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नकली कलाप्रेमियों की बाजारवादी सोच के कारण आमजन से कट रही भोजपुरी- साहित्य मंडल

कहा कि, एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने के कारण करोड़ों लोगों की मातृभाषा होने के बावजूद भी भोजपुरी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही है और आज तक इसे संविधान की अष्टम अनुसूची से बाहर रखा गया है. 

- भोजपुरी साहित्य मंडल की बैठक हुई आयोजित.
- 150 वीं जयंती से भोजपुरी भाषा और साहित्य के हक और हिस्से के संघर्ष का होगा शंखनाद.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: भोजपुरी साहित्य मंडल की एक आवश्यक बैठक एक निजी विद्यालय के सभागार में अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी की अध्यक्षता में आयोजित की गई. जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से भोजपुरी भाषा और साहित्य के हक और हिस्से के संघर्ष के लिए शंखनाद का संकल्प लिया गया. भोजपुरी के बहुत चर्चित उपन्यासकार एवं संपादक डॉ अरुण मोहन भारवि ने कहा कि, एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने के कारण करोड़ों लोगों की मातृभाषा होने के बावजूद भी भोजपुरी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही है और आज तक इसे संविधान की अष्टम अनुसूची से बाहर रखा गया है. जबकि, भोजपुरी के सभी कवियों एवं नकली कला प्रेमियों की बाजारवादी सोच के कारण भोजपुरी अश्लीलता के शिकार होकर प्रबुद्ध कला प्रेमियों एवं आमजनों से कटती जा रही है. भोजपुरी पर हो रही इस दोहरी चोट के खिलाफ चरणबद्ध आंदोलन करने की जरूरत है.
अपने अध्यक्षीय संबोधन में मंडल अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी ने के भोजपुरी को उसके वाजिब हक से महरूम रखने के लिए भोजपुरी क्षेत्र के विधायकों सांसदों मंत्रियों सहित सभी जनप्रतिनिधियों को कसूरवार ठहराया. बैठक को रमाकांत तिवारी, कृष्ण कुमार, मन्नू प्रसाद, दीपक, अमरेंद्र दूबे, दिनेश राय, सत्यदेव गुप्ता, कृपाशंकर, राजेश महाराज, अनिल चौबे, अभिषेक वर्मा ने भी संबोधित किया.













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