विजयादशमी महोत्सव: गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुँचे श्रीराम-लक्ष्मण ..
दिखाया गया कि भगवान श्री राम द्वारा ताड़का, मारिच, सुबाहु वध के पश्चात धर्म की स्थापना हुई. इधर जनकपुरी से पत्र आता है कि, राजा जनक अपनी पुत्री का स्वयंवर कर रहे हैं. जिसे देखने के लिए भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरुदेव विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर चल पड़ते हैं.
- मार्ग में पत्थर बनी अहिल्या का किया उद्धार.
- श्री राम-लखन ने किया जनकपुर का भ्रमण.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: रामलीला समिति के तत्वाधान में नगर के विशाल रामलीला मंच पर चल रहे 20 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव में छठवें दिन वृंदावन से पधारे सर्वश्रेष्ठ लीला मंडली गोविंद-गोपाल लीला संस्थान के स्वामी कन्हैया लाल शर्मा "दत्तात्रेय" व विष्णु कुमार "दत्तात्रेय" के सफल निर्देशन में रात्रि में अहिल्या उद्धार तथा जनकपुर नगर दर्शन प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि भगवान श्री राम द्वारा ताड़का, मारिच, सुबाहु वध के पश्चात धर्म की स्थापना हुई. इधर जनकपुरी से पत्र आता है कि, राजा जनक अपनी पुत्री का स्वयंवर कर रहे हैं. जिसे देखने के लिए भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरुदेव विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर चल पड़ते हैं. मार्ग में पत्थर की शिला होती है. श्री राम गुरुदेव से शीला के विषय में पूछते हैं और अपने चरण रज से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार करते हैं. आगे बढ़ने पर गंगा पार पहुंचकर भगवान श्री राम पंडा-पुजारियों से गंगा के आने का कारण पूछते हैं और उन्हें दान देकर आगे के लिए प्रस्थान करते हैं.
आगे बढ़ने पर जनक जी के बगीचे में पहुंच जाते हैं. वन का माली विश्वामित्र सहित राम लक्ष्मण जनकपुर पहुंचने की सूचना देता है. राजा जनक तीनों को ले जाकर सुंदर सदन में ठहराते हैं और सत्कार करते हैं. इधर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण की इच्छा जान जाते हैं और उन्हें दिखाने के लिए जनकपुर का भ्रमण करते हैं. जनकपुर की सुंदरता देखने के क्रम में नगर की स्त्रियां झरोखे से श्रीराम के सौंदर्य को निहारती हैं. नगर दर्शन कर दोनों अपने गुरुदेव के पास आते हैं. जहां गुरुदेव अपनी पूजा के लिए पुष्प लाने का आदेश देते हैं. श्री राम-लक्ष्मण पुष्प वाटिका में जाते हैं जहां सीता जी से प्रथम मिलन होता है. श्री राम सीता जी के सौंदर्य का गुणगान करते हैं. सीता जी भी उन्हें निहारती हैं. श्रीराम पुष्प लेकर गुरुदेव के पास लौटते हैं. इधर सीता जी मां गौरी पूजन करने जाती हैं. जहां वह पति के रूप में माता गौरी से श्री राम को पाने का वर मांगती हैं. इस प्रकार छठवें दिन की लीला का समापन हो जाता है. दिन में कृष्ण लीला के दौरान "हाथीदह लीला" का मंचन किया गया. इस दौरान दिखाया गया कि, ब्रज के हाथीदह नामक स्थान पर सरोवर में एक विशाल कालिया नाग रहता था. उसके प्रभाव से पूरा जल विषैला हो गया है. इसी कारण से कोई बृजवासी उधर नहीं जाता है. उधर, नारद जी कंस के पास जाते हैं और कहते हैं कि, यदि वह ब्रज वासियों को यह कहे कि, भगवान शंकर की पूजा के लिए एक करोड़ कमल के फूल चाहिए तो वे सभी भले ही हाथीदह सरोवर में नहीं जाए लेकिन कृष्ण अवश्य जाएंगे और इसी दौरान कालिया नाग उन्हें अपना शिकार बना लेगा. यह सुनते ही कंस ने ब्रजवासियों के नाम संदेशा भिजवा दिया, जिसके बाद सभी भयभीत हो गए. उधर कृष्ण ने जब यह बात सुनी तो वह दोस्तों के साथ खेलने के बहाने हाथीदह सरोवर के पास पहुंच गए. जहां खेलते-खेलते उनकी गेंद सरोवर में जा गिरी. वह गेंद लेने के लिए सरोवर में कूद गए तथा कालिया नाग से युद्ध करते हुए अंत में उस पर विजय पा ली.
लीला के दौरान रामलीला समिति के पदाधिकारी वैकुंठनाथ शर्मा, हरिशंकर गुप्ता, कृष्णा वर्मा, साकेत कुमार "चंदन" समेत जिले के दूरदराज के इलाकों से पहुँचे कई श्रद्धालु नर-नारी मौजूद रहे.
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