Buxar Top News: बक्सर: विश्वामित्र और श्री राम की परम्पराओं का उपेक्षित अवशेष- स्थापना दिवस पर विशेष ..
ये वही धरती है जहाँ पर भगवान् विष्णु के पाँचवे अवतार भगवान् वामन का जन्म हुआ और जिन्होंने कुबेर से धरती को मुक्त कराया.
- भगवान वामन की नगरी उपेक्षा का शिकार.
- जनप्रतिनिधियों ने भी ठगने का किया काम.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बक्सर को हमेशा से ही बिहार और उत्तरपूर्वी भारत के एक प्रमुख शहरों में शामिल किया जाता रहा है. भगवान् वामन की धरती के रूप में प्रसिद्ध वेदगर्भापूरी, व्याघ्रसर आदि नामो से पुरातन काल से चर्चित एक शहर जिसे आज हम बक्सर के रूप में जानते है कि जिला के रूप में स्थापना की आज 28वी वर्षगाँठ है. ये वही धरती है जहाँ पर भगवान् विष्णु के पाँचवे अवतार भगवान् वामन का जन्म हुआ और जिन्होंने कुबेर से धरती को मुक्त कराया. उसके बाद सतयुग में भगवान् श्री राम ने अपने श्री चरणों से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ साथ इस धरती को पवित्र किया. यहीं पर श्री राम और लक्ष्मण ने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में अपनी शिक्षा पूरी की और ताड़का का वध किया था। बक्सर महर्षि च्यवन के आश्रम जो की चौसा में था के लिए भी प्रसिद्द रहा है. उसके बाद कालान्तर में बक्सर हुमायु और शेरशाह सूरी के प्रसिद्द युद्ध का गवाह भी बना जिसने मुगलिया सल्तनत की इमारत को उखाड़ फेंका था और इसी बक्सर ने देश को एक दिन का सुलतान दिया था जिसने इतिहास में पहली और आखिरी बार चमड़े के सिक्के चलवाए। आज़ादी की लड़ाई में भी बक्सर ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. यहीं पर 1764 का बक्सर का युद्ध भी हुआ जिसने भारत पर अंग्रेजो की हुकूमत को पूर्णरूपेण कायम किया. कथकौली आज भी उस कलंक गाथा का इतिहास कह रहा है।
ये तो हुयी इतिहास की बातें जिस पर या तो हम गर्व कर सकते है या आँसू बहा सकते है पर बदल नहीं सकते. लेकिन आज इस स्थापना दिवस पर जो सबसे बड़ा सवाल मेरे साथ साथ मेरे जैसे अनेको बक्सरवासियों के मन में कौंध रहा है कि आजादी के सत्तर वर्षो के बाद और स्थापना के 28 वर्षो के बाद भी बक्सर को क्या वह स्थान मिला जिसका वह हक़दार था? क्या हमने उस दिशा में प्रगति करी है जिसकी हमारे पूर्वजो ने उम्मीद करी थी? क्या ऐसा नहीं लगता कि 70 वर्षों में बक्सर को सिर्फ ठगा गया है?
अगर ठीक से देखा जाए तो बक्सर विश्वामित्र की धरती और श्री राम की शिक्षास्थाली के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध है. रामायण काल से जुड़ा होने के कारण ही एक समय में बक्सर को बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता रहा है। बक्सर में एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित होने की सारी सम्भावानाएं है और समय समय पर लगभग सभी राजनैतिक दलों ने इस मुद्दे पर इस जिले का भरपूर दोहन किया है। लेकिन आज इतने वर्षो बाद भी बक्सर में सिर्फ रामायण सर्किट से जोड़े जाने की कहानियाँ ही सुनने को मिलती रही है। पुरे बक्सर में एक भी ढंग का ऐसा कोई स्थान नहीं है जिसे रामायण के प्रतिक के रूप में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु इस्तेमाल किया जा सके. क्या किसी एक जगह पर एक 100 फीट की भगवान् श्री राम की प्रतिमा के अलावा महर्षि विश्वामित्र के साथ ही रामायण की कहानी को क्यों नहीं गढ़ा जा सकता? हमारा विश्वप्रसिद्ध पंचकोशी मेला जिसमे एक ही दिन में लगभग 30 लाख लोग एक ही भोजन यानी लिट्टी चोखा खाते हैं, सदैव से ही प्रशासनिक और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार होता रहा है. हालांकि मैंने एक कोशिश करी है की इस विश्व प्रसिद्द आयोजन को गिनीज बुक ऑफ़ दी वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह मिल सके परन्तु प्रशासन और सारे जनप्रतिनिधि इस पर उदासीन है. अगर मुझे उनका साथ मिल जाए तो यह और आसान हो जाएगा.बक्सर में पर्यटन के विकास हेतु कथकौली का मैदान और चौसा का मैदान एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है, परन्तु ये दोनों ही महत्वपूर्ण स्थल आज भी अपनी उपेक्षा पर आँसू बहा रहे है और भी ऐसे अनेकों स्थल हैं जैसे अहिल्या उद्धार स्थल और हनुमान जी का ननिहाल अहिरौली का जीर्णोद्धार करके बक्सर में पर्यटन और रोजगार दोनों को ही बढ़ावा दिया जा सकता है. महान एथलीट शिवनाथ सिंह के नाम पर युवाओं को खेलो के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है.
