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Buxar Top News: बक्सर में नहीं मरता है रावण !!


बक्सर में हर साल रावण वध के बाद यह मान लिया जाता है कि रावण मारा गया, पर अपने शहर में क्या     रावण वास्तव में मारा जाता है? जवाब तलाश रहे हैं कौशलेंद्र ओझा..

 - किला में मारा जाता है रावण.
- फिर भी जिन्दा रहता है रावण.
बक्सर टॉप न्यूज़: बक्सर में दस सिर वाले रावण का वध हर विजयादशमी को किला मैदान में किया जाता है, कागज़ और बांस के पुतले में पटाखा बांध हर साल रावण को ' उड़ा ' देते है जो वाक़ई किसी के मौत का मनोरंजन का जरिया होता है।
तथापि बक्सर का रावण अभी तक मरा ही नहीं !

1. ज्ञान का रावण:
जिले में विद्यालयों और महाविद्यालयों की नितांत कमी के बीच योग्य शिक्षकों की कमी आज तक खलती हैं, कहने को तो यह विश्वामित्र की धरती है लेकिन गणित विज्ञान अंग्रेज़ी यहाँ तक कि हिंदी और संस्कृत के ' विश्वामित्र' भी नहीं हैं और जो है वे ज्ञान के रावण है!

2.धर्म का रावण:

ज़िले में धर्म का रावण अभी तक मरा ही नहीं उल्टे अब वह और छद्म और क्रूर दिखने लगा है ।
बचपन में मैं स्वंय त्रिदंडी स्वामी जी का ज्ञान यज्ञ का साक्षी रहा हूँ, इतने ताम झाम तो नहीं दिखता था और वे हमेशा शास्त्रीय बातें करते थे और चूँकि वे स्वंय धार्मिक किताबों के लेखक भी थे तो वेद उपनिषद की चर्चा अक्सर करते थे।
अब धार्मिक पुस्तके रामरेखा घाट पर भी नहीं है और अब आस्था का मेला लगता है ज्ञान कथा नहीं हो पाती है।अभी आरा में ही आयोजन 'ज्ञान कथा समारोह' का बजट 350 करोड़ रुपए की है और यह बात मेरे एक रिश्तेदार ने ढाई लाख रुपये देने के बाद बताई है। अब हमलोग धर्म को भी उत्सव का स्वरूप देकर कई आडंबरों से बांध दिए हैं जिसका नतीजा है कि धर्म गोल हो गया और उत्सवधर्मिता बढ़ गई नहीं तो शहर में पहले शिवजी की ही बारात निकलती थी अब जलभरी, कलश स्थापना साई जी की पालकी, राणी सती का जुलूस सहित मुस्लिम समाज का भी जुलूस निकालने लगा हैं जो शास्त्रीय कदापि नहीं है।
धर्म अब आडंबर सा हो गया है धार्मिक अनुष्ठान उत्सवधर्मिता के रूप हो गए है।
अतः धर्म का रावण अभी इस शहर में एक दूसरे स्वरूप में है।

3. समाज का रावण
बक्सर में समाज का रावण सबसे खौफ़नाक स्वरूप में हैं।जो सबसे घृणित है वह पूज्यनीय होते जा रहा हैं, जो समाज मे हिंसा और अराजकता का कारक हैं उसी से हम समाज की गंदगी दूर करने की गुस्ताखी कर रहे है।शहर में बच्चियों, महिलाओं बुजुर्गों के प्रति हिंसा बढ़ा हैं और वह अब वीभत्स भी हो गया है लेकिन अब हम लड़ सकने में अक्षम हो गए है,और हिंसा फैलाने वालों का कोफ़्त बढ़ भी गया है। जिस स्कूल में छेडख़ानी के आरोपी को तत्कालीन प्राचार्य दयाशंकर सिंह स्वंय पीटा हो वह अब समाज धर्म का ठीकेदार हो गया है यह बस स्खलित होते समाज का बानगी मात्र है। यानि समाज का रावण और विकराल हुआ है।

4 . भ्रष्टाचार का रावण:
ज़िले में शासन द्वारा भ्रष्टाचार का रावण भी जिंदा है।यह महज़ संयोग नहीं है कि इस वर्ष एक दर्जन लोकसेवक भ्रष्टाचार में जेल गए हैं जिसमे जिला कल्याण पदाधिकारी ,ज़िला शिक्षा पदाधिकारी एक पुलिस इंस्पेक्टर एक अंचलाधिकारी यह सब समाज में फैले भ्रष्टाचार के मोहरे हैं आखिर कौन इन्हें पैसा कमाने दे रहा है?  अतः शासन का भ्रष्टाचार बढ़ा है स्वरूप भी बदला है लेकिन उसका रावण अभी ज़िंदा है।



5. पत्रकारिता का रावण:

यह रावण और बहुरूपिया है यह हर अखबार के दफ्तरों और उसके विवरों में छिपा रहता हैं इसे हिंदी नहीं आती फिर भी हिंदी में लिखना मजबूरी है गोया कि दूसरी भाषा का इल्म ही नहीं हैं।
इसपर लिखना दूसरे पर ही छोड़ता हूँ, लेकिन इसका रावण हर दफ्तर और चौराहे पर मिल जाता हैं।


अब प्रश्न उठता है कि ऐसे रावण केवल विजयादशमी के दिन ही मारे जा सकते है क्या?
क्या किला मैदान ही वध का उपयुक्त स्थल है क्या?
क्या पटाख़ों से ही मारे जा सकते है क्या?

आपके उत्तर का इंतजार है!!



(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)











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