सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ के साथ पूज्य सदगुरुदेव महोत्सव शुरु ..
उन्होंने आगे कहा कि 'सरल' का अर्थ कोई सरल नही होता. अर्थ बताते हुए कही की स का मतलब सीता यानी भक्ति, र का मतलब राम यानी ज्ञान और ल का मतलब लक्ष्मण यानी बैराग.जिस व्यक्ति में यह तीनों हो वही व्यक्ति सरल हो सकता है
- नारायण दास भक्तमाल मामा जी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित है कार्यक्रम
- अवध धाम से पधारी संत ने की राम कथा की अमृत वर्षा.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: पूज्य सद्गुरुदेव पुण्य स्मृति के प्रथम दिन मामाजी के प्रथम शिष्य रामचरित्र दास जी महाराज के द्वारा मन्दिर प्रांगण में सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ कर शुभारंभ किया गया. वहीं सोमवार को दिन के दस बजे से भक्त चरित्र का पाठ किया गया. दोपहर में अवध धाम से पधारी सन्त सुश्री सुप्रिया जी ने श्री राम की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि अगर आपने पूर्व जन्म पाप किये हैं तो इस जन्म में भी पाप ही मन में भरा होगा, अगर मन मे पाप है तो कभी कथा में मन नही लग सकता हैं. इससे मुक्ति पाने के लिए एक मात्र ही रास्ता है श्री राम नाम का जाप. उन्होंने आगे कहा कि 'सरल' का अर्थ कोई सरल नही होता. अर्थ बताते हुए कही की स का मतलब सीता यानी भक्ति, र का मतलब राम यानी ज्ञान और ल का मतलब लक्ष्मण यानी बैराग.जिस व्यक्ति में यह तीनों हो वही व्यक्ति सरल हो सकता है.
रात्रि में हुआ मामा जी की लिखी जय विजय लीला का मंचन:
श्री सद्गुरुदेव पुण्य स्मृति में आयोजित 11वॉ वर्ष के प्रथम दिन रात्रि की श्री रामलीला में जय-विजय प्रसंग का लीला का आयोजन पूज्य श्री मामा जी महाराज के परिकरों द्वारा तथा स्थानीय कलाकारों के द्वारा किया गया.
इस दौरान दिखाया गया कि भगवान विष्णु शेषशैया पर सोए हुए हैं. श्री लक्ष्मी जी अपने कोमल हाथों से उनके कमल के समान पांव को दबा रही हैं. इसी क्रम में सप्त ऋषियों की टोली भगवान के सम्मुख पहुंचती है. भगवान विष्णु की प्रार्थना करते हुए सप्त ऋषि कहते हैं कि भगवान विष्णु फूलों से भी कोमल हैं तथा वज्र से भी कठोर हैं. यह सुनते ही माता लक्ष्मी के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि ऋषियों का कथन सत्य कैसे हो सकता है? भगवान कमल के समान कोमल तो हैं लेकिन वज्र के समान कठोर कैसे हो सकते हैं? माता लक्ष्मी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए भगवान विष्णु अपने पार्षदों जय-विजय से कहते हैं कि तुम दोनों मुझ पर वज्र का प्रहार करो, लेकिन जय-विजय अपने स्वामी के ऊपर बज्र का प्रहार करने से इनकार कर देते हैं. इस पर भगवान विष्णु कहते हैं कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि तुम लोग मुझ पर वज्र से प्रहार करोगे.
दूसरे दृश्य में दिखाया जाता है कि सनकादिक ऋषि तपस्या में बैठे हैं, वह क्षीर सागर जाकर भगवान के दर्शन करने की बात सोचते हैं। जिसके बाद वह क्षीर सागर पहुंच जाते हैं. वहां पर जय-विजय नामक दोनों पार्षद द्वार पर ही महर्षि को अंदर प्रवेश करने से रोक देते हैं. वह कहते हैं कि हम ऐसे-वैसे किसी भी व्यक्ति को अंदर प्रवेश नहीं करने दे सकते. इतना सुनते ही महर्षि क्रोधित हो जाते हैं तथा दोनों पार्षदों को राक्षस बनने का श्राप दे देते हैं. साथ ही यह भी कहते हैं कि यह श्राप श्राप तीन जन्मों तक रहेगा. एक जन्म में तुम लोग रावण एवं कुंभकरण बनकर जन्म लोगे. जिसका संहार श्री रामावतार के द्वारा किया जाएगा. दूसरे जन्म में हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप के रूप में तुम जन्म लोगे जिसका संहार भगवान के वाराह अवतार तथा नरसिंह अवतार के द्वारा होगा. तीसरे जन्म में दंतवक्र तथा शिशुपाल बनोगे इसमें भी तुम्हारा संहार भगवन के द्वारा ही किया जाएगा.
वही जय विजय को श्राप के बाद भगवान विष्णु के सामने घुटने टेक कर कहता है आपके मनोगत भावों के स्पष्टीकरण के पश्चात अब कोई हानि ग्लानि के भाव का लेश भी शेष नही रहता. आप जब भी चाहे अपने इस सेवकों का जहाँ भी जैसे भी उपयोग करें हमें कोई आपत्ति नही.
कार्यक्रम में रामलीला व्यास श्री नरहरि दास जी महाराज, नमोनारायण उपाध्याय, रवि लाल, अखिल विश्व बचा जी, दीन दयाल शरण, श्याम जी, रामू, अशोक मिश्रा, कुश, नीतीश, सतीश, रमन, प्रिंस, अंकित, रामबचन, अनिमेष, राजेश, रमेश, विनीता दीदी समेत अन्य भक्त मौजूद रहे.![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUrhqLv4W3H4b7ilyWnk8prItoNGzeHZG7xfq1uxqXHR3mAhA6DHqUl3pfMQrqU5B6yZJ9-F6YEMkUD-pkCeUFViykYnu0yptw5jSM0bCFjMHpVWp9pGcsNUbq9SoKYKPy5JJTL1W70h8/s1600/BannerMaker_16022019_212736.png)
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