पुरे पूर्वांचल में वाराणसी के बाद बक्सर एक प्रमुख शहर के रूप में आता है. इस जिले में शिक्षा और चिकत्सा के क्षेत्र में विकास की भरपूर संभावनाएं है। पिछले 28 वर्षो में जिले की जनसँख्या 10 लाख 87 हज़ार से बढ़ कर 18 लाख के ऊपर पहुँच गयी है. निश्चित रूप से इस बढ़ती हुयी जनसँख्या के मुकाबले में हमनें विद्यालयों और महाविद्यालयों की संख्या बढ़ाई है, पर क्या ये संतुष्टि जनक है? मेरे ख़याल से नहीं. क्योंकि 57 फीसदी की साक्षरता दर केवल 81 फीसदी ही हुयी है। शिक्षा है पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं है. एक भी मेडिकल कॉलेज या तकनिकी संस्थान नहीं है. 194 स्वास्थ्य उपकेन्द्र तो खुल गए पर उनमें स्वास्थ्य सुविधाए कितनी हैं ये हम सभी बखूबी जानते है। ये मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मेरे गाँव का स्वास्थ्य उपकेन्द्र लाखो रूपये खर्च होने के बाद भी आज तक कभी भी कार्यरत नहीं हो सका. जिला स्वास्थ्य केंद्र के हाल का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अभी हाल ही में माननीय सांसद सह स्वास्थ्य मंत्री जी का पैर टूटा था तो अस्पताल में एक साधारण से एक्सरे तक की सुविधा नहीं थी. अफसोस उस घटना के लगभग छः महीने बीत गए, पैर तो ठीक हो गया है, माननीय सांसद जी स्वास्थ्य राज्यमंत्री भी है लेकिन वह अस्पताल अभी भी उसी हालत में है. और इसी जिले में पिछले चार वर्षो में छः लोग इलाज़ के अभाव में मर चुके हैं.
तमाम घोषणाओं के बावजूद गंगा आज तक मैली की मैली ही है। इसमें मै विशेष रूप से बक्सर की छात्रशक्ति टीम का उल्लेख करना चाहूँगा जिनके प्रयासों से कम से कम गंगा का एक घाट ‘रामरेखा घाट’ जहाँ पर राम जी ने कभी अपने अनुज लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ स्नान किया होगा आज ठीक ठाक हालत में है। शहर के घाटों के अलावा जिले के तमाम घाट आज भी उपेक्षित और कच्चे के कच्चे हीं है. नालों का पानी आज भी बदस्तूर गंगा में गिर कर मैली गंगा को और मैला कर रहा है. अन्य सहायक नदियों का हाल तो और भी बुरा है. किसानो के खेतो का समुचित सिंचाई के अभाव में आज भी हाल बिलकुल वैसा ही है जैसा बक्सर की सड़को का है- अवैध अतिक्रमण से ग्रसित! गंदिगी के ढेर में ढंकी हुयी. पूरे शहर की सड़के अवैध अतिक्रमण और कूड़े के अम्बार के कारण पतली गलियों में तब्दील हो चुकी हैं। अभी तीन मार्च को माननीय अनुमंडलाधिकारी श्री गौतम कुमार से इस अतिक्रमण पर चर्चा हुयी थी जिस पर उन्होंने त्वरित कार्यवाई का आश्वासन दिया था और ख़ुशी की बात है उन्होंने अपने वादे के मुताबिक़ इस पर कार्यवाई भी चालु कर दी है। उम्मीद है जल्दी ही एक साफ़ सुथरा बक्सर देखने को मिलेगा.
आखिर हमारा वह तंत्र जिसके ऊपर लोक को सम्भाल के रखने की जिम्मेदारी थी, एक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य की स्थापना क्यों नहीं कर सका? क्या इसके लिए सिर्फ जनप्रतिनिधि या प्रशासन ही जिम्मेदार है? मेरे ख़याल से बड़ी गलती हमारी यानी आम जनता की है। राजनैतिक उदासीनता की वजह से हम आज तक एक बेहतर प्रतिनधि नहीं ढूंढ पाए. आखिर क्यों भगवान् श्री राम के मन में ज्ञान का दीप जलाने वाला बक्सर स्वयं आज अँधेरे में किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा है? इन तमाम सवालों के बावजूद मै निराश नहीं हूँ। कतई नहीं! क्योंकि अभी भी बहुत कुछ हो रहा है जो बेहतर है. जब भी कहीं से किसी की मदद की गुहार आती है प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से पहले कोई ना कोई आम नागरिक ‘राम’ और ‘शिवजी’ बनकर पहुँच ही जाता है। बस जरूरत है इन गिलहरी प्रयासों को और संगठित करके एक समुचित दिशा में बढ़ने की। संविधान के 27वें पायदान पर खड़े एक आम नागरिक के नाते मेरी अपील है हमारे जिले के सभी जनप्रतिनिधियों से, सभी प्रशासनिक अधिकारियों से, और साथ ही मेरे जैसे तमाम युवाओं से और आम जनता से की मिल कर बक्सर की पीड़ा को समझा जाए. अभी भी वक़्त है अगर हम सब मिल कर बक्सर की बेहतरी के लिए एक साथ मिल कर कार्य करेंगे तो देखिएगा जब हम अगला स्थापना दिवस मना रहे होंगे तो एक बेहतर, साफ़ सुथरा, हरा भरा और मुस्कुराता हुआ बक्सर देखने को मिलेगा.
विवेक कुमार सिंह
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