Buxar Top News: मिड-डे मील घोटाला: गलत रिपोर्ट पर हुई सही कारवाई, लेकिन नहीं हुआ एक अन्न के दाने का भी गबन..
तकनीकी गड़बड़ी के कारण अब स्थिति यह हो गई थी कि यह पता लगाना मुश्किल हो गया था कि किस विद्यालय में कितना चावल है. अथवा किस विद्यालय में चावल खत्म हो गया है. ऐसे में बच्चों का मध्यान्ह भोजन बंद होने की नौबत आ गई.
प्रतीकात्मक तस्वीर |
- मध्यान्ह भोजन योजना से जुड़े कई लोगों की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल
- डाटा में हुई गलती ने दर्शाया करोड़ों के चावल का हेर-फेर.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: मिड डे मील घोटाले की खबरें इन दिनों सुर्खियां बटोर रही हैं. बताया जा रहा है कि मिड डे मील के नाम पर करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ. घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद प्रमंडलीय आयुक्त के आदेशानुसार बक्सर जिले के साधनसेविओं एवं तत्कालीन डीपीओ के विरुद्ध कारवाई की गई है.
डीपीओ द्वारा भेजी गई तथा उप विकास आयुक्त द्वारा अग्रसारित की गई रिपोर्ट के आधार पर हुई कार्रवाई:
यह कारवाई बक्सर से डीपीओ बृजबिहारी सिंह के द्वारा भेजी गई एवं उप विकास आयुक्त द्वारा अग्रसारित रिपोर्ट के अवलोकन करने के पश्चात की गई है. जैसे ही इस मामले पर कारवाई करने की बात प्रमंडलीय आयुक्त के द्वारा आदेशित की गई, यह खबर मीडिया की सुर्खियां बन गई. तरह-तरह के दावे और तरह तरह के घोटालों की बातें रिपोर्ट के आधार पर सुनाए गए फैसले के आलोक में बताई जाने लगी.
साधन सेवियों द्वारा जाँच रिपोर्ट पर ही उठाया गया सवाल तो हमने की मामले की तफ्तीश:
हालांकि, सभी आरोपी साधन सेवियों द्वारा बार बार गलत रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की बात कही जाती रही. मामले में जब बक्सर टॉप न्यूज़ ने गहराई से तफ्तीश की तो कहीं ना कहीं साधन सेवियों की बातों में भी दम दिखा. बक्सर में कुल 1196 विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत बच्चे दोपहर का भोजन करते हैं. हालांकि हमने केवल बक्सर प्रखंड में मध्यान्ह भोजन के चावल गहन जांच पड़ताल की जिसके बाद मामले की सच्चाई सामने आ गई. तफ्तीश करने के बाद यह बात सामने आई के जिस मिड डे मील महाघोटाले की बात अभी तक कहीं जा रही थी दरअसल में घोटाला हुआ ही नहीं. एक अन्न के दाने का गबन या हेरफेर कहीं से भी परिलक्षित नहीं होता.
डाटा एंट्री में हुई गलती के कारण बढ़ने लगी उलझने, बच्चों का भोजन बंद होने की आयी नौबत:
दरअसल यह बात समझाने के लिए हमें आपको तथ्यों से परिचित कराना होगा सबसे पहले हम चलते हैं वर्ष 2015 के अप्रैल माह में. दरअसल अप्रैल माह से तकनीकी खराबी के कारण मध्यान्ह भोजन के चावल वितरण के डाटा में असामान्य विषमताएं सामने आयी थी. जिसके कारण जहां सौ किलो चावल दिया गया था. कंप्यूटर में वह एक ग्यारह सौ किलो दिखा रहा था. ऐसी विषमताएं कई जगहों पर हुई थी. इस तकनीकी गड़बड़ी के कारण अब स्थिति यह हो गई थी कि यह पता लगाना मुश्किल हो गया था कि किस विद्यालय में कितना चावल है. अथवा किस विद्यालय में चावल खत्म हो गया है. ऐसे में बच्चों का मध्यान्ह भोजन बंद होने की नौबत आ गई.
