Buxar Top News: सांसद, विधायक तथा सिविल सर्जन के विरुद्ध परिवाद पर शुरु हुई राजनीति, भ्रामक खबरों पर न्यायालय सख़्त ..
अभियोगी ने न्यायालय में दिए अपने परिवाद में बताया है कि विगत 16 सितंबर की रात्रि तकरीबन 11:45 बजे पेट में दर्द होने की शिकायत पर वह नगर थाना क्षेत्र स्थित वेलनेस सेंटर में इलाज कराने के लिए गई
फ़ाइल इमेज |
- नगर थाना क्षेत्र की रहने वाली महिला ने दायर किया परिवाद.
- न्यायालय के फैसले को लेकर गर्म है अफवाहों का बाज़ार.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: व्यवहार न्यायालय के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में स्थानीय नगर थाना क्षेत्र का बंगला घाट के निवासी किरन जायसवाल(34 वर्ष), पति गोविंद प्रसाद जायसवाल के द्वारा मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी किरण कुमार लाल, सदर विधायक संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी तथा सांसद अश्विनी कुमार चौबे के विरुद्ध जनता को मूर्ख बनाने से संबंधित एक परिवाद दायर किया गया है. इस परिवार में अभियोगी किरन जायसवाल द्वारा मामले में सुसंगत धाराओं के अंतर्गत तीनों व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अनुरोध न्यायालय से किया है. परिवाद दायर होने के बाद न्यायालय ने अभियोगी के आवेदन के आलोक में संबंधित थाने को दंड प्रक्रिया संहिता 156 (3) के तहत अनुसंधान का आदेश दिया है.
उद्घाटन के अगले दिन ही हवा-हवाई साबित हुआ था 24 घंटे तक सेवा का दावा:
अभियोगी ने न्यायालय में दिए अपने परिवाद में बताया है कि विगत 16 सितंबर की रात्रि तकरीबन 11:45 बजे पेट में दर्द होने की शिकायत पर वह नगर थाना क्षेत्र स्थित वेलनेस सेंटर में इलाज कराने के लिए गई, लेकिन वहां मौजूद नाइट गार्ड द्वारा बताया गया कि वैलनेस सेंटर में अभी किसी प्रकार की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है.
जनप्रतिनिधियों पर लगाया जनता को छलने का आरोप:
अपने आवेदन में अभियोगी ने बताया है कि मामले की जानकारी सिविल सर्जन को देने के पश्चात उन्होंने भी उन्हें फटकार लगाते हुए भगा दिया गया. जबकि, उक्त वेलनेस सेंटर का सांसद अश्विनी कुमार चौबे एवं सदर विधायक मुन्ना तिवारी द्वारा एक नहीं बल्कि दो बार उद्घाटन किया गया है. ऐसे में इन तीनों लोगों के विरुद्ध जनता को मूर्ख बनाने अथवा छलने का आरोप लगा कर संबंधित धाराओं के अंतर्गत परिवाद दायर किया जाए. साथ ही यह भी अनुरोध किया गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता 156 (3) के तहत उक्त परिवाद को संबंधित थाने को भेजने की कृपा की जाए.
न्यायिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार परिवादी के आवेदन पर विचार करते हुए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने मामले को संबंधित थाने को भेजते हुए मामले में अनुसंधान कर आगे की कार्रवाई करने का आदेश दिया है. दूसरी तरफ मामले में सिविल सर्जन किरण कुमार लाल ने बताया है कि आउटसोर्सिंग की व्यवस्था नहीं होने के कारण अभी 24 घंटे सेवा नहीं मिल पा रही है. हालांकि, उन्होंने बताया कि तकरीबन 15 दिनों में 24 घंटे की सेवा मिलने लगेगी.
कहते हैं वरीय अधिवक्ता, अनुसंधान के बगैर नहीं हो सकती है कारवाई:
मामले में वरीय अधिवक्ता आनंद मोहन उपाध्याय ने बताया कि न्यायालय द्वारा अगर धारा 156(3) के तहत परिवाद को संबंधित थाने में भेजा जा रहा है तो इसका मतलब कतई यह नहीं होगा कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध अभियोग लाया गया है उसे अभियुक्त मान लिया जाए. बल्कि न्यायालय द्वारा संबंधित थाने को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवाद के तथ्यों का अवलोकन करते हुए मामले का अनुसंधान कर न्यायालय को अवगत कराए. जाँचोपरांत ही यहां तय किया जा सकता है कि मामले में आरोपित बनाए गए लोग अभियुक्त है अथवा नहीं. तत्पश्चात आगे की कार्रवाई की जाती है. ऐसे में एफआईआर किए जाने की बात अगर कही जाती है तो यह जल्दीबाजी होगी.
अफवाह फैलाने वालों के विरुद्ध कारवाई:
कानूनी जानकारों की मानें तो इस तरह का मामला केवल सुर्खियां बटोरने अथवा अपनी राजनीति चमकाने के लिए लाया गया है. हालांकि, परिवाद दायर होने के बाद इसको लेकर जम कर राजनीति की जा रही है. विभिन्न दलों के लोग मामले को गलत अथवा सही बताने में व्यस्त हैं. शिवसेना के शाहबाद प्रमुख राहुल चौबे का कहना है कि इस तरह के मामलों की आड़ में कुछ लोग अपनी राजनीति को चमका रहे हैं. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि से वैलनेस सेंटर मैं 24 घंटे सेवा उपलब्ध नहीं है. लेकिन इसका निदान इस तरह परिवाद दायर करने से नहीं होगा. अगर जनता वाकई अपने जनप्रतिनिधियों से त्रस्त है तो वह उसे आगामी चुनाव में अपने वोट के माध्यम से जवाब दे सकती है. वहीं विभिन्न समाचार माध्यमों ने भी न्यायालय के आदेश को तोड़-मरोड़ कर दिखाया गया है. न्यायिक सूत्रों के मुताबिक न्यायालय के आदेश के संबंध में भ्रामक जानकारी फैलाने के मामले में भी न्यायालय सख्त है. दरअसल, न्यायालय के द्वारा एफआईआर का आदेश दिए जाने की बात कह कर सोशल साइट्स तथा विभिन्न समाचार माध्यमों द्वारा अफवाह फैलाई गयी थी. न्यायालय का मानना है कि इस तरह की बातों के द्वारा न्यायालय के कार्यक्षेत्र में दखल दिया जा रहा है.
श्रीमान् चौबेजी आप भी तो मामले में बेवजह दखल दे रहे हैं। प्रार्थी का परिवाद गलत लग रहा है और जो हो रहा है वो सही है। मामला न्यायालय में है, शायद इसी बहाने जनता की सुविधा बहाल हो जाय और जनप्रतिनिधी जनता को झांसा देना छोड दें।
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