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Buxar Top News: झूठी व्यवस्था की हकीकत: जिलाधिकारी के सख्त तेवर होने के बावजूद आंगनवाड़ी केंद्र की बदहाल व्यवस्था पर नहीं है कोई सुनवाई !



जिलाधिकारी ने समीक्षा बैठक में आंगनबाड़ी केंद्रों की समीक्षा के दौरान अधिकारियों को व्यवस्था सुधारने के निर्देश दिए थे हालांकि, मातहत उनके निर्देशों को मानने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे.


- पढ़ने के लिए स्लेट नहीं खाने के लिए प्लेटों की गिनती के लिए चल रहे हैं आंगनबाड़ी केंद्र.
- बच्चों की उपस्थिति के गुणा गणित में बीतता है सेविकाओं का समय.
- जिलाधिकारी की फटकार का भी नहीं है अधिकारियों पर असर.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नौनिहालों की प्रारंभिक पाठशाला  के रूप में जाने जाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों पर हो रही अनियमितता को लेकर अक्सर जिलाधिकारी के सख्त तेवर होने के बावजूद अधिकारी लापरवाही नहीं छोड़ रहे हैं.  

ऐसा हम नहीं कह रहे हैं आंगनबाड़ी केंद्र की वास्तविक स्थिति यह सब बयान करने के लिए काफी है एक दिन पहले जिलाधिकारी ने समीक्षा बैठक में आंगनबाड़ी केंद्रों की समीक्षा के दौरान अधिकारियों को व्यवस्था सुधारने के निर्देश दिए थे हालांकि, मातहत उनके निर्देशों को मानने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे.


आंगनबाड़ी केंद्रों की सच्ची तस्वीर जनता को दिखाने के लिए  जब हम सदर प्रखंड के छोटका नुआंव पंचायत के बड़का नुआंव गांव पहुंचे तो वहां की स्थिति आश्चर्य में डालने वाली थी. ना तो वहां बच्चों के पोषाहार की बेहतर व्यवस्था थी और ना ही उनके पढ़ाई-लिखाई की किसी को चिंता.  केंद्र की संचालिका सुशीला देवी ने बताया कि सुबह 6:00 बजे से 1:30 बजे तक संचालित होने वाले केंद्र में बच्चों की कुल संख्या तकरीबन चालीस है. बच्चों को सुबह दस बजे से पहले गुड़-चूड़ा पोषाहार के रूप में दिया जाता है. इसके बाद दोपहर में बारह बजे के करीब भोजन के रुप में खिचड़ी दी जाती है. 

भूखे बच्चे कर रहे थे पोषाहार का इंतजार, उपस्थिति पत्रक के गुणा गणित में लगी थी सेविका: 

हालांकि, शनिवार को सुबह साढ़े दस बजे तक बच्चों को चूड़ा-गुड़ नहीं मिला था. जब हमने इस पर सवाल उठाया तो तुरंत दिए जाने की बात कही पर शायद उनके द्वारा कही जाने वाली बात सच नहीं प्रतीत हो रही थी. क्योंकि घड़ी में समय साढ़े दस हो रहा था तथा सेविका बच्चों की उपस्थिति पंजी के गुणा-गणित में उलझी हुई थी. उन्होंने हमें बताया कि अभी तक दस-बारह बच्चे ही मौजूद हैं हैं. कुछ बच्चे बाहर गए हैं. जब हमने बार-बार यह पूछा कि अन्य बच्चे कहाँ हैं तो उन्होंने पहले तो कोई सही जवाब नहीं दिया.

सेविका के घर बनती है दाल लाने जाते हैं मासूम:

हालांकि उन्होंने बाद में यह बताया कि बाकी बच्चे उनके घर पर पकी हुई दाल लाने के लिए गए हैं. पहले तो इस बात पर  हमें आश्चर्य हुआ कि तीन साल के बच्चे  क्या  ऐसा कुछ कर सकते हैं? हालांकि कई बार पूछने पर भी उन्होंने यही दूर है  उन्होंने यह भी बताया उनकी सहायिका ललिता कुमारी केंद्र में पढ़ने वाले अन्य बच्चों को लाने के लिए गांव में चली जाती हैं. तथा बच्चे सेविका के घर जाकर पकी हुई दाल लेकर आते हैं.

पढ़ाई के संसाधन है नाकाफी:

आंगनबाड़ी केंद्रों में आने वाले पढ़ाई के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों में दरअसल विशेष कुछ पढ़ाना लिखाना नहीं होता है. बस बच्चों को क ख ग घ लिखना सिखाते हैं. बातों-बातों में उन्होंने यह भी बताया कि बच्चों के पास लिखने पढ़ने के लिए पर्याप्त स्लेट भी नहीं है. केंद्र में मौजूद दस- बारह स्लेटों के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया जाता है.

ज्यादा उपस्थिति दर्शाना ही होता है एक मात्र उद्देश्य: 

आंगनबाड़ी सेविका के पास स्मार्टफोन दिया गया है ताकि वह प्रतिदिन बच्चों की उपस्थिति बाल विकास परियोजना पदाधिकारी को भेज सके. श्रीकांत स्मार्टफोंस कार्य बखूबी उपयोग करती हैं एवं स्थिति पंजी में मनमुताबिक उपस्थिति बाल विकास परियोजना पदाधिकारी को भेज देती हैं. सूत्रों की माने तो हर आंगनबाड़ी केंद्र के द्वारा एक निश्चित राशि हर माह घूस के तौर पर भ्रष्ट अधिकारियों को देनी होती है. ऐसे में वह भी मजबूर होकर भ्रष्टाचार के इस खेल में शामिल हो जाती हैं.


पदाधिकारी ने कहा-यही है व्यवस्था,  नहीं कर सकते हैं कुछ भी: 

मामले में हमने बाल विकास परियोजना पदाधिकारी गुंजन कुमारी से बात की. उन्होंने जो बात कही वह बात अफसरशाही के गुरूर से भरी हुई थी. उनके लिए भी बच्चों भविष्य  निर्माण की बातें सोचना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था. उन्होंने कहा की जो व्यवस्था है वह यही है. इसी व्यवस्था में सबको चलना है. इसलिए इस मामले में कुछ भी नहीं किया जा सकता. संभवत:  वह जिलाधिकारी द्वारा एक दिन पूर्व ही दी गई चेतावनी को भी भूल गई थी. लोगों का यह भी मानना है कि यह व्यवस्था हाथी के दांत की तरह हो जो खाने के अलग और दिखाने के अलग होते हैं. 















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