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Buxar Top News: शुरू हो रही है पंचकोशी परिक्रमा, खटक रहा है व्यवस्थाओं का अभाव ..

अपनी शिक्षा स्थली बक्सर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने ऋषि मुनियों के आश्रम का परिभ्रमण कर उनका आशीर्वाद व ज्ञान  प्राप्त किया.

पंचकोशी परिक्रमा स्थलों पर है व्यवस्थाओं का आभाव.
आठ से शुरू हो रही है यात्रा.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: हमारा नगर बक्सर विश्व के लगभग किसी भी कोने में पहचान का मोहताज नहीं है. आज भी बक्सर को अगर जाना जाता है तो इसका कारण इसके पीछे खड़ी इसकी पौराणिक व धार्मिक तथा ऐतिहासिक विरासत हैं. बक्सर को मिनी काशी कहे जाने की कई वजहों में से एक वजह है यहाँ ऋषियों व महर्षियों का निवास व प्रभु श्रीराम चन्द्र का आना, माता अहिल्या का उद्धार करना तथा ताडका वध. 

अपनी शिक्षा स्थली बक्सर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने ऋषि मुनियों के आश्रम का परिभ्रमण कर उनका आशीर्वाद व ज्ञान  प्राप्त किया. अपनी शिक्षा पूरी हो जाने के बाद उन्होंने महर्षियों के पाँच आश्रमों की पंचकोशिय दूरियाँ तय कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था. यही वजह हैं कि बक्सर में भी पंचकोशिय यात्रा समारोह पूर्वक मनायी जाती हैं. हर वर्ष अगहन मास के पूर्णिमा के पाँचवे दिन से शुरू होकर यह यात्रा अहिरौली(गौतमाश्रम), नदाँव(नारदाश्रम), भभुअर (भार्गवाश्रम), नुआव (उन्ववाश्रम) व चरित्रवन(विश्वामित्र आश्रम) तक की जाती है.

वर्तमान में भी प्रत्येक दिन एक नया पड़ाव,एक नयी सोच को दर्शाता हैं. यह यात्रा परंतु आज महज पकवान तक सीमित रह गयी है. मर्यादा पुरुषोत्तम की यह यात्रा कुछ आदर्शो को भी दिखाती है जिन्हें बचाए रखन आज के परिवेश में अति आवशयक है. पंचकोशी परिक्रमा में  अहिरौली में पकवान (पूआ-पूड़ी/ पका भोजन), नदाँव में सत्तू मूली (कच्चा भोजन), भभुअर में दही चूडा,  नुआव में खिचड़ी व अंतिम दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा खाने की परम्परा है. ऐसा माना जाता है कि जब श्रीराम महर्षियों का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पर गए थे तो उन्होंने यही भोजन खिला कर उनका स्वागत किया था.

बहरहाल, आज इतनी पौराणिक महता, आस्था,विश्वास के बावजूद भी ये सभी स्थल साल में महज एक दिन लोगों को याद आते हैं. जबकि इस परिपथ का विकास जिले में विकास व पर्यटन की गति को तेज करेगा. परन्तु वर्तमान में इन स्थानों पर जाने के लिए न तो जाने के व्यवस्थित सडके हैं न साधन. हर गाँवो में मेले के नाम पर ठेकेदारी दी जाती हैं,वसूली होती हैं पर व्यवस्था के नाम पर मिलता कुछ नहीं.

नदाँव में नारद ऋषि का तो ऐसा हाल हैं कि न तो स्थल पर पहुँचने के लिए सड़क है और न ही व्यवस्थित परिसर. और तो और यहाँ अवैध कब्जा व अतिक्रमण देखने को मिलता है.  मेले के बाद यहाँ कचरे के अम्बार तथा जन प्रतिनिधियों के झूठे वादों के अलावा जनता को कुछ और स्थानीय जनता को नहीं मिलता है. इस व्यवस्था को देखने के बाद यही लगता है दूर से आये श्रद्धालु भी यही समझते होंगे कि मानों महर्षि नारद भी इस लोक को छोड़ कर चले जा चुके हैं.

अमूमन यही हाल पंचकोशी परिक्रमा के सभी पड़ावों का है . अब जबकि आगामी आठ नवम्बर से पंचकोशी परिक्रमा शुरू हो रही है ऐसे में पुनः लोगों के जेहन में व्यवस्थाओं का आभाव खटक रहा है...

"बाकि माई बिसरी चाहें बाबू बिसरी।
पंचकोशिया के लिट्टी चोखा नाही बिसरी।।"


 














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