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होलिका दहन के साथ सदियों पुरानी परंपरा का किया गया निर्वहन ..

कही न कही मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले रोगों के निवारण हेतु किए जाने वाले क्रियाकलापों से जोड़ कर देख रहे हैं जिसे पुरातन काल में भारतवर्ष के ऋषि-मुनियों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है.

- नगर में विभिन्न जगहों पर आयोजित किए गए कार्यक्रम.
- पारंपरिक विधि-विधान से लोगों ने किया होलिका दहन.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: होली की पूर्व संध्या पर नगर के कई स्थानों पर होलिका दहन का आयोजन कराया गया. नगर के स्टेशन रोड स्थित आदर्श गौशाला के समीप, अंबेडकर चौक, आदर्श नगर, सिंडीकेट, नया बाजार समेत कई जगहों पर पौराणिक परंपरा का हर्षोल्लास के साथ निर्वहन किया गया. 

होलिका के दिन पारम्परिक उबटन का महत्व:

आज के समय में फैशन की इस चकाचौंध भरी दुनिया में हिन्दू धर्म की परंपरा अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर जा खड़ी है. एक ओर जहाँ हिन्दू रीति-रिवाज को लोग भूलने में अपने को अधिक बुद्धिजीवी एवं शहरी समझ रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर हमारी परंपराओं को दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिक रिसर्च में सही सिद्ध इन रीति-रिवाजों को वैज्ञानिक कही न कही मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले रोगों के निवारण हेतु किए जाने वाले क्रियाकलापों से जोड़ कर देख रहे हैं जिसे पुरातन काल में भारतवर्ष के ऋषि-मुनियों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है और आज उसी को हिन्दू सम्प्रदाय अपनी परम्परा के रूप में मानता आ रहा है. 
होलिका दहन के पहले लगाये जाने वाले उबटन का महत्व अत्यधिक होता है. हिन्दू पंचांग के मुताबिक होलिका दहन का दिन वर्ष का अंतिम दिन होता है. एवं इसके अगले सुबह यानी होली से नव वर्ष का शुभारंभ होता है. 
आधुनिकता की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में होलिका जैसे कई महत्वपूर्ण पर्व-त्यौहार विलुप्त हो चुके हैं किन्तु, आज भी ग्रामीण क्षेत्र सहित शहरी इलाको में बड़ी संख्या में महिलाएं होलिका के दिन उबटन लगाने की इस पुरानी परम्परा को कायम रखे हुई हैं. इस दिन घरों में औरतें सरसों का पेस्ट यानी उबटन बनाकर परिवार के सभी सदस्यों के शरीर में मालिश करती हैं और इस उबटन से निकलने वाली झिल्ली को इकट्ठा करके सायंकाल को बुराई का प्रतीक माने जाने वाली होलिका की अग्नि में जला दिया जाता है. इस प्रथा के पीछे मान्यता है कि ऐसे करने से शरीर के चर्म रोग जैसे रोग-व्याधियों के साथ शारीरिक कष्ट उबटन के झिल्ली के साथ होलिका के अग्नि में भस्म हो जाती है. वहीँ इस हिन्दू रीति पर वैज्ञानिक भी अपनी मत जाहिर कर चुके हैं कि ऐसा करने से मौसम में होने वाली परिवर्तन से लोगों पर कीटाणुओ के हमले को सरसो के उबटन से निष्प्रभावी किया जा सकता है।
 परम्परा के साथ वैज्ञनिकों के तर्क भी उबटन वाली प्रथा के पक्ष में होने से होलिका के दिन लगने वाली इस उबटन का महत्व व्यक्ति को निरोग रहने के लिए कितना जरूरी है ये बात समझी जा सकती है.

- गुलशन सिंह
















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