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Buxar Top News: मानव जीवन के लिए ई-कचरा बना खतरा, सही निपटान नहीं करने पर सात साल की सज़ा ...

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: पर्यावरण व स्वास्थ्य को लेकर अभी बिहार सहित हमारे देश में पूरी तरह जागरुकता नहीं आई है। प्रदूषण जैसे अहम मुद्दे तो विकास के नाम पर पीछे छूट गए हैं। ऐसे में ई (इलेक्ट्राॅनिक) कचरे के बारे में बिहार के लोगों को बिलकुल भी जानकारी नहीं है। तकनीक में हो रहे लगातार बदलावों के कारण उपभोक्ताओं के नए-नए इलेक्ट्राॅनिक उत्पादों से घर भर रहे हैं। ऐसे में पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देते या फेंक देते हैं, और यहीं से आरम्भ होती है ई-कचरे की समस्या।

ई-कचरा जैसे तकनीकी मुद्दे पर आरटीआई एक्टिविस्ट अमित राय द्वारा चलाये जा रहे अभियान का असर प्रधानमंत्री कार्यालय तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर तो दिखा। परंतु हम जैसे व्यक्तियों को इससे कोई प्रभाव नही पड़ता। अमित राय ने ई-वेस्ट को लेकर जो आंदोलन छेड़ा है उससे काफी गंभीर बातें उभर कर सामने आई हैं। ई-कचरा से बढ़ रहे समस्याओं व इससे संबंधित नियम के बारे में कुछ ऐसे रोचक जानकारीयां सामने आई हैं जिसके बारे में देश के प्रत्येक नागरिकों का जानना आवश्यक है।


क्या है ई-कचरा:

ई-कचरा आई.टी./इलेक्ट्रॉनिक्स कम्पनियों से निकलने वाला यह कबाड़ है, जो तकनीक में आ रहे परिवर्तनों और स्टाइल के कारण निकलता है। जैसे बड़ी संख्या में खराब मोबाइल कचरे में ही जा रहे हैं। जबकि इलेक्ट्रानिक कचरा की समस्या मोबाइल के अलावा इस्तेमाल के बाद बेकार हुए कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज, इनवर्टर, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने
आदि से भी पैदा होता है।


स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरा:

इलेक्ट्राॅनिक चीजों को बनाने के उपयोग में आने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं। इनमें से कुछ चीजें तो रिसाइकिल करने वाली कम्पनियाँ ले जाती हैं, लेकिन बहुत से चीजें कचरे में चली जाती हैं। वे हवा, मिट्टी और भूजल में मिलकर जहर का काम करता है।

जलाना और दबाना दोनों खतरनाक:

ई-कचरे को दबाना और जलाना दोनों खतरनाक है। खुले में अगर ई-कचरे को जलाया जाये तो इससे निकलने वाली गैसें पर्यावरण को असंतुलित करती हैं। इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को जलाने से कार्सेनोजेन्स- डाईबेंजो पैरा डायोक्सिन (टीसीडीडी) एवं न्यूरोटॉक्सिन्स जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती हैं। इन गैसों से मानव शरीर में प्रजनन क्षमता, शारीरिक विकास एवं प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही हार्मोनल असंतुलन व कैंसर होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी जनित होती है। जो वायुमण्डल व ओजोन परत के लिये बेहद हानिकारक है।


ई-कचरा (प्रबंधन एवं हथलन) अधिनियम में बदलाव:


