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बड़ी खबर: सामने आया स्वास्थ्य विभाग का बड़ा घोटाला, प्रशासन की भूमिका पर उठ रहे सवाल ..

बावजूद विभाग और जिला प्रशासन दोनों मौन साढ़े हुए हैं. इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ. उषा किरण वर्मा ने कहा कि एजेंसी से पूछताछ की जाएंगी. उन्होंने डीपीएम से भी इस सम्बन्ध में पूछे जाने की बात कही.
-  स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटर के साथ हुआ है बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा.
- प्रति माह 12,161 की जगह 9,020 रुपये का किया भुगतान, विभाग और प्रशासन दोनों मौन.
- लोक शिकायत में मामला जाने के बाद विभाग ने की थी सीधे भुगतान की व्यवस्था, प्रशासन ने किया बदलाव.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जिले के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत संजीवनी डाटा ऑपरेटरों के भुगतान में इंफोसिस्टम सोल्युशन नमक एजेंसी ने एकबार फिर सेंधमारी की है। एजेंसी ने प्रति माह 12,161 की जगह महज 9,020 रुपये की दर से ऑपरेटरों को भुगतान किया है. जबकि जिले में ही कार्यरत दूसरी एजेंसी जीनियस ने अन्य डाटा ऑपरेटरों को 10,270 रूपये के दर से भुगतान किया है. बावजूद विभाग और जिला प्रशासन दोनों मौन साढ़े हुए हैं. इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ. उषा किरण वर्मा ने कहा कि एजेंसी से पूछताछ की जाएंगी. उन्होंने डीपीएम से भी इस सम्बन्ध में पूछे जाने की बात कही.
पिछले साल डाटा ऑपरेटरों ने एजेंसी द्वारा बेवजह प्रति माह 3,000 रुपये की कटौती के मामले को जब लोक शिकायत में दर्ज कराई और एजेंसी जब इसका जवाब नहीं दे पायी कि वह 3,000 रुपये प्रति माह किस मद में काट रही है तो लोक शिकायत ने स्वास्थ्य विभाग को पूरा पैसा भुगतान कराने और प्रति माह 3,000 के दर से काटी गई राशि की एजेंसी से वसूली का निर्देश दिया तो एजेंसी ने भुगतान करने से हाथ खड़ा कर दिए तब 11,000 की जगह एजेंसी 8,000 का भुगतान करती थी. उसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने जिला स्वास्थ्य समिति से सीधे भुगतान करना प्रारम्भ किया और कई माह तक डाटा ऑपरेटरों को 11,000 की दर से भुगतान किया. इसी बीच नए सिविल सर्जन ने जिले में योगदान किया. तत्कालीन सीएस ने भी एक बारगी 11,000 के दर से भुगतान किया लेकिन फिर उन्होंने इसमें अडंगा डाल दिया और मामले को जिला प्रशासन के सुपुर्द कर दिया. तब वेतन को लेकर डाटा ऑपरेटरों के हड़ताल के दौरान जिला प्रशासन ने नियमों का हवाला देते हुए सीधे भुगतान की प्रक्रिया पर रोक लगा दी और उसी एजेंसी को दोबारा जिम्मेवारी सौंप दी. प्रशासन की दखल के बाद एजेंसी ने पिछले वित्तीय वर्ष के कुछ महीने का भुगतान 8,900 रुपये के दर से किया. और अब जबकि चालू वित्तीय वर्ष में सरकार ने ईपीएफ काटने के बाद 12,161 रूपये के भुगतान का आदेश दिया है तो एजेंसी ने 9,020 रूपये के दर से ही भुगतान किया है. जबकि इसी व्यवस्था में दूसरी एजेंसी ने 10,270 रूपये का भुगतान किया है. अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि एक ही जिले में दो एजेंसी दो तरह का भुगतान कैसे कर सकती है. सीएस ने भी इस पर आश्चर्य जताया और एजेंसी से पूछताछ करने की बात कही. बड़ा सवाल यह भी कि, आखिर एजेंसी बार-बार ऐसा क्यों कर रही है और उसके बाद भी विभाग उसे क्यों ढो रहा है.












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