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वीडियो: अश्विनी चौबे को नहीं पता संसदीय क्षेत्र के अस्पतालों का हाल, कहते हैं- "गलत है रिपोर्ट, यहाँ तो ऑल इज वेल" ..

विभाग की उदासीनता पर गौर करें तो वित्तीय वर्ष 2016-17 के बाद से दवाओं का टेंडर नहीं हो रहा है. बताया जाता है कि पहले टेंडर प्रक्रिया में बहुत सारी दवा कंपनियां हिस्सा लेती थी जिससे कि किसी भी दवा की अनुपलब्धता की बात सामने नहीं आती थी. लेकिन टेंडर प्रक्रिया बंद होने के कारण कई जीवन रक्षक दवाओं का भी अभाव है.

- बक्सर पहुंचे केंद्रीय मंत्री से सवाल पूछने पर कहा सब कुछ है ठीक
- आंकड़ों के मुताबिक नहीं हो पाई है दवाओं की खरीद.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सदर अस्पताल के अतिरिक्त जिले के तमाम स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं का घोर अभाव है. बताया जा रहा है कि दवाओं की खरीद में विभाग ही रुचि नहीं दिखा रहा है. जिसके कारण यह अभाव पैदा हुआ है स्थिति यह है कि कुछ दिनों पहले सदर अस्पताल की
औचक जांच करने पहुंचे डीएम को बुखार की मामूली दवाई पैरासिटामोल तक नहीं मिली थी. बताया जा रहा है कि यहां जहां ओपीडी में 71 दवाओं की जरूरत होती है वहीं, केवल 44 दवाएं ही यहां उपलब्ध है. वही आईपीडी में 96 दवाओं में से 33 दवाएं ही यहां मिलती हैं. 

मामले में जब स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे से सवाल पूछे गए तो उन्होंने कहा कि दवाओं की अनुपलब्धता की बात बिल्कुल ही गलत है. सभी दवाएं अस्पताल में उपलब्ध हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि श्री चौबे को अपने ही संसदीय क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था के हाल की जानकारी नहीं है.


84 लाख की राशि में केवल 12 लाख रुपये की दवा ही खरीद सका विभाग:

बताया जा रहा है कि जिला दवा भंडार दवाओं की खरीद में रुचि नहीं दिखाता. वित्तीय वर्ष 2018-19 में ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवाओं की खरीद के लिए 84 लाख रुपयों का आवंटन जिला दवा भंडार को दिया गया लेकिन इस राशि से केवल 12 लाख 99 हज़ार 721 रुपये की दवा खरीदी गई. बाकी पैसे विभाग को लौटा दिए. गए बताया जा रहा है कि बिहार मेडिकल सर्विसेज इंफ्रास्ट्रक्चर कारपोरेशन लिमिटेड में सभी दवाएं उपलब्ध नहीं थी. समस्या यह भी है कि  बी.एम.एस.आई.एल. के द्वारा तय दवाओं के मूल्य से बाज़ार दर पर दवाएं भी नहीं खरीदी जा सकती.

टेंडर के पेंच में अटकी है रोगियों की जान:

दवाओं की अनुपलब्धता के कारण कई रोगियों की जान के भी लाले पड़ जाते हैं. लेकिन विभाग की उदासीनता पर गौर करें तो वित्तीय वर्ष 2016-17 के बाद से दवाओं का टेंडर नहीं हो रहा है. बताया जाता है कि पहले टेंडर प्रक्रिया में बहुत सारी दवा कंपनियां हिस्सा लेती थी जिससे कि किसी भी दवा की अनुपलब्धता की बात सामने नहीं आती थी. लेकिन टेंडर प्रक्रिया बंद होने के कारण कई जीवन रक्षक दवाओं का भी अभाव है.
देखें वीडियो: 









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