आरटीआई एक्टिविस्ट एवं युवा समाजसेवी अमित राय द्वारा इस अधिनियम को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय एवं पर्यावरण मंत्रालय में कई बार शिकायत कर कहा गया था कि "पर्यावरणीय दृष्टि से इलेक्ट्रॉनिक कचरा के संबंध में प्रख्यापित नियम- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार के अधिसूचना संख्या- एसओ 1035 (ई.) ई-कचरा (प्रबंधन एवं हथालन) अधिनियम-2011 प्रख्यापित किया गया। जो 1 मई, 2012 से संपूर्ण भारत वर्ष में लागू भी हुआ। परंतु इसपर गंभीरता से कभी कार्य नही हुआ, इसके चलते पर्यावरण और लोगो के स्वास्थ्य को काफी नुकसान हो रहा है। इस अधिनियम के तहत कोई भी ऐसा कार्य नही हो रहा जिससे ई-कचरा से होने वाले खतरे को अभी या भविष्य में रोका जा सके। बिहार में तो इसके प्रति जागरूकता का भी आभाव है। इस अधिनियम में बदलाव किया जाय ताकि इसे प्रभावी बनाया जा सके।"
उक्त शिकायत के आलोक में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भेजे पत्र में बताया गया है कि ई-कचरा (प्रबंधन तथा निपटान) नियम, 2011 को बदलकर ई-कचरा प्रबंधन नियमावली-2016 को अधिसूचित कर दिया गया है। शिकायत को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एडिशनल डायरेक्टर आनंद कुमार द्वारा भी दी गई जानकारी से पता चलता है कि अब नियमों को और अधिक कठोर बनाया गया है और इससे पर्यावरण संचालन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता झलकती है। ई-कचरा नियमों में कंपैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प (सीएफएल) तथा मरकरी वाले अन्य लैम्प और ऐसे उपकरण शामिल किए गए हैं। यह नियम विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) के अंतर्गत उत्पादकों को लाएंगे और इनके लक्ष्य भी तय होंगे। उत्पादकों को ई–कचरा इकट्ठा करने और आदान-प्रदान के लिए जिम्मेदार बनाया गया है। बड़े उपभोक्ताओं को  भी कचरा इकट्ठा करना होगा और अधिकृत रूप से रिसाइक्लिंग करने वालों को देना होगा। विभिन्न उत्पादक पृथ्क उत्पादक दायित्व संगठन (पीआरओ) रख सकते हैं और ई-कचरा इकट्ठा करने तथा पर्यावरण के तरीकों के अनुसार इसका निष्पादन सुनश्चित करेंगे। नष्ट करने तथा रिसाइकिल करने के काम में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कौशल विकास सुनिश्चित करने की भूमिका राज्य सरकारों की है।


नियमों की हो रही है अनदेखी:


आरटीआई एक्टिविस्ट अमित राय ने कहा कि वर्ष 2010 में शहरों के चुनिंदा स्थानों पर ई-वेस्ट के लिए डस्टबिन लगाने की योजना बनाई गई थी, ताकि वहां एकत्र ई-वेस्ट को पुनर्चक्रण के लिए आगे भेजा जा सके। लेकिन अब भी स्थिति ज्यों की त्यों है। नियमो के अनदेखी से शहर में ई-वेस्ट की समस्या कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। ई-वेस्ट के प्रबंधन व भंडारण के लिए पूरे देश में नियम लागू किया गया है। इसके अंतर्गत ई-वेस्ट का निस्तारण किया जा सकता है।

ई-अपशिष्ट नियमावली में सजा का प्रावधान:


अमित ने बताया कि नए नियम में ई-कचरे का उचित निपटान न करने वाले को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 एवं ई-कचरा प्रबंधन अधिनियम-2016 के तहत सात साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों भी भुगतने पड़ सकते हैं। वही, जुर्माना न भरने और नियमों का उल्लंघन जारी रखने पर रोजाना पांच हजार रुपये अतिरिक्त जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। ई-वेस्ट रखने और बैट्री के कचरे से जुड़े लोगों के लिए भी यह सजा का प्रावधान है। नियम के मुताबिक ई-वेस्ट खरीदना व बेचना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं।

उन्होंने कहा कि ई-कचरे को नष्ट करने और रिसाइकिल करने की एक प्रक्रिया एक प्राधिकरण केन्द्र प्रणाली से सरल बनाई गई है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरे देश में एकल प्राधिकार देगा। अब ई-कचरे की आवाजाही को और अधिक कठोर बना दिया गया है। आपको बता दें कि हम प्रतिवर्ष 20 लाख टन से ज्यादा ई-कचरा तैयार करते हैं और इसमें प्रतिवर्ष 5-8 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।

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