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सिय-पिय मिलन महोत्सव: आस्था के महासंगम में श्रद्धा की डुबकी लगा रहे हैं मिनी काशी के लोग ..

 रविवार की कृष्ण लीला के दौरान द्रोपदी चीर हरण प्रसंग दर्शकों के सामने दृश्यमान हुआ. जिसमें दिखाया गया कि दुर्वासा ऋषि मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान कर रहे हैं


- रासलीला में श्री कृष्ण ने बचाई द्रोपदी की लाज, रामलीला में जनकपुर दर्शन को निकले श्री राम-लक्ष्मण.

- आज होगा पुष्प वाटिका प्रसंग का मंचन.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: 49 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव के रंग में बक्सर की पावन धरा पूरी तरह रंग चुकी है. देश-विदेश से बक्सर पधार चुके साधु-संतों तथा श्रद्धालु आस्था के प्रवाह के साक्षी  बन रहे हैं. आयोजन स्थल के आसपास लगे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा बच्चों के लिए खेल खिलौने मौजूद हैं. मीना बाजार में चूड़ी-बिंदी तथा श्रृंगार प्रसाधन की की दुकानों के अतिरिक्त बर्तन वगैरह की दुकानें भी भी सज गयी हैं. आस्था के महाआयोजन में आने वाले लोग अपने पूरे परिवार के साथ अध्यात्म की सरिता में तो गोते लगा ही रहे हैं साथ ही साथ यहां लगे मेले में आकर खेल खिलौने तथा पकवानों का लुत्फ उठा कर जीवन के तनाव को भी कम करने की कोशिश कर रहे हैं. सुबह रामचरित मानस के पाठ से शुरु होने वाले इस महाआयोजन में कृष्ण तथा रामलीला के मंचन के साथ ही संतों की वाणी की अमृतवर्षा में भींगने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है. आयोजन देर शाम तक निर्बाध क्रम से चल रहा है.

रविवार की कृष्ण लीला के दौरान द्रोपदी चीर हरण प्रसंग दर्शकों के सामने दृश्यमान हुआ. जिसमें दिखाया गया कि दुर्वासा ऋषि मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान कर रहे हैं. गंगा की तेज धार में दुर्वासा ऋषि का कटी वस्त्र बह जाता है. उसी समय द्रौपदी तथा अन्य स्त्रियां स्नान के लिए गंगा घाट पहुंची होती है. काफी देर तक जब ऋषि गंगा के जल से नहीं निकलते तो उत्सुकतावस द्रौपदी प्रश्न करती है कि आखिर कौन सा कारण है कि वह जल से बाहर नहीं निकल पा रहे. तब ऋषि अपनी व्यथा बताते हुए कहते कि लज्जावश वह बाहर नहीं आ पा रहे हैं. यह सुनते ही द्रौपदी अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर ऋषि को प्रदान करती है. जिसे धारण कर वह नदी से बाहर आते हैं तथा द्रौपदी को आशीर्वाद देते हैं कि आज तुमने एक संत की लाज बचाई है. जब भी कोई संकट आएगा तो भगवान नारायण तेरी लाज बचाने के लिए स्वयं उपस्थित होंगे. दूसरे दृश्य में दिखाया जाता है कि पांडव राजसूय यज्ञ की तैयारी में लगे होते हैं. इस दौरान कई राजा घर वहां उपस्थित रहते हैं. इसी बीच शकुनी आते हैं तथा यह प्रस्ताव रखते हैं कि इस यज्ञ कार्यक्रम का अध्यक्ष कौन होगा? मौजूद लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति सर्वगुण संपन्न होगा वही इस यज्ञ का अध्यक्ष बन सकता है. सभी लोग कहते हैं कि "कृष्णम वंदे जगत गुरु" इसलिए कृष्ण को ही यज्ञ का अध्यक्ष बनाया जाए. इस बात का समर्थन पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य समेत महाराज धृतराष्ट्र भी करते हैं. लेकिन यह बात दुर्योधन को अच्छी नहीं लगती. वह शिशुपाल को अध्यक्ष बनाने की बात कहता है. हालांकि, सबकी इच्छा अनुरूप श्री कृष्ण का पूजन एवं तिलक लगाने की तैयारी होने लगती है. जिस पर शिशुपाल क्रोधित होकर कृष्ण को गालियां देने लगता है. तब अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं कि शिशुपाल आपको गाली दे रहा है फिर भी आप कोई प्रत्युत्तर क्यों नहीं दे रहे हैं? इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि "शिशुपाल मेरी बुआ का लड़का है जब उसका जन्म हुआ था तो इसकी चार भुजाएं तथा तीन नेत्र थे. उस वक्त ब्राह्मणों ने बताया था कि जिसके स्पर्श से इसकी अतिरिक्त भुजाएं तथा नेत्र गायब हो जाएंगे वही व्यक्ति इस बालक के मृत्यु का कारण बनेगा. कौतूहलवश वहां पहुँचने पर मेरे स्पर्श से शिशुपाल बिल्कुल सामान्य बालक की तरह हो जाता है. इस बात से शिशुपाल की माता श्री डर जाती हैं तथा श्री कृष्ण से वचन लेती हैं कि वह अपने भाई का वध नहीं करेंगे. तब श्री कृष्ण कहते हैं कि यह मुझे सौ गालियां भी देगा तो भी मैं इसका वध नहीं करूंगा लेकिन 101वीं गाली देने पर मैं इसका का मस्तक काट दूंगा."