मध्यान्ह भोजन योजना बिहार के निदेशक को कराया गया अवगत, निर्देश के आलोक में किया गया मैनुअली वितरण:
विकट परिस्थिति तथा मध्यान्ह भोजन के उद्देश्यों को देखते हुए मामले को लेकर मध्यान्ह भोजन योजना के बक्सर कार्यालय द्वारा पत्रांक 343-20/07/2015 के द्वारा मध्यान्ह भोजन योजना बिहार के निदेशक को दी गयी. तत्पश्चात निदेशक के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के आलोक में पत्रांक संख्या 344-20/07/2015 के माध्यम से जिला कार्यक्रम पदाधिकारी द्वारा सभी प्रखंड साधन सेवियों को को मैनुअली वितरण हेतु 1 दिन की खपत के अनुसार 60 दिन की खपत निकालकर सूची बनाने का निर्देश दिया गया. इस पत्र में कहा गया था कि सूची 21 जुलाई 2015 तक उपलब्ध करा दी जाए. साधन सेवियों द्वारा सूचित उपलब्ध कराए जाने के पश्चात 22 जुलाई से 30 जुलाई 2015 तक विद्यालयों में चावल का वितरण कर दिया गया. जबकि अन्य विद्यालयों में पहले से ही चावल मौजूद था.
मध्यान्ह भोजन के लिए सरकार के निर्देश के आलोक में लिया गया निर्णय, ताकि नहीं बंद हो बच्चों का भोजन:
मध्यान्ह भोजन नियमावली 2015 के अंतर्गत यह स्पष्ट निर्देशित किया गया है कि मध्यान भोजन किसी भी दिन किसी भी परिस्थिति में बंद नहीं होना चाहिए. अगर मध्यान्ह भोजन बंद होता है तो इसकी सारी जवाबदेही संबंधित पदाधिकारियों की होती है. इसी के तहत 2 माह का अतिरिक्त खाद्यान्न सदैव विद्यालयों में उपलब्ध रहता है. बक्सर जिले में डाटा इंट्री में गड़बड़ी होने के कारण सब कुछ गड़बड़ हो गया था. अब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बच्चों को भोजन नहीं मिल पाएगा. ऐसे में यह स्पष्ट निर्देश विभाग द्वारा दिया गया कि बक्सर जिले के कुल 113 विद्यालयों के लिए भारतीय खाद्य निगम से चावल निर्गत कराते हुए उन्हें शीघ्रातिशीघ्र खाद्यान्न मुहैया कराया जाए.
गलत रिपोर्ट के आधार पर बनाया गया है गबन का दोषी:
खाद्यान्न के मैनुअली वितरण में भी साधन सेवियों को खासी परेशानियां उठानी पड़ रही थी. ऐसे में मैनुअली सूची बनाने में भी सूची में कई जगह गड़बड़ियां हो गई. दरअसल जिस विद्यालय में चावल पहले से मौजूद था वहां चावल की कमी दिखा दी गई और जहां चावल नहीं था वहां चावल उपलब्ध दिखा दिया गया. साधन सेवी द्वारा अपने कर्तव्य निष्ठा का परिचय देते हुए सूची को दुरुस्त किया गया तत्पश्चात चावल का वितरण किया. यही नहीं, जाँच रिपोर्ट देते समय कम्प्यूटर में पहले से फीड गलत डाटा को भी आधार बनाया गया है.
लोक शिकायत में दर्ज हुआ गबन का मामला बनाई गई दो सदस्यीय जांच टीम:
सूत्र बताते हैं की आपसी विवाद के कारण कुछ लोगों ने मामले को गबन बताकर लोक शिकायत निवारण में इसकी शिकायत कर दी जिसके बाद दो सदस्यीय जांच टीम बनाकर मामले की जांच करने का आदेश दिया गया. इस दो सदस्यीय टीम में उप विकास आयुक्त एवं आपूर्ति पदाधिकारी शामिल थे इन दोनों के द्वारा डीपीओ से जब जानकारी मांगी गई तो डीपीओ ने आनन- फानन में टेबल ड्राफ्टिंग के आधार पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी. जिसे अधिकारियों द्वारा अग्रसारित कर दिया गया.
