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प्रकृति की मार से मजबूर किसानों के लिए बक्सर के युवाओं ने निकाला मास्टर प्लान ..

व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती धीरे-धीरे भारत के किसानों विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, कर्नाटक सहित देश के 15 राज्यों में की जा रही है. उन्होंने बताया कि भारत के किसानों को असामान्य मानसून के बीच नील हरित शैवाल की खेती एक निश्चित बाजार और एक नियमित आय का वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराती है

- कृषि की दुर्दशा झेल रहे किसानों को दिया एक बेहतर विकल्प

- महज 5 हज़ार रुपये के मामूली निवेश पर लाखों रुपए कमाने की है तकनीक.



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: खेती की खस्ता हालत भारी नुकसान तथा अधर में लटके भविष्य के साथ कर्ज में दबे किसान अगर चाहे तो उन्हें महज कुछ हजार रुपयों के निवेश से प्रति माह लाखों रुपए की  आमदनी हो सकती है.हालांकि, किसानों के बीच में इस बात को लेकर जागरूकता ना होने के कारण आज भी किसान आत्महत्या जैसा दुखदाई कदम उठाने को मजबूर होते हैं. ऐसे में बक्सर के रहने वाले दो युवाओं ने किसानी की इस नई तकनीक को लोगों के बीच पहुंचाने का कार्य शुरू किया है. जिसमें किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के मुफ्त प्रशिक्षण के साथ साथ उनके उत्पादन को सही बाजार तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.

किसानों की दुर्दशा ने किया प्रेरित, राजस्थान से ले आये सुपर फ़ूड उगाने की तकनीक:

मूल रूप से बक्सर के सिविल लाइंस मोहल्ले के निवासी राजेश कुमार तथा सतीश कुमार सिंह का पारिवारिक परिवेश भले ही किसानी का ना रहा हो लेकिन किसानों के कष्ट से वे बखूबी वाकिफ थे. किसानों की दुर्दशा उन्हें अंदर ही अंदर किसानों के लिए कुछ करने को प्रेरित करते रहे नतीजा यह हुआ कि उन्होंने राजस्थान के नोहर जिले के हनुमान गढ़ के लीफ ग्रीन बायोटेक संस्था से संपर्क किया जहां से उन्होंने नील हरित शैवाल जैसे सुपर फूड के बारे में जानकारी ली तथा उसकी खेती से मिलने वाले भारी मुनाफे के बारे में जानकारी प्राप्त की जिसके बाद बक्सर के सारीमपुर में उन्होंने अपना प्लांट स्थापित कर दिया. इस प्लान में उन्होंने किसानों को कम संसाधन में होने वाले इस बेहतरीन मुनाफे से भरे खेती की तकनीक से अवगत कराने का कार्य शुरू किया,जहां किसान अब इस खेती से जुड़कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने की तकनीक सीख रहे हैं.

कुपोषण से मुक्ति दिलाने में कारगर है मामूली मात्रा:

संस्था के संचालक राजेश कुमार बताते हैं कि नील हरित शैवाल में करीब 60 फ़ीसदी प्रोटीन होता है इसके 1 ग्राम की मात्रा से छोटे बच्चों के दिन भर की प्रोटीन की जरूरतें पूरी हो जाती है. वहीं इसके 5 ग्राम की मात्रा का सेवन करने के बाद कोई भी वयस्क व्यक्ति अपने दिन भर के पोषण को पा लेता है. उन्होंने बताया कि कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए भी नील हरित शैवाल उन्हें कुपोषण से मुक्ति दिलाने में  कारगर साबित हो सकता है.  उन्होंने बताया कि यह पौष्टिक आहार होने के साथ-साथ इसका उपयोग कई दवाओं के निर्माण और सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि यूनेस्को तथा डब्लूएचओ से इसे सुपर फ़ूड का दर्जा प्रदान किया है.

असामान्य मानसून में भी हो सकती है अच्छी उपज:

व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती धीरे-धीरे भारत के किसानों विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, कर्नाटक सहित देश के 15 राज्यों में की जा रही है. उन्होंने बताया कि भारत के किसानों को असामान्य मानसून के बीच नील हरित शैवाल की खेती एक निश्चित बाजार और एक नियमित आय का वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराती है. उन्होंने बताया कि इस शैवाल से प्रोटीन आयरन कॉपर और विटामिन B1 विटामिन B2 विटामिन B3 की पूर्ति की जाती है. साथ ही साथ इस शैवाल पॉवडर में ओमेगा 6 और ओमेगा 3 फैटी एसिड की मौजूदगी भी होती है. उन्होंने बताया कि यह 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में यह अच्छी तरह बढ़ता है. इसे किसी भी सुविधाजनक आकार के सीमेंट या प्लास्टिक के टैंक में उगाया जा सकता है.

एक एकड़ में उत्पादन से कमा सकते हैं हर माह एक लाख रुपये:

उन्होंने बताया कि 10×10 के एक सीमेंटेड टैंक में एक किलोग्राम शैवाल के बीज के साथ इसकी खेती को शुरू किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि लगभग 1 एकड़ भूमि में अगर नील हरित शैवाल की खेती की जाए तो किसान प्रति माह एक लाख रुपए तक की आमदनी कर सकता है. उन्होंने बताया कि तैयार शैवाल पाउडर के खरीदार के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कंपनियां मौजूद है, जो पंद्रह सौ रूप है प्रति किलो से लेकर 2 हज़ार रुपये प्रति किलो के दर से उत्पादित शैवाल की खरीददारी करती हैं. जबकि वही कंपनियां इस शैवाल पाउडर को खुदरा बाजार में 45 सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचती हैं. राजेश बताते हैं कि इससे वालों की खेती से किसान महज 5 हज़ार रुपये का निवेश कर जुड़ सकते हैं जिसके बाद वह महज 1 लीटर के बीज से 3 माह में 6 हज़ार लीटर शैवाल पाउडर तैयार कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि आगामी 20 जनवरी को आत्मा की ओर से लगाए जाने वाले कृषि मेले के स्टॉल में नील हरित शैवाल का भी एक स्टॉल लगाया जाएगा जहां किसानों को इससे जुड़ी जानकारियां दी जाएंगी.













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