सिंदूरदान की रस्म के साथ सिया के पिया हुए श्रीराम ..
वैदिक मंत्रोचार के बीच पारंपरिक तरीकों से हुआ श्रीराम-जानकी का विवाह
-मंगल गीतों के बीच पूरी रात चली शादी की रस्मअदायगी
-जनक दुलारियों के साथ परिणय सूत्र में बंधे भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: 49 वें सिय-पिय मिलन महोत्सव के दौरान नया बाजार स्थित विवाह महोत्सव स्थल के भव्य मंडप में गुरूवार की रात मिथिलेश दुलारी जानकी के साथ मंडप में फेरे लेकर श्रीराम सिया के पिया हो गए. जबकि अग्नि की साक्षी ले श्रीराम के अनुज भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न भी महाराज जनक की अन्य कन्याओं के साथ परिणय सूत्र में बंध गए. इसको लेकर महाराज दशरथ की अगुवाई में द्वारपूजा की रस्म अदायगी की गई, फिर उनकी सहमति से संस्कार गीतों के बीच वैदिक रीति व मिथिला की लोक परंपरा के अनुसार उन सभी रस्मों को पूरा कराते हुए हास-परिहास के बीच विवाह संपन्न हुआ.
विवाह लीला के दौरान सबसे पहले द्वारपूजा की रस्म पूरी होती है. इसके लिए महाराज दशरथ के साथ देवलोक से पहुंचे देवराज इंद्र तथा त्रिदेव व देवर्षि नारद आदि ऋषि-मुनि अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर जनवासे से महाराज जनक के दरवाजे तक पहुंचते हैं. जिनके साथ बैंड बाजे के बीच चार घोड़ों पर सवार चारों दूल्हे जाते हैं. जहां महाराज जनक द्वारा मंगल गीतों के बीच वैदिक मंत्रों के वाचन के साथ द्वारपूजा की रस्म अदायगी संपन्न होती है. जिसके बाद बारातियों संग चारों दूल्हे जनवासे में लौट जाते हैं.
धुरक्षक की रस्म:
माथे पर कलश लेकर मिथिलानियां जनवासे जाकर धुरक्षक की विधि पूरा करते हुए समधी से दूल्हों को मंडप भेजने की गुजारिश करती हैं. इस बार पालकी से राजा जनक के द्वार पर पहुंचे श्रीराम समेत चारो भाइयों के परिछावन आदि का रस्म पूरा किया जाता है. जिसके बाद वे चारों दूल्हों को पालकी से उतार कर मंडप में ले जाती हैं.
धान कुटाई व लावा मिलाने के साथ सखियों की ठिठोली:
जनक दुलारी जानकी व अन्य बहनों से नहछू-नहावन की रस्म अदायगी कराई गई. फिर धान कुटाई व लावा मिलाने की विधि संपन्न होती है. इन लोक विधियों के बीच दूल्हा सरकारों से सखियों द्वारा हंसी-ठिठोली कर पूरा आनंद लिया जाता है. इस दौरान सखियां मंगल गालियां गाती हुई राघव समेत चारों भाइयों की बोलती बंद कर देती हैं.
सिंदूरदान की रस्म:
विवाह की अन्य सारी रस्मों के पूरा होने के बाद सिंदूरदान की रस्म अदायगी होती है. जिसमें विद्वान पंडितों द्वारा वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच श्रीराम व माता जानकी अग्नि के सात फेरे लेते हैं और तब श्रीराम माता जानकी की मांग में सिंदूर डालते हैं. जिसकी खुशी में दर्शक तालियां बजाकर पुष्प वर्षा करते हुए श्रीराम को सिया के पिया होने पर मुहर लगाते हैं. इस रस्म के दौरान पारंपरिक रूप से गाए जाने वाले गीतों से वातावरण बेहद भावपूर्ण हो जाता है. वहां मौजूद हर किसी को यही अहसास हो रहा था मानों स्वयं उन्हीं की बेटी की शादी हो रही हो. मौके पर मौजूद अधिकांश लोगों की आंखें इस दृश्य को देख बरबस ही भर आयी थी. यही वह दृश्य था जिसे देखने के लिए वहां जुटे लोग कई दिनों से व्यकुल थे ओर देश के कोने-कोने से पधारे थे.