डीपीओ द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में साफ दिख रही है गड़बड़ी:
डीपीओ द्वारा मामले के किसी तरह निष्पादन करने अथवा किसी दुराग्रह से ग्रसित होकर से सौंपी गई. अंतिम रिपोर्ट में उन्होंने बताया है कि सूची में चार जगह ओवर राइटिंग की गई है. यह पहले से ही स्पष्ट है कि यह केवल पूर्व में हुए डाटा गड़बड़ी के कारण हुआ है. ऐसे में यह स्पष्ट हो गया कि डीपीओ ने केवल खानापूर्ति करते हुए जैसे तैसे जांच रिपोर्ट अग्रसारित कर दी है.
डीपीओ द्वारा दी गई रिपोर्ट पर नहीं है जांच दल के दोनों सदस्यों के हस्ताक्षर:
सूत्र बताते हैं कि प्रमंडलीय आयुक्त के यहां भेजे जाने से पूर्व डीपीओ द्वारा दी गई जांच रिपोर्ट से आपूर्ति पदाधिकारी असहमत थे. आपूर्ति पदाधिकारी ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाया था. हालांकि, प्रमंडलीय आयुक्त के यहां जांच रिपोर्ट भेजे जाने की जल्दी में उनकी बातों को दरकिनार कर दिया गया तथा बिना उनके हस्ताक्षर के ही रिपोर्ट भेज दी गयी.
डीपीओ ने स्वयं दिखाई है 155 किलो चावल की अनियमितता:
वर्ष 2015 के जुलाई माह में डीपीओ ने खाद्यान्न आवंटन की जो सूची जारी की है. उसमें उन्होंने स्पष्ट दिखाया है कि जिले में कहीं भी चावल के उठाव एवं वितरण में गड़बड़ी नहीं है. केवल इटाढ़ी में 155 किलो चावल ज्यादा उठा लेने की बात उस सूची में दी गई है. हालांकि, उस गड़बड़ी के कारणों की भी जांच की जा सकती है.
गलत रिपोर्ट के आधार पर हो गई कार्रवाई:
आनन-फानन में भेजी गई गलत रिपोर्ट के अवलोकन के पश्चात साधनसेवियों एवं तत्कालीन डीपीओ की गलती साफ जाहिर हो रही थी जिसके बाद प्रमंडलीय आयुक्त ने न्याय संगत फैसला सुनाते हुए दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की बात कहीं. हालांकि, सभी साधनसेवी इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुके हैं. बावजूद इसके घोटाले की चर्चा ने कहीं ना कहीं साधन सेवियों की बच्चों को भूखे ना रखने की मंशा के तहत किए गए कार्य को गलत ठहरा दिया है जो कि न सिर्फ सरकार के आदेश बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी सही नहीं है.
साधन सेवियों का है कहना जितना उठाया, उतना किया वितरण, डीपीओ की भूमिका पर उठाया सवाल:
साधन सेवियों का कहना है कि मैनुअली वितरण के दौरान भी जितने चावल का उठाव भारतीय खाद्य निगम से किया गया था उतना ही वितरण संबंधित विद्यालय में किया गया है. उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि जब डीपीओ को भी यह बात मालूम है तो आखिर क्यों उनके द्वारा यह बात छिपाते हुए कम्प्यूटर के गलत डाटा के आधार पर ही रिपोर्ट भेज दी गयी.
गड़बड़ी को लेकर वरीय पदाधिकारियों को भी साधन सेवियों ने नहीं दी लिखित सूचना:
कंप्यूटर में डाटा इंट्री में हुई गड़बड़ियों की सूचना साधन सेवियों ने वरीय पदाधिकारियों अथवा जिलाधिकारी को कभी भी लिखित रूप में नहीं दी थी. हालांकि, उनका कहना है कि उन्होंने गड़बड़ी की मौखिक जानकारी दी थी. वहीं तरफ 20 जुलाई 2015 को तत्कालीन डीपीओ ने मध्याह्न भोजन योजना के बिहार निदेशक को लिखित पत्र में डाटा में गड़बड़ी की बात बताते हुए मैनुअली आवंटन करने की बात तो कही थी. लेकिन उन्होंने निदेशक के निर्देश के किसी भी पत्र को प्राप्त किए बिना ही मैनुअली आवंटन का निर्देश दे दिया. हालांकि, उन्होंने बताया कि उन्होंने निदेशक से टेलीफोनिक वार्ता की थी.
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