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Buxar Top News: लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्याय को तरस रहा है एक परिवार, जमानत मिलने के बाद भी बच्चों समेत एक साल से जेल में बंद हैं सभी ...

सजा में रिहाई हो जाने के बाद भी एक साल से अधिक समय से काराधीन है एक ठग परिवार.

- मासूम बच्चे भी भुगत रहे हैं परिजनों के पापों की सज़ा.
- दो साल पहले हुए लाखों की ठगी के हैं आरोपी.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: हमारे देश में फास्ट ट्रैक न्यायालय के गठन के बाद से फटाफट न्याय देने देने की व्यवस्था हो चुकी है. मामलों का त्वरित निबटान, लोगों की जल्द न्याय दिलाना इस कोर्ट पहचान है. 

हालांकि, न्यायालय से न्याय जल्द मिले न मिले पर जमानत मिलते ही हर आरोपी तुरंत जेल से बाहर निकलने की फ़िराक़ में लगा रहता है.

वहीं यदि कोई आरोपी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जमानत मिलने के बाद भी वर्षों तक जेल की दीवारों से बाहर न निकले तो यह अपने आप में किसी आश्चर्य से कम नहीं ! ऐसी परिस्थिति में यह सवाल भी उठता है कि आखिर वह कौन सी मजबूरी है जो किसी आरोपी को जमानत मिलने के बाद भी जेल की सलाखों के पीछे रहने को मजबूर करे? क्या वह मजबूरी दोषपूर्ण न्याय व्यवस्था की है? अथवा किसी के स्वेच्छा से ऐसा निर्णय लिया गया होगा? आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम किस प्रकार की बातें कर रहे हैं? क्या ऐसा भी कोई होगा जो जमानत मिलने के बाद भी बाहर नहीं आए? 

आपको बता दें कि ऐसा हुआ है और मामला कहीं दूर का नहीं बल्कि हमारे बक्सर से ही जुड़ा हुआ है जहाँ न्यायालय से जमानत मिलने के बाद भी एक आरोपी परिवार लगभग एक साल से जेल में ही अपने दिन गुजार रहा है. 

दरअसल, बक्सर जेल में क़रीब दो साल से काराधीन ठग मोहन लाल अग्रवाल को जमानत मिले एक साल से ऊपर हो गया है लेकिन जमानतदार नहीं मिलने से उनका पूरा परिवार जेल में ही हैं, पत्नी बेटे-बेटियाँ, बहू, पोते-पोतियां सब जेल में ही हैं. उनकी गिरफ्तारी नाटकीय घटनाक्रम में हुई थी जब वे ठगी करने सीतामढ़ी जा रहे थे. उन पर बक्सर में सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में गायों को आपूर्ति करने के नाम पर 37 लाख रुपये की ठगी का प्राथमिकी दर्ज है.
ख़बर जेल में जमानत मिलने तक ही नही है, ख़बर यह कि इस देश मे उनका कोई सत्यापित पता पुलिस के पास नहीं है. केस डायरी में पुलिस ने उनके परिवार का बताया हर पता का जांच कराया है, जो फर्जी निकला है.
उनके पास न वोटर आईडी है न आधार है न पता है न कोई रिश्तेदार है. बस वे निठल्ले देशवासी हैं और पेशा ठगी करना है.

दूसरी तरफ़ बक्सर न्यायालय के अधिवक्ता श्याम नारायण चौबे ने उनको अब तक की विधिक सेवा इस आस में की है कि उन्हें भी कभी न कभी उनकी फीस मिल ही जाएगी. अधिवक्ता के अनुसार उन्होने अग्रवाल के दो बेटों को स्थानीय जमानतदारों के माध्यम से जेल से मुक्त कराया कि वे बाहर निकल कर पैसे और जमानतदार लायेंगे और बाप को परिवार सहित छुड़ा लेंगे लेकिन वे आज तक नहीं आये. सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्यों बेटे अपने बूढ़े बाप और पूरे परिवार को यूं जेल में छोड़ भाग गए?

अधिवक्ता बताते हैं कि मोहन लाल अग्रवाल का पूरा परिवार अनपढ़ हैं, अंगूठा लगाते है. तो क्या यह माना जाए कि अशिक्षा  के कारण परिवार के बेटों को रिश्तों की कद्र करने का सलीका भी नहीं आया ..

फ़िलहाल बड़ा सवाल यह है कि क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे ही न्याय कहते हैं?
 














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