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Buxar Top News: शुरु हुआ पंचकोशी-यात्रा का महाआयोजन, मर्यादा पुरुषोत्तम ने शुरु की थी परम्परा, बक्सर में लिट्टी-चोखा के भोग के साथ होगा सम्पन्न..

पंचकोसी परिक्रमा की तैयारी पूरी हो गयी है. आज से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच परिक्रमा शुरू होगी. 

- त्रेता युग से चली आ रही परंपरा.
- ताड़का वध के बाद श्री रामचन्द्र ने पांच कोस की यात्रा कर लिया था ऋषियों का आशीर्वाद.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: पंचकोसी परिक्रमा की तैयारी पूरी हो गयी है. आज से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच परिक्रमा शुरू होगी. परिक्रमा का पहला पड़ाव अहिरौली में होगा. 12 नवंबर तक यह परिक्रमा चलेगी, जिसके बाद परिक्रमा निर्धारित रूटों से होते हुए बसांव मठिया पहुंचेगी, जहां साधु-संतों की विदाई देकर यात्रा की समाप्ति की जायेगी. इसको लेकर जिला प्रशासन द्वारा व्यापक इंतजाम किये गये हैं. निर्धारित रूटों पर सुरक्षा बल के जवानों को तैनात किया गया है. 



वहीं स्वास्थ्य विभाग को भी शिविर लगाने का निर्देश दिया गया है. बता दें कि त्रेतायुग से यह परंपरा चली आ रही है. पंचकोसी परिक्रमा पांच विभिन्न स्थलों पर आयोजित की जाती है. सभी आयोजन स्थलों पर मान्यता के अनुसार रात्रि विश्राम किया जाता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है. 

पंचकोसी परिक्रमा को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं.पहले दिन पूजा के साथ शुरू होगी यात्रा : पहले दिन रामरेखा घाट पर स्नान एवं रामेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद परिक्रमा का जत्था अहिरौली पहुंचेगा, जहां रात्रि विश्राम होगा. 

यह पहला पड़ाव होगा इसके बाद यात्रा पुन: दूसरे दिन प्रारंभ होगी जो नदांव स्थित नारद सरोवर पहुंचेगी. यह दूसरा पड़ाव होगा. इसके बाद यात्रा भभुअर यात्रा पहुंचेगी, यह तीसरा पड़ाव होगा. यहां पर भार्गव सरोवर है जहां पर लोग स्नान करेंगे. चौथा पड़ाव बड़का नुआंव होगा, जहां अंजनी सरोवर पर लोग स्नान कर रात्रि विश्राम करेंगे. पांचवां पड़ाव चरित्रवन होगा, जिसके बाद यह यात्रा संपन्न हो जायेगी.



हर पड़ाव पर अलग-अलग बनता है प्रसाद  : अहिरौली में अहल्या देवी की पूजन के बाद प्रसाद के रूप में भक्त पुआ-पकवान ग्रहण करते हैं. 

दूसरा पड़ाव नारद सरोवर पर खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. तीसरे पड़ाव भभुअर में भक्त चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं. बड़का नुआंव स्थित अंजनी सरोवर पर भक्त सत्तू एवं मूली का प्रसाद ग्रहण करते हैं. अंतिम पड़ाव चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते हैं.



त्रेता युग से कायम है परंपरा : पंचकोसी परिक्रमा त्रेता युग से कायम है. भगवान श्री राम त्रेता युग में विश्वामित्र की यज्ञ को पूर्ण कराने एवं ताड़का की वध करने के उपरांत नगर के पांच ऋषि-मुनियों के पास गये थे. सभी ऋषि-मुनियों के पास प्रसाद ग्रहण किये थे तथा रात्रि विश्राम किये थे. इसी मान्यता के अनुरूप आज भी यह प्राचीन परंपरा कायम है.
 














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