बढ़ सकती है अश्विनी चौबे की मुश्किलें, अब न्यायालय की अवमानना का मामला ..
स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिविल सर्जन के माध्यम से इस तरह की जानकारी मांगी है तो वह निश्चित रूप से न्यायालय की अवमानना है. अधिवक्ता श्री वर्मा ने कहा कि कानून सबके लिए बराबर है तथा कानून को तोड़ना तथा उसका मजाक बनाना किसी राजनीतिक व्यक्तित्व को तो बिल्कुल ही शोभा नहीं देता
- वेलनेस सेंटर मामले को लेकर न्यायालय को लिखा गया है पत्र.
- पूर्व में भी न्यायालय पर टिप्पणी कर चुके हैं अश्विनी चौबे.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बक्सर से एनडीए प्रत्याशी अश्विनी चौबे के मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई है. अबकी बार मामला न्यायालय की अवमानना से जुड़ा हुआ है. दरअसल, पिछले वर्ष वेलनेस सेंटर के उद्घाटन के पश्चात चिकित्सकों की अनुपलब्धता को लेकर नगर की रहने वाली एक महिला किरण जायसवाल ने विधायक तथा सांसद के विरुद्ध न्यायालय में मामला दर्ज कराया था. जिसके बाद नगर थाना कांड संख्या 517/18 के माध्यम से मामला दर्ज हुआ था. किरण ने कहा था कि 24 घंटे चिकित्सकों की उपलब्धता का दावा खोखला साबित हो रहा है. मामला दर्ज होने के बाद जहां श्री चौबे ने जहाँ जमानत लेने से भी इंकार कर दिया था, वहीं उन्होंने न्यायालय पर भी सवाल उठाया था, आखिर न्यायालय इस तरह के मामलों को स्वीकार कैसे कर लेता है? बहरहाल, वह मामला अब काफी पुराना हो गया है. लेकिन एक बार फिर वह मामला चर्चा में आ गया है अब की बार चर्चा में आने का कारण कहीं ना कहीं पुनः अश्विनी चौबे ही है.
दरअसल, भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बक्सर के सिविल सर्जन को पत्र लिखकर उनसे उक्त मामले के संदर्भ में अद्यतन जानकारी मांगी गई है. इस पत्र का हवाला देते हुए सिविल सर्जन के द्वारा प्रभारी जिला एवं सत्र न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले में अद्यतन जानकारी देते हुए अभिप्रमाणित कॉपी देने का अनुरोध किया है. हालांकि, वह यह भूल गए कि न्यायालय स्वतंत्र संस्था है तथा अगर इस तरह का पत्राचार किया जाता है तो वह सीधे तौर पर न्यायालय की अवमानना है.
मामले में अधिवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार वर्मा का कहना है कि "किसी भी न्यायालय से कोई भी व्यक्ति पत्राचार करते हुए केस की अद्यतन जानकारी नहीं मांग सकता. किसी मामले की अभिप्रमाणित प्रति निकालने के लिए भी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर यानी सरकारी अधिवक्ता से ही जानकारी प्राप्त कर सकता है. इस प्रकार अगर श्री चौबे के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिविल सर्जन के माध्यम से इस तरह की जानकारी मांगी है तो वह निश्चित रूप से न्यायालय की अवमानना है. अधिवक्ता श्री वर्मा ने कहा कि कानून सबके लिए बराबर है तथा कानून को तोड़ना तथा उसका मजाक बनाना किसी राजनीतिक व्यक्तित्व को तो बिल्कुल ही शोभा नहीं देता. हालांकि, चौबे जी लगातार न्यायालय के विरुद्ध अशोभनीय टिप्पणी कर रहे हैं.
पहले उन्होंने जहां वेलनेस सेंटर वाले मामले के दर्ज होने के बाद पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि न्यायालय को यह देखना चाहिए कि किसके खिलाफ मुकदमा लाया गया है. हालांकि, इस दौरान वह भूल गए कि बड़े से बड़े राजनेता तथा हस्ती के विरुद्ध देश भर में कई मामले दर्ज होते रहते हैं. क्योंकि लोकतंत्र में यह विधिक अधिकार सबको मिला है.
दूसरी तरफ कुछ दिन पूर्व उन्होंने एक मामले में जमानत की शर्त नहीं पूरी करने पर न्यायालय द्वारा उन्हें दोबारा बुलाया जाने की खुन्नस निकालते हुए उन्होंने यह कहा कि न्यायालय में भ्रष्टाचार है. अगर श्री चौबे को ऐसा लगता है तो उन्हें इस मामले में न्यायालय में ही अपना पक्ष रखना चाहिए जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया. ऐसे में एक बात तो पूरी तरह से स्पष्ट है कि चौबे जी विधिक रुप से पूरी तरह निरक्षर है तथा उनके सलाहकार भी उन्हें सही जानकारी नहीं दे पाते." अधिवक्ता ने साफ तौर पर कहा कि इस तरह के मामले में न्यायालय के द्वारा अश्विनी चौबे के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई भी हो सकती है.
बहरहाल, पार्टी के आंतरिक कला से जूझ रहे अश्विनी चौबे के लिए इस तरह की बात किसी बुरी खबर से कम नहीं है.
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