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Buxar Top News: बक्सर में रोना है 'जंतर मंतर' का !



ज़िला मुख्यालय में में भी देश की राजधानी की तरह एक जंतर मंतर की आवश्यकता है. अपने लेख के माध्यम से अपनी बात रख रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र ओझा.

- जनता को अभिव्यक्ति की आज़ादी में बाधा बना आयोजन स्थल की कमी.
- शुक्रवार को समाहरणालय गेट पर एसडीएम को करनी पड़ी मशक्कत.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बक्सर ज़िला मुख्यालय में धरना प्रदर्शन या नुक्कड़ नाटक, या कोई आंदोलन करने की जगह की क़िल्लत हैं. 40 साल से मुनीब चौक स्थित शाहिद भगत सिंह स्थल पर धरना प्रदर्शन होता रहता था लेकिन ज़िला बनते प्रशासन ने गोल पोस्ट ही बदल दिया. पहले प्रशासन, थाना, कचहरी परिसर सब एक साथ मुनीब चौक पर थे. नुक्कड़ सभा मुनीब चौक पर तो सभा श्रीचंद मंदिर पर हुआ करती थी, लेकिन ज़िला बनते ही पशु अस्पताल परिसर में कलक्टर का कार्यालय हो गया औऱ कचहरी भी वहीं शिफ्ट हो गयी. नतीजा हुआ कि धरना प्रदर्शन स्थल हो गया कलक्टर का गेट. वहां भी जहाँ एक ओर उपभोक्ता संरक्षण का न्यायालय है तो दूसरी ओर कचहरी परिसर और पीछे खड़े साक्षात बजरंगबली!

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर धरना प्रदर्शन इस शहर में कहाँ पर हो?
पहले प्रणव चटर्जी, रामसुभग सिंह, बद्री सिंह बागी, राज मोहन शुक्ल ज्योति प्रकाश, तेज नारायण सिंह जैसे नेता भगत सिंह की मूर्ति के पास (पहले जबकि मूर्ति नही थी) प्रशासन की ईंट से ईंट बजाने पुलिस- सामंती-गुंडा गठजोड़ को तोड़ने का आह्वान करते रहते थे. लाउडस्पीकर एक ओर अनुमंडलाधिकारी की ओर तो दूसरी ओर नगर थाना की ओर राज्य सत्ता से अपनी बात कह लेते थे.
समाहरणालय का गेट पर प्रदर्शन वैसे भी गैर कानूनी है और किसीको इसकी इजाजत भी मांगने पर नहीं मिल पाती है.बानगी के तौर पर कल वामदलों का महंगाई एव अन्य मुद्दों पर समाहरणालय के गेट पर दो बजे अपराह्न प्रदर्शन था।नतीजा हुआ कि सड़क जाम लगा डी ए वी और फाउंडेशन स्कूल की बसों के कारण कचहरी गेट पर ही जाम लग गया. समाहरणालय के गेट पर वाम दलों के नेता बता रहे थे कि ज़िले में आर्सेनिक युक्त पानी पीने के लिये है,भूमि सुधार खटाई में है, जनवितरण दुकानों से राशन गोल है आदि. बाद में अनुमंडलाधिकारी गौतम कुमार स्वंय प्रदर्शन कर रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को गेट से बाहर किये, लेकिन यह खबर अखबारों औऱ सोशल मीडिया से दूर है. लेकिन ख़बर यह थी कि एस डी ओ स्वयं पैदल चलकर कल प्रदर्शनकारियों का एक तरह से नेतृत्व करते हुए जाम हटाया था.
इस शहर में कोई अपना जंतर मंतर नहीं होने से नागरिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन के लिए कोई सरजमीं नहीं हैं. स्वयं प्रशासन को भी अपना कोई कार्य नगर भवन में करना पड़ता हैं.
बहरहाल इस शहर के लोगों को भी अपनी अभिव्यक्ति को आज़ाद ढंग से रखने के लिए एक जंतर-मंतर की नितांत आवश्यकता महसूस हो रही है.














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