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Buxar Top News: वीडियो: बक्सर में लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी ..

शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए. इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को  त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है. इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं
देखिए वीडियो:

- उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुण्य के भागी बने श्रद्धालु.

- स्नान के बाद किया दीप दान.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर बक्सर के रामरेखा घाट समेत विभिन्न घाटों पर आस्था और श्रद्धा का नजारा दिखा. लाखों की संख्या में श्रद्धालु घाटों पर उत्तरायणी गंगा में स्नान के लिए पहुंचे. कार्तिक महीने की पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. आज के दिन पुण्य प्राप्ति के लिए लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं. साथ ही मां गंगा की पूजा-अर्चना भी करते हैं. स्नान के बाद भक्तों ने बहती गंगा में दीप दान भी किया. दूसरी तरफ नगर में भीड़भाड़ को देखते हुए ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. नगर का स्टेशन रोड जाम से कराह रहा है. हालांकि, विधि व्यवस्था को लेकर प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद है.

मिनी काशी बक्सर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही सबने गंगा में डुबकी लगाना शुरू कर दिया. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गंगा स्नान से पुण्य प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा विशेष फल देने वाली होती है. आज के दिन जो भी भक्त सच्चे मन और विश्वास के साथ गंगा में डुबकी लगाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं. काशी में इस त्योहार का खासा महत्व है। स्कंद पुराण की मानें तो आज के दिन स्वर्ग से देवतागण धरती पर आते हैं, इसीलिए भोले नाथ की नगरी में गंगा में स्नान और पूजन करने से शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मोक्ष की मिलता है.


कार्तिक पूर्णिमा का महत्व


कार्तिक पूर्णिमा का महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों और बहुत ज्यादा है. विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था. प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे. भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था. इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ.



शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए. इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को  त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है. इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं.
























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