यह बात सुनकर यज्ञ में मौजूद शिशुपाल और भी क्रोधित हो जाता है और गालियों का प्रवाह और तेज कर देता है. 100 की संख्या पार होते ही श्रीकृष्ण उसका मस्तक काट देते हैं. उधर सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगुली भी कट जाती है. जिसे देखते ही वहां मौजूद द्रौपदी अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़ कर कृष्ण की अंगुली में बांधती है. तब भगवान वचन देते हैं कि जब भी तुम्हारी लाज खतरे में होंगे मैं वहां अवश्य पहुंच आऊंगा   तथा तुम्हारी लाज बचाऊंगा. 

यज्ञ के दौरान ही द्रौपदी दुर्योधन का उपहास उड़ा देती है. जिस पर दुर्योधन बदले की भावना से जलने लगता है. बाद में जुआ खेलते समय पांडव राजपाट सब हार जाते हैं. तब वे द्रोपदी को दांव पर लगा देते हैं। जब वह द्रौपदी को भी हार जाते हैं तो दुर्योधन दुशासन को आदेश देता है कि द्रोपदी का चीर हरण किया जाए. दुशासन द्रौपदी के केश पकड़ उसे सभा में लाता है तथा उसका चीरहरण शुरू करता है. तभी भगवान प्रकट होते हैं तथा चीर बढ़ाते जाते हैं. तब वह कहता है कि "खींचत-खींचत मैंने लगा दी शक्ति सारी, नारी बीच साड़ी है या साड़ी बीच नारी." बाद में दुर्योधन द्वारा पांडवों को 12 वर्ष के वनवास तथा 1 वर्ष के अज्ञातवास का दंड सुनाया जाता है. इस प्रकार दिन की लीला समाप्त हो जाती है तथा दर्शकों की जय-जयकार से पूरा वातावरण गुंजायमान हो जाता है.

रात्रि की रामलीला में भगवान श्री राम तथा श्री लक्ष्मण जनकपुरी पहुंचते हैं. इसके पूर्व उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया. जनकपुरी पहुंचने के पश्चात दोनों राजकुमारों को नगर भ्रमण की इच्छा होती है. तब वह गुरु विश्वामित्र से आज्ञा लेकर नगर भ्रमण को निकलते हैं. जनकपुर दर्शन के दौरान जनकपुर के निवासी राम-लक्ष्मण को देखकर यह इच्छा व्यक्त करते हैं कि इन्हीं राजकुमारों से जनक नंदिनी का विवाह हो जाए. नगर भ्रमण करने के पश्चात श्री राम चंद्र एवं लक्ष्मण जी पुनः गुरु विश्वामित्र के पास लौट आते हैं. जिसके बाद प्रभु की जय-जयकार से पूरा पंडाल गुंजायमान हो जाता है.


कार्यक्रम में जिन कलाकारों द्वारा लीलाओं का मंचन किया गया उसमें कमल कांत शर्मा, गंगाराम पंडा, निरंजन पचौरी, कृष्ण कांत शर्मा, श्याम सुंदर शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, मुकेश शर्मा तथा आश्रम के परिकर एवं स्थानीय कलाकार शामिल रहे. राधा कृष्ण रासलीला संस्थान वृंदावन के अध्यक्ष स्वामी फ़तेह कृष्ण शर्मा के निर्देशन तथा व्यवस्थापक राधा कांत की देखरेख में लीला का सफल मंचन किया जा रहा है.
























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