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"अईसन दूल्हा ना देखनी नगर में .." मंडप में हास-परिहास के बीच विधिपूर्वक श्रीराम की हुई जनकनंदिनी ..

विवाह महोत्सव में देश के विभिन्न भागों से अनेकों साधु संत पधारे हुए थे. इस दौरान पूरा विवाह स्थल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा. बक्सर में जनकपुर के दर्शन पाने की अभिलाषा लिए ठंढ के मौसम में भी लोग पूरी रात वहाँ से टस से मस नहीं हुए.
विवाह स्थल पर मौजूद राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न

- विधि विधान के साथ भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों का हुआ विवाह.
- जनकपुर में दुल्हे सरकार से मां, बहनों, पिताजी व बाबा का नाम पूछ सखियों ने उड़ाया मजाक.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नगर के नया बाजार स्थित श्री सीता विवाह महोत्सव आश्रम में आयोजित नौ दिवसीय सीताराम विवाह महोत्सव अगहन शुक्ल पंचमी रविवार को सिय-रघुवीर विवाह के साथ सम्पन्न हो गया. विवाह के दौरान नया बाजार में अलौकिक दृश्य देखने को मिला. इस दौरान मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास जी महाराज, आइजी परेश सक्सेना के साथ ही मामाजी महाराज के कई शिष्य तथा देश-विदेश से पहुँचे श्रद्धालु इस इस अलौकिक क्षण के साक्षी बने वहीं जिलाधिकारी राघवेंद्र सिंह तथा आरक्षी अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा भी विवाह स्थल पर देर रात तक जमे रहे. 
आनंद विभोर होकर नृत्य करती श्रद्धालु


धूमधाम से जनकपुर पहुंची बारात, बैंड-बाजे की धुन पर नाच रहे थे श्रद्धालु: 

बारात में गुरु वशिष्ठ व राजा दशरथ हाथी पर सवार होकर तथा चारों भाई राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न पहले घोड़े पर सवार होकर जनकपुर के राजा जनक के द्वार पहुंचते हैं. इस दौरान बारात में शामिल श्रद्धालुगण बैंड बाजे की धुन पर थिरकते नजर आए बारात नाचते गाते जनकपुर पहुंचे,जहां महाराज जनक के द्वार पर द्वारपूजा की रस्म पूरी की जाती है. द्वार पूजा के बाद पुनः चारों भाई जनवासे में लौट जाते हैं. इस दौरान विवाह लीला की देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी कई श्रद्धालु पूरी रात इस अलौकिक दृश्य के साक्षी बन स्वयं की अभिभूत महसूस कर रहे थे. 


द्वार पूजा के साथ हुआ विवाह का शुभारंभ: 

रात्री नौ बजे द्वारपूजा के साथ आरम्भ हुए विवाह समारोह में दर्जनों महिलायें सजधज कर द्वारपूजन के लिए तैयार रही. इस दौरान उन्होंने पुष्प वर्षा की और नाचते-गाते हुए नजर आयी. 


परिछन विधि के लिए इंतज़ार करती महिलाएं

लोढ़े से हुआ सुकुमार दूल्हों का परिछन, सीता की सखियों ने उड़ाया मजाक: 

द्वार पूजा के बाद लौट कर जनवासे में विराजमान चारों दूल्हा सरकार पुनः विवाह की रस्म आगे बढ़ाने के लिए पालकी पर सवार होकर राजा जनक के द्वार पर पहुंचते हैं जहां सिया जी की सखियां भगवान की आरती उतारती हैं और लोढ़ा लेकर परिछन करने की विधि सम्पन्न कराती हैं. इसके बाद पुनः चारों दुल्हा सरकार मंडप में आते हैं. और धानकुटन की विधि की जाती है. इस दौरान सखियां दुल्हों से मां, बहनों, पिता जी व बाबा का नाम पूछकर मजाक उड़ाती हैं और धानकुटन की विधी सम्पन्न कराती हैं.  इस दौरान जनकपुर के चार लोग दूल्हों की मदद करने के लिए  मण्डप में आते हैं इसी दौरान चारों दूल्हा सरकारों  को कच्चे धागे के बंधन से बांधने की विधि पूरी की जाती है.


कन्या परीक्षण विधि में सखियों के मज़ाक में फंस गए चुलबुलवा दूल्हा :

इसके बाद कन्या परीक्षण की विधि शुरु की जाती है, जिसमें चारों भाइयों के हाथों में आम का पल्लव देती हैं और अपनी दुल्हन के उपर डाल कर उन्हें पहचानने को कहती हैं. जिसमें तीन भाई तो अपनी दुल्हन को पहचान लेते हैं परंतु, लक्ष्मण जी के साथ सखियां मजाक कर देती हैं और दुल्हन के जगह पुरूष को बैठा देती हैं. क्योंकि लक्ष्मण सबसे ज्यादा चुलबुले दुल्हा है और अपने को सबसे चतुर दुल्हा मानते है जैसे ही दुल्हन के रुप में मौजूद जनकपुर के पुरुष सामने आता है वह लक्ष्मण से अनुरोध करता है कि वह उसे भी साथ अयोध्या ले चलने की ज़िद करने लगता है. बाद में लक्ष्मण को उनकी असली दुल्हन के दर्शन कराए जाते हैं.


विधि-विधान से पूरी हुई कन्यादान की रस्म:

इसके बाद शुरु होती है विवाह की रस्म जिसमें चारों कन्याओं सीता, उर्मिला, मांडवी एवं श्रुतिकीर्ति को महाराज जनक जी व उनकी पत्नी द्वारा कन्यादान की रस्म पूरी कराई जाती है. कन्यादान के साथ ही लावा मिलाई की रस्म करवाई जाती है जिसमें आश्रम के महंत राजाराम शरण दास जी महाराज की देख रेख में मामा जी के एक शिष्य ने इस रस्म को पूरा करवाया.


इस विवाह महोत्सव में देश के विभिन्न भागों से अनेकों साधु संत पधारे हुए थे. इस दौरान पूरा विवाह स्थल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा. बक्सर में जनकपुर के दर्शन पाने की अभिलाषा लिए ठंढ के मौसम में भी लोग पूरी रात वहाँ से टस से मस नहीं हुए.

50 वें सिय-पिय मिलन महोत्सव के सफल आयोजन को लेकर जताया आभार: 

इसके साथ ही महर्षि खाकी बाबा सरकार के 50 वें निर्वाण दिवस के अवसर पर आयोजित सिय-पिय मिलन महोत्सव संपन्न हो गया. महंत राजाराम शरण दास जी महाराज ने इस महाआयोजन के लिए सभी को धन्यवाद दिया.
















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