Hindi Top News: जीते जी मौत को छकाने वाले स्टीफन हॉकिंग का 76 वर्ष की आयु में निधन, कहा था- आने वाले 200 वर्षों में हो जायेगा धरती का विनाश !
महज 32 वर्ष की उम्र में वह ब्रिटेन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र के सदस्य बने जबकि पांच साल बाद ही वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गए. उनकी तुलना महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से की जाती थी और यह वही पद था जिस पर कभी महान वैज्ञानिक आइंस्टीन भी नियुक्त थे.
- - 200 वर्षों में हो जाएगा धरती का विनाश कह कर फैलाई थी सनसनी.
- - बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैक होल, प्रकाश शंकु और ब्रह्मांड के विकास के बारे में नई खोजों का किया था दावा.
हिंदी टॉप न्यूज़, दिल्ली: असाध्य बीमारी एएलएस नाम से पीड़ित स्टीफन
हॉकिंग चिकित्सा विशेषज्ञों के तमाम दावों को झुठलाते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी के
76 साल बिताए. बुधवार को उनकी कैंब्रिज में उनके घर पर
ही निधन होने की खबर आई.
एक हंसता खेलता बचपन बिताने के बाद युवावस्था में किसी को यह पता चले
कि आने वाले समय में वह हिल-डुल भी नहीं पाएगा, तो इसे
स्वीकार कर पाना उसके लिए बेहद मुश्किल होगा. शायद वह जीते जी ही मर जाए लेकिन स्टीफन
एक मिसाल हैं. उन्होंने न सिर्फ इसे स्वीकारा, बल्कि लकवाग्रस्त
होने के बाद भी सामान्य जीवन जीने का कोशिश की. कैंब्रिज में अपनी पढ़ाई पूरी की,
प्रोफेसर बने, शोध किए, ब्रह्माण
के कई रहस्यों को सुलझाया, बोल न पाने की स्थिति में कम्प्यूटर
की सहायता से व्याख्यान दिए और देश-विदेश की यात्राएं भी कीं. अपनी जीजिविषा और उत्साह
से जिस तरह स्टीफन ने अपनी शारीरिक अक्षमता को लात मारी उससे सदियों तक लोग प्रेरणा
लेते रहेंगे.
उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि हम सभी यह जानते है कि हम
कहां से आए हैं. वह सिर्फ महान वैज्ञानिक ही नहीं थे बल्कि एक महान लेखक भी थे.
उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम ने बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैक होल, प्रकाश शंकु और
ब्रह्मांड के विकास के बारे में नई खोजों का दावा कर दुनिया भर में तहलका मचाया था.
इस पुस्तक की 10 लाख से अधिक प्रतियों में बिक चुकी है. इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद हॉकिंग न सिर्फ आम जनता में लोकप्रिय
हो गए थे बल्कि विज्ञान जगत का चमकता सितारा भी बने थे.
1974 में ही हॉकिंग ने दुनिया को अपनी सबसे महत्वपूर्ण
खोज ब्लैक होल थ्योरी से दी थी. उन्होंने बताया था कि कैसे ब्लैक होल क्वांटम
प्रभावों की वजह गर्मी फैलाते हैं. महज 32 वर्ष की उम्र में वह ब्रिटेन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र
के सदस्य बने जबकि पांच साल बाद ही वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गए.
उनकी तुलना महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से की जाती थी और यह
वही पद था जिस पर कभी महान वैज्ञानिक आइंस्टीन भी नियुक्त थे.
जिस तरह स्टीफन की बीमारी दुर्लभ थी, उसी तरह जीवन को लेकर उनका उत्साह भी दुर्लभ था। वरना, जब मेडिकल तथ्यों के साथ दो साल बाद उनकी मौत हो जाने की घोषणा डॉक्टरों ने
की होगी, तब किसने सोचा होगा कि वे 76 वर्ष की उम्र में दुनिया
से विदा लेंगे, वह भी विज्ञान को इतना कुछ देने के बाद ! हॉकिंग
पूरी तरह से व्हील चेयर पर ही रहते थे और चल फिर नहीं सकते. उन्होंने बातचीत के
लिए कंप्यूटर का सहारा लिया था. 21 वर्ष की आयु में ही उनकी बीमारी को देखते हुए
डॉक्टरों का मानना था कि वह पांच साल से ज्यादा जिंदा
नहीं रह सकेंगे. लेकिन वह हर बार इन दावों को झुठलाते
रहे. हॉकिंग ने अपने व्हील चेयर को इतना आधुनिक बनाया था और उसमें इतने उपकरण लगाए थे जिसकी मदद से वह न केवल रोजमर्रा के काम करते थे बल्कि अपने
शोध में भी जुटे रहते थे. बीते बरसों में हॉकिंग
ने अपने सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर
अरुण मेहता से भी संपर्क किया था.
2007 में विकलांगता के बावजूद उन्होंने विशेष रूप से
तैयार किए गए विमान में बिना गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र में उड़ान भरी. वह 25-25 सेकेण्ड के कई चरणों में गुरुत्वहीन
क्षेत्र में रहे. इसके बाद उन्होंने अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने सपने के और
नजदीक पहुचने का दावा भी किया. वहीं उन्होंने स्वर्ग की परिकल्पना को सिरे से
खारिज कर दिया था. उन्होंने स्वर्ग को सिर से डरने वालों की कहानी करार दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें मौत से डर नहीं लगता बल्कि इससे जीवन का और
अधिक आनंद लेने की प्रेरणा मिलती है हॉकिंग ने ये भी कहा है की हमारा दिमाग एक
कम्पूटर की तरह है जब इसके पुर्जे खराब हो जाएंगे तो यह काम करना बंद कर देगा. खराब हो चुके कंप्यूटरों के लिए स्वर्ग और उसके
बाद का जीवन नहीं है. स्वर्ग केवल अंधेरे से डरने
वालों के लिए बनाई गई कहानी है. अपनी किताब द ग्रैंड
डिजायन में प्रोफेसर हॉकिंग ने कहा है कि ब्रह्मांड खुद ही बना है. यह बताने के लिए विज्ञान को किसी देवी शक्ति की जरूरत नहीं है.