महंत राजाराम ने किया भक्तमाली परंपरा का निर्वहन:
इस लीला में श्रीनारायणदास जी भक्तमाली उर्फ मामाजी की संतई परंपरा का निर्वहन करते हुए आश्रम के महंत राजाराम शरण दास जी महाराज ने भी लीला के दौरान पूरी तरह से निर्वहन कर दिखाया है. नौ दिनों तक संचालित रामलीला के अंतर्गत राजाराम बाबा ने परंपरा के अनुसार ही कई किरदारों की भूमिका निभाई.
विवाह के साक्षी बने आइजी परेश सक्सेना:
श्री सीताराम विवाह के दिव्य लीला की साक्षी बनने पुलिस महानिरीक्षक होमगार्ड और अग्निशमन सेवा डॉ.परेश सक्सेना भी पहुंचे. वहीं, देश के कई पावन धामों से संत भी आए हुए थे. इस महामहोत्सव में भाग लेने के लिए मथुरा, वृन्दावन, अयोघ्या, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों से पधारे साधु संतों के साथ ही पूज्य श्री मामा जी के हजारों शिष्य जब तक विवाह लीला संपन्न नहीं हो गई तब तक आयोजन स्थल पर डटे रहे.
सखियों ने श्रीराम और भाइयों को खूब छकाया:
श्री सीताराम विवाह महोत्सव समिति के तत्वावधान में नया बाजार में आयोजित 49वां सिय-पिय मिलन महोत्सव गुरुवार को कोहबर व राम कलेवा की रस्म अदायगी के साथ संपन्न हो गया. इससे पहले मां जानकी की सखियां भगवान श्रीराम समेत चारों भाइयों को परंपरागत रिवाज पूरी करते हुए हंसी व ठिठोली कर खूब छकाती हैं. वे कोहबर में प्रवेश के लिए द्वार पर खड़े थे, लेकिन मिथिलानियां उन्हें रोके रखी थी. ऐसे में अंदर जायें तो कैसे? फिर सखियों ने शर्त रखी एक सखी उनकी बहन की ही मांग कर डाली. इस शर्त को पूरा करने में श्रीराम उलझे ही थे कि दूसरी सखी ने तपाक से कहा कि अपनी प्यारी बहन से जनकपुर के युवकों की शादी करवा दीजिए. इस दौरान सखियों ने चारों भाईयों से हाथों में चुन्नी ओढ़ाई थाल लिए कुल देवता की पूजा करने को कहा. जिस पर श्रीराम व भ्राता लक्षमण तो यह कह कर निकल गए कि हमारे कुल देवता तो अयोध्या में हैं यहां कहां से आ गए. जबकि अनुज भरत ने शीश झुका कर थाल को नमन् किया. जिसका विरोध करते भ्राता लक्षमण ने सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि मुझे भी पता था कि इसमें माता सीता के चरण पादुका हैं. परन्तु, जिस प्रकार भ्राता राम की मैं पूजा करता हूं उसी प्रकार मेरे लिए माता सीता भी हैं. इस प्रकार भरत द्वारा चरण पादुका पूजन के बाद सखियों ने चारों भाईयों को कोहबर में जाने की अनुमति दी. इस दौरान सखियां हंसी ठिठोली के क्रम में उनके पिता व माता को भी नहीं छोड़ा. उनके नाम पर भी व्यंग्य बाण चलाकर लीला को रसमय बनाया गया. जिस अथाह प्रेम के सागर में भगवान श्रीराम उलझते व डूबते रहे. आखिर में सखियों ने अंदर जाने के लिये रास्ता देकर कोहबर की रस्म को पूरा कराया. इस दौरान प्रभु श्रीराम को माता जानकी के दुल्हा के रूप में कोहबर में मौजूद देख पूरी मिथिला नगरी धन्य हो जाती है. प्रस्तुत प्रसंग बड़े ही भावपूर्ण अंदाज में वृंदावन के कलाकारों के साथ आश्रम के परिकरों व महंत राजाराम शरण दास के द्वारा मंचन किया गया जिसे देख वहां मौजूद हजारों दर्शक झूम उठे.
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