49 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव: कृष्ण भक्ति में डूबी मीरा, त्याग दी सारी दुनिया ..
मीरा चरित्र का मंचन किया गया. इस दौरान दिखाया गया कि कृष्ण भक्ति में डूबी मीरा कैसे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से गुजरती हुई अंततः श्री कृष्ण में ही समाहित हो जाती है.
- मीरा बाई चरित्र प्रसंग को देखकर अभिभूत हुए श्रद्धालु.
- सुबह से लेकर देर शाम तक चल रहे हैं आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण आयोजन.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: 49 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव के महाआयोजन से ऋषियों-महर्षियों की धरती बक्सर में अलौकिक छटा दृश्यमान हो रही है. देश-विदेश से साधु-संतों तथा श्रद्धालुओं का जत्था बक्सर पहुंच रहा है. दूसरी आयोजन स्थल के आसपास विभिन्न प्रकार के मेलों तथा मीना बाजार भी सज गए हैं. जिसके कारण भक्ति के इस महाआयोजन में आने वाले लोग अपने पूरे परिवार के साथ अध्यात्म के साथ-साथ मेले का भी लुत्फ उठा रहे हैं। सुबह रामचरित मानस के पाठ से शुरु होने वाले इस महाआयोजन में कृष्ण तथा रामलीला के मंचन के साथ ही भक्तों को विभिन्न संतों की अमृतवाणी सुनने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है.
शनिवार की सुबह कृष्ण लीला के दौरान मीरा चरित्र का मंचन किया गया. इस दौरान दिखाया गया कि कृष्ण भक्ति में डूबी मीरा कैसे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से गुजरती हुई अंततः श्री कृष्ण में ही समाहित हो जाती है.
पूर्व जन्म में मीरा का जन्म ब्रज धाम में होता है जहां बचपन से ही मीरा की मां ने मीरा को यह कह रखा होता है, कि कभी भी श्री कृष्ण को अपना मुख नहीं दिखाना. क्योंकि श्री कृष्ण तो जादूगर हैं वह जादू कर देंगे. धीरे-धीरे समय बीतता रहता है. एक दिन इंद्र के कोप से ब्रज वासियों की रक्षा के लिए जब श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठा लेते हैं तो उस वक्त वह गोपी भगवान कृष्ण के मोहित कर देने वाले स्वरूप को देखती है और उनकी आराधना करने लगती है. तब भगवान कृष्ण उनको वचन देते हैं कि "अगले जन्म में मैं तुम्हें गिरधर गोपाल के रूप में मिलूंगा."
बाद में उस गोपी का का जन्म राजस्थान के मेड़ता में मीरा के रूप होता है जहां वह बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा में खासा रुचि रखती हैं. उनके भाई जयमल ने सही समय पर उनका विवाह मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ कर दिया. विवाह के पश्चात भी मीरा गिरधर गोपाल की भक्ति में तल्लीन रहती थी. जिसे देखते हुए राजा भोजराज ने उनके लिए एक दूसरा महल बनवा दिया जिसमें वह अपने भजन-कीर्तन में तल्लीन रहती थी. तथा राजा स्वयं दूसरा विवाह कर अलग महल बना कर रहने लगे. कुछ दिनों बाद राजा भोज राज तथा उनकी दूसरी पत्नी की भी मृत्यु हो गई, तत्पश्चात राणा सांगा के छोटे पुत्र विक्रम तथा विक्रम की बहन उदा ने मीराबाई को मारने के कई प्रयत्न किए. कभी भोजन में विष डाल कर तो कभी सर्प भेजकर. हालांकि, हर बार भगवान कृष्ण ने मीरा की रक्षा की. अंततः मीरा ने घर छोड़ दिया तथा वह वृंदावन चली गई. कुछ दिन वृंदावन रहने के पश्चात वह द्वारिकापुरी आ गई तथा भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगी. इसी बीच मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा. ब्राह्मणों ने बताया कि मेवाड़ को मीरा का श्राप लगा है. अगर उन्हें बुला बुला लिया जाए तो यह श्राप खत्म हो जाएगा. उस समय तक विक्रम के स्वभाव में भी परिवर्तन आ गया होता है. वह द्वारिकापुरी पहुंचकर मीराबाई से वापस चलने की बात कहता है, लेकिन मीराबाई इस बात से इनकार करते हुए दौड़ते हुए द्वारिका नाथ के मुख में प्रवेश कर जाती है. हालांकि, मीराबाई को पकड़ने की कोशिश में विक्रम के हाथ में उनका वस्त्र आ जाता है, जिसे ले जाकर वह मेवाड़ में रख आते हैं, जिससे कि आकाल खत्म हो जाता है.
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