Header Ads

अपनी मिट्टी में उपजा शुद्ध आहार बनाएगा स्वस्थ एवं समृद्ध- विनय कुमार

हमारे यहाँ 366 किस्म की देशी गायों में केवल 40 किस्म की गायें बची हैं. खेतों में खुद से बनाया हुआ जैविक खाद प्रयोग कर विदेशी स्वस्थ एवं समृद्ध बन रहे. लेकिन, हम विदेशियों की नकल में सिर्फ अपने पर्यावरण बल्कि अपने स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं.

- आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम में पहुंचे थे पर्यावरणविद विनय कुमार
- कहा, किसान स्वयं के बनाए हुए जैविक खाद से बढ़ा सकते हैं धरती की उर्वरा शक्ति.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: "जो शुद्ध प्रसाद हम अपने भगवान को अर्पित करते हैं, वैसा ही भोजन हम अंदर के भगवान को नहीं दे पाते. नतीजा यह होता है कि, हम बीमार पड़ने लगते हैं और हमें चिकित्सालय के चक्कर लगाने पड़ जाते हैं. हमें स्वस्थ रहने के लिए अपनी ही मिट्टी की चीजों की आवश्यकता है ना कि, किसी विदेशी खाद्य पदार्थ की." यह कहना है श्री श्री रविशंकर के बेंगलुरु आश्रम से पहुंचे प्रख्यात पर्यावरणविद विनय कुमार का. मंगलवार को आर्ट ऑफ लिविंग के बक्सर सेंटर पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने बताया कि आज के समय में लोग ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं. ऐसा केवल दूषित खाद्य पदार्थों के कारण होता है. उन्होंने बताया कि भारत ने खेती की जो तकनीक वर्षों पूर्व अपनाई थी वह आजकल विदेशों में प्रचलित है. जो गायें हम पालते थे वह अब विदेशी पालते हैं. वह सांढ़ की भी रक्षा करते हैं. हमारे यहाँ 366 किस्म की देशी गायों में केवल 40 किस्म की गायें बची हैं. खेतों में खुद से बनाया हुआ जैविक खाद प्रयोग कर विदेशी स्वस्थ एवं समृद्ध बन रहे. लेकिन, हम विदेशियों की नकल में सिर्फ अपने पर्यावरण बल्कि अपने स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि, सृष्टि चलती रहे इसके लिए सर्वप्रथम भोजन की आवश्यकता होती है. हम क्या खाते हैं यह सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है. आज लोग दिखावे में पढ़कर पैकेज्ड फूड खाने में ज्यादा विश्वास करते हैं. जबकि, वह सेहत के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होते हैं. क्योंकि, उन्हें ज्यादा दिनों तक  सुरक्षित रखने के लिए उनमें खतरनाक रसायन मिलाए जाते हैं. उन्होंने कहा कि, आज के समय में लोगों को जो फायदे देसी गाय के शुद्ध दूध पीने से होंगे वह फायदे उन्हें कभी जर्सी गाय अथवा प्लास्टिक के पैकेट में मिलने वाले दूध से नहीं होंगे. वहीं, खेतों में ताबड़तोड़ रासायनिक खादों के प्रयोग से हम ना सिर्फ अपने बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों की बर्बादी पर तुले हुए हैं.

उपयोग की तुलना में नहीं हो पा रहा भूमिगत जल का रिचार्च:

उन्होंने कहा कि जिस तेजी से हम भूमिगत जल का उपयोग करते हैं. उस तेजी से भूमिगत जल को रिचार्ज नहीं कर पाते. इसका प्रमुख कारण है कुओं, तालाबों आदि का खत्म हो जाना. ऐसे में हर व्यक्ति को चाहिए कि, अपनी धरती से प्यार करें तथा बच्चों को भी यह शिक्षा बचपन से दें. उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि, जैविक खाद वह स्वयं भी बना सकते हैं. इसके लिए वह अपने खेतों में गोबर के प्रयोग से वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं. इसके साथ ही खेतों में तुलसी वगैरह के पौधे लगाकर भी प्राकृतिक रूप से खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है. मौके पर आर्ट ऑफ लिविंग बक्सर सेंटर के दीपक पांडेय, वर्षा पांडेय के साथ-साथ समाजसेवी डॉ. हनुमान प्रसाद अग्रवाल, पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष मीना सिंह, नेत्री लता श्रीवास्तव समेत कई समाजसेवी तथा प्रबुद्ध जन उपस्थित थे.













No comments