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विचार: आखिर किसकी गलती से दिशाहीन हो रहे युवा ..


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: युवा पीढ़ी ही देश के रीढ़ की हड्डी है.  एक सशक्त एवं समृद्धशाली देश का निर्माण करने में युवाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है. युवा ही अपने नये नये विचारो,तरीको और तकनीको से एक से बढ़ कर एक अजूबे कारनामे कर देश के नाम को दुनिया में रौशन कर रहे हैं.

लेकिन ऐसे में जब वही युवा पीढ़ी जब  गलत रास्ते-गलत दिशा में अपने कदम बढ़ाने लगे तो है तो देश के लिए चिन्ता की विषय बन जाता है.

शहर हो या गाँव आजकल ज्यादातर यह देखा जा रहा है कि वे बच्चे जिनकी उम्र  लगभग 14 से 18 वर्ष की होती है और वे अपनी माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे होते है तभी से बदनाम अपराधियो के इतिहास जानने में ज्यादा रुचि दिखा रहे है और अपने आप को भी उन्ही के जैसा प्रचलित करने का सपना देखने लगते है. जबकि, ऐसा बिल्कुल नही होना चाहिए. क्योंकि, ये तो सब जानते है की हर वो अपराधी जो चोरी, लूट, छिनैती, छेड़खानी और हत्या जैसी जघन्य अपराधों को अंजाम देते है वो चैन की रोटी कभी नही खा सकते. उनकी जीवन का हर पल डर की साये में गुजरता है कि कहाँ से पुलिस की गोली आ कर उनको लग जाए. 

लेकिन गम्भीर विषय यह बन गया है की कक्षा नवम, दशम में पढ़ने वाले बच्चे जिनको पढ़ने और खेलने के अलावा कोई जिम्मेदारी अथवा कोई तनाव नहीं है. फिर भी ऐसी क्या जरूरत उनको आन पड़ती है कि वे अपने साफ-सुथरे  चरित्र को आपराधिक इतिहास के कलंक से काली कर लेते है और जिन्दगी भर के लिए कम उम्र में ही खुद को दागी बना लेते हैं. परिणामस्वरूप उनको सरकारी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है.
यदि युवाओं के दिशाहीन होने का कारण देखा जाये तो कारण बहुत मिल जाएंगी.

सर्वप्रथम तो आजकल के बच्चे शुरू से ही फिल्म, धारावाहिक और गलत व्यक्तियों के गलत विचारो को अपने मन में घर करने देते है जिसकी दुष्परिणाम जल्द ही देखने को मिलने लगता है. कई लोगों से बातचीत के बाद यह बात भी सामने आती है कि युवाओं का रुझान गलत कार्यों और अपराध की ओर ज्यादा होने का मुख्य कारण टेलीविजन, सिनेमा तथा सोशल साइट्स पर पर संस्कारविहीन फ़िल्म, धारावाहिको तथा वीडियोज का प्रदर्शन करना है. बच्चे जो देखते हैं उसी को सच समझ बैठते हैं और अपने ही जीवन पर प्रयोग करना प्रारम्भ कर देते हैं. अब इसको हम बच्चों के नादानी कहे या फिर उनके संरक्षकों के कमी. दिशाहीन युवाओं की तादाद आजकल बढ़ती जा रही है.

मेरा मानना है कि समाज में कुरीतियों, विदेशी संस्कृति, अपराध को फैलाने और बढ़ावा देने वाले को सजा मिलनी चाहिए. सरकार को उन सभी निर्माताओं की फिल्मों तथा धारावाहिकों की निगरानी चाहिए जहाँ से  असभ्यता भरी सन्देश लेकर फिल्म और वीडियो समाज में आते हैं और युवाओ के दिमाग में जहर भरने का काम करते है.

- गुलशन सिंह
छात्र,स्नातक द्वितीय वर्ष
डीके कॉलेज, डुमराँव













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