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बच्चों में अब रोटा वायरस का खतरा, 3 जुलाई से होगा नियमित टीकाकरण ..

कहा कि रोटा वायरस जनित जो भी डायरिया होती है उसका एकमात्र निदान वैक्सीन से ही संभव है. ऐसे में यह जरूरी है कि अपने बच्चों को इसका डोज जरूर दिला दिया जाए.  इस टीके को नियमित टीकाकरण के दौरान बच्चों को दिया जायेगा. जो कि तीन डोज़ में दी जाएगी. हालांकि, हर हाल में इसका पहला डोज बच्चे को साल भर के अंदर दिला देना चाहिए

-  संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने दी जानकारी.

- बताया, 14 फीसद बच्चों की मौत का है कारण.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर:  छोटे बच्चों में मौत की एक बड़ी वजह होती है डायरिया. 14 प्रतिशत शिशुओं की मौत डायरिया की ही वजह से होती है. इसमें भी 40 प्रतिशत बच्चों की मौत रोटा वायरस जनित डायरिया की वजह से होती है. ये बातें जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ.राज किशोर सिंह ने कही.  गुरुवार को वह सदर अस्पताल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. डीआइओ ने कहा कि तीन जुलाई से रोटा वायरस वैक्सीन को नियमित टीकाकरण में शामिल किया जा रहा है. संवाददाताओं को संबोधित करते हुए डीआइओ ने कहा कि रोटा वायरस जनित जो भी डायरिया होती है उसका एकमात्र निदान वैक्सीन से ही संभव है. ऐसे में यह जरूरी है कि अपने बच्चों को इसका डोज जरूर दिला दिया जाए.  इस टीके को नियमित टीकाकरण के दौरान बच्चों को दिया जायेगा. जो कि तीन डोज़ में दी जाएगी. हालांकि, हर हाल में इसका पहला डोज बच्चे को साल भर के अंदर दिला देना चाहिए. अधिकारी ने बताया कि इससे शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आएगी, तभी तो विकसित और विकासशील दोनों देशों में इस वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है.

इस दौरान इसके साइड इफेक्ट के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा कि इसका साइड इफेक्ट बहुत कम होता है. कभी-कभी लूजमोशन, फीवर, उल्टी आना, शरीर में दाना निकलना जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं. हालांकि, वह खुद-ब-खुद दो तीन दिनों में ठीक भी हो जाएगा. लेकिन, बच्चे को उल्टी अगर ज्यादा आए, पेट फूलने लगे या पखाना के साथ खून आ जाए तो उस परिस्थिति में चिकित्सक से परामर्श कर लेना चाहिए. 

इस दौरान उन्होंने यह बताया कि बच्चों को डायरिया होने पर कोई दवा काम नहीं करती बल्कि केवल ओआरएस तथा जिंक इसका एक मात्र इलाज है ऐसे में रोगी के परिजनों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि बच्चों को ओआरएस तथा जिंक पर्याप्त मात्रा में मिलता रहे.

मौके पर डीआइओ के अलावा एसीएमओ डॉ.के के राय, यूनिसेफ की शगुफ्ता जमील, यूएनडीपी के मनीष कुमार सिन्हा आदि मौजूद थे.

यूएनडीपी के मनीष कुमार ने बताया कि इस वैक्सीन को रखने के लिए अस्पताल में बेहतरीन व्यवस्था उपलब्ध है जहां -15 से - 25 डिग्री तापमान के बीच इसे रखा जाता है. साथ ही तापमान को मॉनिटर करने के लिए इसमें सेंसर लगाकर इसे इंटरनेट से जोड़ा गया है. पीएचसी में भेजने के दौरान इसका तापमान शून्य से 8 डिग्री रखा जाता है. उन्होंने बताया कि इसके एक पैक में एक साथ चार बच्चों की खुराक होती है. ऐसे में यदि एक बच्चे को यह टीका दिया गया तो 4 घंटे के भीतर अन्य तीन बच्चों को भी यह टीका देना आवश्यक होता है. 4 घंटे के बाद यह यह वैक्सीन खराब हो जाती है. उन्होंने बताया कि वैक्सीन के एक के ऊपर एक ऐसा इनबिल्ट इंडिकेटर बनाया गया है जो यह बता देगा कि वैक्सीन ठीक है अथवा खराब हो गई है.









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