Buxar Top News: लोकतंत्र में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपका मज़बूत हथियार: जानिए क्या है आरटीआई?
किसी भी खुफिया एजेंसी की ऐसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो, को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है.
- भारतीय नागरिकों को संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार देता है आरटीआई.
- खुफिया एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन होने और इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी ली जा सकती है.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भारतीय नागरिकों को संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार देता है. इस अधिनियम के अनुसार, ऐसी इन्फर्मेशन जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता. इसलिए अब अगर आपके स्कूल के टीचर हमेशा गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों में मशीन खराब होने के नाम पर जांच न हो, हेल्थ सेंटरों में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अधिकारी काम के नाम पर रिश्वत मांगें या फिर राशन की दुकान पर राशन ही न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं. आरटीआई एक्ट की धारा 4 के पूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी देश में पारदर्शिता आयोग के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियों में है. धारा 4 के पूर्ण कार्यान्वयन से आशय सूचना तक आसान पहुंच, पारदर्शिता और जवाबदेही से है. इस धारा के तहत सरकारी विभागों के लिए सक्रिय रूप से सूचनाएं सार्वजनिक करना अनिवार्य है.
लोकतंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ उपयोगी हथियार
सरकारी कार्यप्रणाली में खुलापन और पारदर्शिता लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लाया गया. यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत बनाने, हटाने, जनता को अधिकारों से लैस बनाने और देश के विकास में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हुआ है.
यहां नहीं लागू होता कानून
किसी भी खुफिया एजेंसी की ऐसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो, को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. निजी संस्थानों को भी इस दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन इन संस्थाओं की सरकार के पास उपलब्ध जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग से प्राप्त किया जा सकता है. खुफिया एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन होने और इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी ली जा सकती है. अन्य देशों के साथ भारत के संबंध से जुड़े मामलों की जानकारी को भी इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है.
हमें क्या करना चाहिए ?
* एक सूचना लेनी है तो लेनी है, बीच में नहीं छोड़ना है. कागजात व्यवस्थित करके रखने हैं.
* सूचना को अंजाम तक पहुँचाना ही है ताकि इसका मजाक बनना बंद हो.
* सूचना के अधिकार की बारीकियों को समझना है.
*महीनों तक तसल्ली रखनी है लेकिन कागजात लगातार घिसने हैं, अधिकारियों को कानून भी समझाना है तो अपनी नीयत भी साफ कर देनी है कि पीछा छूटने वाला नहीं है.
* योजना से नहीं भटकना है. जो मन में आया उसमें नहीं लगना है.
इस संगठित विधि से हम सूचना के अधिकार को उस मुकाम पर पहुंचा देंगे, जिसके लिए यह बना है. हमें मानकर चलना है कि यह असली आजादी और लोकतंत्र के लिए संघर्ष है और थोड़ी मेहनत करनी होगी. किसी भी मोड़ पर निराश नहीं होना है.
:अमित राय, आरटीआई एक्टिविस्ट, बिहार
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