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रेलवे में कार्यरत बक्सर के रविशंकर ने बीपीएससी में पायी सफलता ..

जिले के ग्राम सिमरी हलवा पट्टी निवासी राम सागर रजक के पुत्र रविशंकर प्रसाद ने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गाँव सिमरी से ही प्रारम्भ की. हालाँकि जब उस लड़के ने अपनी स्कूली शिक्षा प्रारम्भ की तो किसने सोचा होगा की एक दिन यही लड़का डिप्टी कलेक्टर बन जाएगा

- रेलवे की नौकरी में रहते हुए लोक सेवा आयोग की दी परीक्षा.

- सिमरी के मूल निवासी हैं रविशंकर प्रसाद.


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: कहते हैं, "सिविल सेवा का संघर्ष एक गर्म भट्टी के समान है जिसमे कई लोग तपकर सोना हो जाते है और कई लोग खाक!" जी हाँ, आज बात बक्सर जिले के एक ऐसे ही सोने की जिसने अपने छोटे से गाँव सिमरी हलवा पट्टी से निकलकर खुद को झोंक दिया इस संघर्ष की तपती भट्टी में बिना ये सोचे कि परिणाम क्या होगा? कैसे होगा और कब तक होगा? एक शख्स जो सोना बनने की चाहत में तपाता रहा खुद को, इन जलते तपते कमरे में. उसके साथ सिर्फ वो था और उसका एक अदद सपना. ज़िद थी कि बिहार प्रान्त की सबसे बड़ी परीक्षा में सफल होना है इसलिए उसने संघर्ष को साथी मानकर इन पथरीली राहों पर चलना प्रारम्भ कर दिया और वो भी एक अनजान मंजिल को पाने के लिए. आखिरकार एक लंबे अंतराल के बाद जब बिहार लोकसेवा आयोग ने शुक्रवार को अपना अंतिम परिणाम घोषित किया तो उस सोने का सपना हकीकत में तब्दील हो चुका था. फिलहाल, संघर्ष की एक अलग दास्ताँ पेश करने वाले तथा बिहार लोकसेवा आयोग की 60-62वीं परीक्षा में SDM के पद पर चयनित इस शख्सियत को सब लोग प्यार से रविशंकर प्रसाद के नाम जानते है.

जिले के ग्राम सिमरी हलवा पट्टी निवासी राम सागर रजक के पुत्र रविशंकर प्रसाद ने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गाँव सिमरी से ही प्रारम्भ की. हालाँकि जब उस लड़के ने अपनी स्कूली शिक्षा प्रारम्भ की तो किसने सोचा होगा की एक दिन यही लड़का डिप्टी कलेक्टर बन जाएगा. मगर कहते है ना कि "पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं" सो बचपन में ही चाचा भूषण प्रसाद ने इनकी प्रतिभा को पहचान लिया था. ततपश्चात, चाचा ने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दानापुर बुला लिया. अब रवि यही रहकर अपने ख्वाहिश को आकार देने लगें तथा इस हेतु अनवरत खून पसीना एक करते रहे. फिर, जल्दी ही उनकी मेहनत भी रंग लाई और उनका चयन रेलवे में हो गया. लेकिन रवि इतने पर कहा रुकने वाले थे. वैसे भी लगन को काँटो की परवाह होती भी कहा है? सो उन दिनों नौकरी में रहते हुए भी सर्वप्रथम अपने सपने को लक्षित किया और फिर इस सुनहले सफर पर किताबो को साथ लेकर चलना प्रारम्भ कर दिया. हालाँकि, शुरुआत में नौकरी में रहते हुए काम का बोझ व समय की समस्या से जरूर दो दो हाथ करना पड़ा मगर सीमित समय व समस्याओं के बीच सामंजस्य बैठाकर अपने मंजिल की तरफ कदम बढ़ाते रहे.

इसे नियत की मंजूरी कहें या मेहनत की ताकत, कि शुक्रवार की शाम का जब सूरज अस्त ही होने वाला था कि रविशंकर के किस्मत का सूरज निकल पड़ा. उस शाम उनके सपने को पँख मिल चुका था और रविशंकर प्रसाद बिहार प्रान्त की सबसे बड़ी परीक्षा में डिप्टी कलेक्टर बन चुके थे. रवि के शब्दों में- अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते है तो आपको सूरज की तरह जलना होगा. फिलहाल, इस अप्रतिम सफलता पर पूरे गाँव में जश्न का माहौल है.


- आशुतोष दूबे










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