से कम नहीं होता ट्रेनों का इंतजार.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: यात्री सुविधाओं के लिए रेलवे तमाम तरह के दावे करता रहता है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यात्रियों को क्या मिलता है यह तो बस यात्री ही समझते हैं.हम बात कर रहे हैं बक्सर रेलवे की. यहाँ यात्री सुविधाओं मैं भले ही इजाफा नहीं किया जाए लेकिन असुविधाएं निरंतर बढ़ते रह रही हैं. दरअसल, रेलवे प्रबंधन यात्रियों को प्रतिदिन स्टेशन पर लाशों के साथ ट्रेनों के इंतजार को मजबूर करता है. 

लाशों को प्लेटफ़ॉर्म पर ही रख लोगों की कर देते हैं फजीहत: 

बक्सर रेलवे स्टेशन के आसपास जहां कहीं भी ट्रेन दुर्घटनाओं का शिकार होकर लोगों की मृत्यु होती है उन सभी लोगों की लाशों को राजकीय रेलवे पुलिस द्वारा स्टेशन पर लाकर रख दिया जाता है. दुर्घटना का शिकार हुए लोगों की लाशों से निकलने वाली तीव्र दुर्गंध रेलवे के बेहतर यात्री सुविधाओं को प्रदान करने के तमाम दावों को खोखली साबित करती नजर आती है. लाशों से टपकता खून और उनकी क्षत-विक्षत अवस्था को देखकर जहाँ कमजोर दिल वालों की कई रातों की नींद गायब हो जाती है वहीं बच्चे भी डरे-सहमे रहते हैं.

बताया जाता है कि रेलवे स्टेशन पर ऐसे शवों को रखे जाने की कोई व्यवस्था नहीं होना इस परिस्थिति को जन्म देता है । रेल सूत्रों की माने तो लगभग प्रतिदिन दिन के कई घंटे लोग शवों के साथ बैठ कर अपनी ट्रेनों के इंतज़ार में बिताते हैं. बुधवार को भी ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला जब जीआरपी के सामने कई घंटों से प्लेटफॉर्म पर पर एक लाश यूँ ही पड़ी हुई थी.


यात्री ने बताया, अक्सर होता है लाशों से सामना, डर जाते हैं बच्चे:

मूल रूप से बलिया के रहने वाले तथा दिल्ली में रहकर वेब डिजाइनिंग का कार्य करने वाले मिथिलेश कुमार सिंह बताते हैं कि  दिल्ली से आने के क्रम में ट्रेन से उतरने के बाद अक्सर उनका सामना प्लेटफार्म संख्या एक पर  रखी इन लाशों से होता है.  उस समय एक तरफ तो लाशों से निकलने वाली तीव्र दुर्गंध असहनीय होती है वहीं दूसरी तरफ बच्चों के सवालों का जवाब देना भी मुश्किल हो जाता है. साथ ही साथ छत-विक्षत शव को देख कर बच्चों के मन में एक अज्ञात भय भी पैदा हो जाता है.


पुलिस ने कहा, मजबूर हैं हम: 

मामले में हमने राजकीय रेल पुलिस के थानाध्यक्ष कमलेश राय से बात की उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशन पर लाशों को रखने के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है । ऐसे में प्लेटफार्म पर लाशों को रखना उनके लिए मजबूरी हो जाती है. साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया के दुर्घटनाग्रस्त लोगों की लाशों को ठिकाने लगाने के लिए रेलवे द्वारा मात्र एक हज़ार रुपए दिए जाने की व्यवस्था है. ऐसे में लाशों को ठिकाने लगाने वाले व्यक्तियों का मान-मनौव्वल भी करना पड़ता है. इसी क्रम में लाशों को स्टेशन पर इंतजार करना पड़ता है.

यात्रियों का होता है बुरा हाल:

दुर्गंधयुक्त लाश के साथ सफर की शुरुआत करने वाले यात्रियों खासकर महिलाओं एवं बच्चों का हाल सबसे बुरा होता है. एक तरफ तो शव से निकलती हुई तीखी दुर्गंध को बर्दाश्त करना उनके बस की बात नहीं होती तो दूसरी तरफ शवों की क्षत-विक्षत अवस्था उनके जेहन में एक अंजाना भय भर देती है. प्लेटफॉर्म के अतिरिक्त ट्रेनों के इंतजार के लिए यात्रियों के पास और कोई रास्ता तो होता नहीं ऐसे में इस मजबूरी को ही स्वीकार कर लाशों के साथ ही घंटो तक समय व्यतीत करना उनके समक्ष एक मात्र विकल्प होता है.  हावड़ा जा रही अनिता राय ने बताया कि बुधवार को वह स्टेशन पर बच्चों के साथ ट्रेन पकड़ने के लिए आई थी प्रतीक्षालय भरा होने के कारण उन्हें प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार करना पड़ा प्लेटफॉर्म पर रखी दो-दो लाशों से निकल रही तीव्र दुर्गंध जीना मुहाल कर रही थी एक बार तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वह रेलवे स्टेशन पर ना होकर किसी कसाईखाने के सामने खड़ी हो. 

कहते हैं स्टेशन प्रबंधक यही है व्यवस्था:

मामले में स्टेशन प्रबंधक राजन कुमार से बात करने पर उन्होंने बताया कि शवों के अंतिम संस्कार से पूर्व उनको रखने के लिए स्थानीय स्टेशन पर कोई व्यवस्था नहीं है ऐसे में जीआरपी द्वारा उन्हें रेलवे प्लेटफॉर्म पर रखना मजबूरी है हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले को लेकर अधिकारियों से बात करने की भी कोशिश करेंगे.

बहरहाल,  परिस्थितियां चाहे जो भी लेकिन एक बात तो साफ़ है कि बेहतर यात्री सुविधाओं को प्रदान करना में रेलवे प्रबंधन फिसड्डी साबित हो रहा है.




















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