प्रोफेसर हॉकिंग ने यह कहकर भी सनसनी फैला दी थी कि 200 साल के भीतर धरती का विनाश हो जाएगा. 2010
में दिए अपने इस बयान में हॉकिंग ने कहा था कि बढ़ती आबादी, घटते संसाधन और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा लगातार धरती पर मंडरा
रहा है. अगर इंसान को इससे बचना है तो अंतरिक्ष में आशियाना बनाना पड़ेगा. विपरीत
परिस्थितियों में जिंदा रहने के सिद्धांत का हवाला देते हुए हॉकिंग ने कहा की पहले
इंसान के अनुवांशिक कोड में लड़ने-जूझने की जबरदस्त शक्ति थी.
100 साल बाद यदि इंसान को अपना अस्तित्व बचाना है तो धरती को
छोड़कर कोई दूसरा ठिकाना खोजना होगा.
हालांकि, हौसले के लिए जितनी तारीफ स्टीफन की होती है उतनी ही तारीफ की हकदार उनकी पूर्व पत्नी जेन भी हैं. स्टीफन की देखभाल में जेन ने अपना जीवन समर्पित कर दिया. जिस तरह स्टीफन का संघर्ष एक मिसाल है, उसी तरह जेन का प्यार भी लोगों के लिए उदाहरण है. जेन को उनसे प्यार तब हुआ जब वह पूरी तरह स्वस्थ थे, उनसे शादी करने का फैसला उन्होंने तब लिया जब उन्हें बीमारी का पता चला और उनका साथ तब दिया जब वह पूरी तरह बीमारी की चपेट में आ जुके थे. उनके इस फैसले पर स्टीफन और जेन दोनों के ही माता-पिता ने सवाल उठाए, उन्हें आने वाली मुश्किलों के बारे में समझाया लेकिन अपने फैसले पर वह अडिग रहीं.
शादी के बाद दोनों एक-दूसरे के संतंभ बने रहे। जब जेन का हौसला टूटता तो स्टीफन की बातें उन्हें प्रेरणा देतीं और जब स्टीफन कमजोर होते तो जेन का साथ उनमें उत्साह भरता. जेन ने स्टीफन का बच्चे की तरह ध्यान रखा. घर में हर चीज को इस तरह से सजाया कि व्हीलचेयर से ही स्टीफन उन तक पहुंच सकें. कई यात्राओं में उनका साथ दिया और अपने बच्चों की परवरिश इस तरह की कि उन्हें अपने पिता की अपंगता का एहसास न हो। हालांकि, बाद में दोनों अलग हो गए, लेकिन गाढ़े समय में जेन ने अपना रिश्ता पूरे निस्वार्थ भाव से निभाया.
हालांकि, हौसले के लिए जितनी तारीफ स्टीफन की होती है उतनी ही तारीफ की हकदार उनकी पूर्व पत्नी जेन भी हैं. स्टीफन की देखभाल में जेन ने अपना जीवन समर्पित कर दिया. जिस तरह स्टीफन का संघर्ष एक मिसाल है, उसी तरह जेन का प्यार भी लोगों के लिए उदाहरण है. जेन को उनसे प्यार तब हुआ जब वह पूरी तरह स्वस्थ थे, उनसे शादी करने का फैसला उन्होंने तब लिया जब उन्हें बीमारी का पता चला और उनका साथ तब दिया जब वह पूरी तरह बीमारी की चपेट में आ जुके थे. उनके इस फैसले पर स्टीफन और जेन दोनों के ही माता-पिता ने सवाल उठाए, उन्हें आने वाली मुश्किलों के बारे में समझाया लेकिन अपने फैसले पर वह अडिग रहीं.
शादी के बाद दोनों एक-दूसरे के संतंभ बने रहे। जब जेन का हौसला टूटता तो स्टीफन की बातें उन्हें प्रेरणा देतीं और जब स्टीफन कमजोर होते तो जेन का साथ उनमें उत्साह भरता. जेन ने स्टीफन का बच्चे की तरह ध्यान रखा. घर में हर चीज को इस तरह से सजाया कि व्हीलचेयर से ही स्टीफन उन तक पहुंच सकें. कई यात्राओं में उनका साथ दिया और अपने बच्चों की परवरिश इस तरह की कि उन्हें अपने पिता की अपंगता का एहसास न हो। हालांकि, बाद में दोनों अलग हो गए, लेकिन गाढ़े समय में जेन ने अपना रिश्ता पूरे निस्वार्थ भाव से निभाया.
मौत को इतने दिनों तक छकाने के बाद स्टीफन आज दुनिया से चले गए. आपका
नाम उन वैज्ञानिक सिद्धांतो के साथ अमर रहेगा जो आपने दिए हैं. आप उन तमाम रहस्यों
में जिंदा रहेंगे जिन्हें सुलझाने की चुनौती आप अन्य वैज्ञानिकों को देकर गए हैं. आपका
वजूद सदियों तक उन लोगों में रहेगा जो आपसे प्रेरणा लेकर जीना सीखेंगे.
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