न्यायालय में अब नहीं "तारीख पर तारीख", निश्चित समयावधि में मिलेगा न्याय ..
न्यायालयों में मुकदमों के बढ़ते मामलों ने उच्चतम न्यायालय की चिंता बढ़ा दी है. जिसके कारण न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए देशभर के सभी न्यायालयों को मामलों के निष्पादन में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं.
- अधिवक्ता संघ ने भी किया स्वागत, कहा-बढ़ेगी जनसामान्य की आस्था.
- प्रतिवर्ष दर्ज वादा तथा निष्पादित मामलों के अनुपात में है भारी अंतर.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: ".. तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख .." हिंदी फिल्म का यह डायलॉग आपको अवश्य याद होगा. न्यायालय में लंबित मुकदमों को लेकर लगभग यही बात हर व्यक्ति के जेहन में होती है. न्यायालयों में मुकदमों के बढ़ते मामलों ने उच्चतम न्यायालय की चिंता बढ़ा दी है. जिसके कारण न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए देशभर के सभी न्यायालयों को मामलों के निष्पादन में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है कि 15 वर्ष तथा उससे अधिक समय के लंबित मामलों को प्राथमिकता के तौर पर 3 माह के भीतर निष्पादित कर दिया जाए. वहीं न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है के 10 वर्षों तक के मामलों को 6 माह के भीतर अवश्य निष्पादित कर दिया जाए. न्यायिक सूत्रों की माने तो न्यायालय का मानना है कि मामले लंबित होने के कारण न्यायालय में अभिलेखों का अंबार लगता जा रहा है. जिनके रखरखाव को लेकर न्यायालय को अतिरिक्त कर्मी लगाने पड़ते हैं. यही नहीं लंबित मामलों के कारण लोगों में न्याय के प्रति असंतोष बढ़ जाता है. ऐसे में उच्चतम न्यायालय के इस कदम से त्वरित न्याय का सपना पूरा होगा.
3 हज़ार वाद प्रति वर्ष होते हैं दाखिल, 12 सौ का हो पाता है निष्पादन:
सुप्रीम कोर्ट की एरियर कमेटी की बैठक में यह पाया गया कि गवाहों की अनुपस्थिति समेत विभिन्न कारणों से न्यायालय में लंबित वादों की संख्या बढ़ गई है. व्यवहार न्यायालय के सूत्रों से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक न्यायालय में प्रतिवर्ष 3 हज़ार वाद आते हैं, वहीं तकरीबन 12 सौ मामलों का ही निष्पादन प्रतिवर्ष हो पाता है. निष्पादित मामलों में पूर्व के भी मामले शामिल होते हैं.
नहीं पहुंचेंगे सरकारी गवाह तो डीएम-एसपी की होगी जवाबदेही:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि निष्पादित वालों की संख्या प्रतिवर्ष लाए गए वादों की संख्या के बराबर ही हो जाए यह सुनिश्चित किया जाए. न्यायालय ने विभिन्न मामलों में सरकारी गवाहों को ससमय हाजिर कराने के लिए जिलाधिकारी तथा आरक्षी अधीक्षक को भी निर्देश दिया है. न्यायालय का कहना है कि अगर सरकारी गवाहों के कारण हुई देरी से वाद लंबित है तो इसकी सारी जवाबदेही जिले के दोनों वरीय पदाधिकारियों की होगी.
अधिवक्ता संघ के महासचिव गणेश ठाकुर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश स्वागत योग्य है तथा इससे जहां न्यायालय में लंबित वादों के निष्पादन में तेजी आएगी, वहीं न्यायालय के प्रति जनसामान्य की आस्था भी बढ़ेगी.
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