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डुमरांव राज के महाराज कमल सिंह को भारत रत्न देने की तेज हो रही आवाज ..

स्थानीय सहित उनके चाहने वालेे आज भी उन्हे अपने दिलो मेंं बिठाए रखते हैं जो कहते हैं कि बिडम्बना है कि माननीय सांसद की आर्दश प्रतिमूर्ति को आज तक भारत सरकार द्वारा सम्मान के योग्य नहीं समझा गया.

- भारतीय संसद के स्वर्णिम काल के सदस्य रहे हैं महाराजा कमल सिंह.
- शाहबाद क्षेत्र में मुक्त हस्त से किया है विकास के कार्यों में योगदान.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: भारतीय संसद के स्वर्णिम काल (1952-1962) के माननीय सदस्य महाराजा कमल सिंह सम्भवतः एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो साक्षी स्वरूप आज भी जीवित हैं. लोकसेवा के क्षेत्र में उनका अवदान अत्यंत प्रेरक एवं बेमिसाल है. आदर्श सांसद एवं जनसेवक के दुर्लभ गुणों से समन्वित उनका व्यक्तित्व अत्यंत उद्दात एवं चरित्र उज्ज्वल है. जो आज भी देश दुनिया की ख़बर रखते हैं. आज राजनीति एवं समाज मे आयी गिरावट सार्वजिनक धन का दुरुपयोग तथा लूट- खसोट से महाराजा को अपने को जनसेवक कहने वाले प्रतिनिधियों, व्यक्तियों से बेहद तकलीफ होती है. भारतीय संसद की गरिमा को गर्त में मिलाने को आतुर संसद सदस्यों के कार्यों से वो खिन्न रहा करते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसी परिस्थिति में माननीय सांसद की आदर्श प्रतिमूर्ति को आज तक भारत सरकार द्वारा सम्मान के योग्य नहीं समझा गया है. जो अफसोस एवं एवं क्षोभ की बात है. आज भारत सरकार के लिए यह गौरव की बात होगी कि महाराजा को भारत रत्न सम्मान प्रदान कर एक नई मिशाल, एक नई सोंच को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करे. ऐसा इसलिए कि स्वातंत्रयोत्तर भारत के विकास के मद्देनजर महाराजा नें मुक्त हस्त से शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रमुख क्षेत्रों में अमित दान दिया है और पुरानी संस्थाओं को दान तो दिया ही है तथा नई संस्थाओं को भी खड़ा किया है, अपने क्षेत्र (बक्सर, बिहार) के बाहर आरा, सासाराम के अतिरिक्त उत्तरप्रदेश के क्षेत्रों में इन्होंने प्रसंसनीय सेवा कार्य किया है. इसके आलावे समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं से आमजन को राहत भी पहुंचाई है. ये कुछ ऐसे कार्य हैं जो आज मशाल लेकर खोजने पर भी नहीं मिलते हैं. डुमरांव महाराजा कमल सिंह की पहचान उनकी जीवंत काल की उम्र 93 साल होनेे के वावजूद भी लोगों  के बीच अपनेे आप मेें एक गरिमा बनाई रखती है. लोगों का कहना है कि डुमरांव महाराजा के लोक सेवा के क्षेत्र में किए गए कार्य आज भी बेमिसाल हैं.  जिसका इतिहास आज भी गवाह है. देेेश की आजादी के बाद भारत के विकास के लिए महाराजा कमल सिंह ने पुराने शाहाबाद जिला (अब बक्सर, सासाराम, भोजपुर, कैमूर) के अलावा उतर प्रदेश के इलाके में खास तौर पर शिक्षा एवं स्वास्थ के क्षेत्र में मुक्त हस्त से दान देने का काम किया है. उदाहरण के तौर पर बिहार के बक्सर जिले के प्रतापसागर स्थित टीबी अस्पताल वही कुछ ही दूरी पर डुमरांव अनुमंडल के डुमरांव में डुमरांव राज अस्पताल, नगर में मौजूद दो बालिका विद्यालय सहित आरा का महाराजा कालेज, एचडी जैन कालेज सहित दर्जनों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, मंदिर, मठ-मठिया सहित कई अन्य संस्थान हैं. भारतीय संसद के स्वर्णिम काल (1952-1962) के माननीय सदस्य रहे महाराजा श्री सिंह देश के एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो 93 वर्ष की उम्र में स्थानीय सहित उनके चाहने वालेे आज भी उन्हे अपने दिलो मेंं बिठाए रखते हैं जो कहते हैं कि बिडम्बना है कि माननीय सांसद की आर्दश प्रतिमूर्ति को आज तक भारत सरकार द्वारा सम्मान के योग्य नहीं समझा गया. आपको बता दें कि महाराजा कमल सिंह का जन्म 29 सितम्बर, 1926 को डुमरांव राजगढ़ में हुआ था. महाराजा बहादुर रामरण विजय प्रसाद सिंह एवं महारानी कनक कुमारी की प्रथम संतान के रूप में कमल सिंह के जन्म होने पर काफी खुशियां मनायी गई थी. महाराज कमल सिंह की आरंभिक शिक्षा देहरादून स्थित कर्नल ब्राउन्स कैम्ब्रिज स्कूल से पूरी हुई थी. महाराजा बहादुर कमल सिंह की शादी उत्तर प्रदेश के रायबरेली स्थित तिलई इस्टेट के राजा विश्वनाथ प्रसाद सिंह की पुत्री उषा रानी के साथ संपन्न हुई थी. महाराजा के दो पुत्रों में युवराज चंद्रविजय सिंह व वधू कनिका सिंह एवं छोटे युवराज मानविजय सिंह व पुत्रबधु अरूणिका सिंह सहित पोता व पोतियो से भरा-पूरा परिवार है. वही इनके चाहने वालो में इन्हे भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग तेजी से होने लगी है.

- बक्सर टॉप न्यूज़ के लिए शंकर पांडेय की रिपोर्ट
























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