वीडियो: देश भक्ति की नज़्मों से गुलजार रही "एक शाम शहीदों के नाम .."
शहीदों की ज़मीं है जिसको हिंदुस्तान कहते हैं. ये बंजर होके भी बुज़दिल कभी पैदा नहीं करती शायरों ने संदेश देना चाहा कि हमारे देश के जवानों ने जो कुर्बानियां दी है. वह किसी जाति या धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि अपने देश के लिए दिया है
- पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित हुआ कार्यक्रम.
- मुशायरा तथा कवि सम्मेलन में दिखी देश भक्ति के झलक.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: " वतन की आन लिख देना, वतन की शान लिख देना, ना हिन्दू और ना मुस्लिम फ़क़त इंसान लिख देना. ओ लिखने वालों तुमसे बस इतनी गुज़ारिश है, मुझे लिखना कभी तो सिर्फ हिंदुस्तान लिख देना."
प्रसिद्ध गज़लकार मो. शादाब ने जब मंच से यह नज़्म सुनाई तो सारा जनमानस भारत माता की जय-जयकार से गूँज उठा. मौका था एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम के तहत मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का. जिसका आयोजन इंडियन हेल्थ ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त संस्था साबित खिदमत फाउंडेशन द्वारा गुरुवार शाम 7:30 बजे से किया गया था. कार्यक्रम का उद्घाटन अवकाश प्राप्त न्यायाधीश यू.पी. सिंह ने फीता काटकर किया. कार्यक्रम में शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे. जिनमें रेड क्रॉस सोसायटी के वाइस चेयरमैन डॉ. शशांक शेखर, नंद कुमार तिवारी, डॉ.सीएम सिंह, रेड क्रॉस सोसायटी के सचिव डॉ. श्रवण कुमार तिवारी, कस्तूरबा हेल्थ इंस्टिट्यूट के डॉ. एस. एम. एम. आजाद, नगर परिषद की पूर्व चेयरमैन मीना सिंह, राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता रामाशंकर कुशवाहा, कौमी एकता दल के युवा नेता रिंकू यादव समेत अन्य कई लोग मौजूद रहे .
इसके पूर्व "हर नजर बदहवास है, आजा शाम से दिल उदास है, आजा याद आई तो यह हुआ महसूस तू कहीं आसपास है.. गज़ल से मुशायरे का आगाज हुआ. इसके बाद देश भक्ति के जज्बे और शहीदों की शहादतों को सलाम करते हुए शृंगार रस में डुबोकर गज़लों शायरी में श्रोताओं को सरोबार करते हुए आधी रात तक परवान चढ़ा रहा. इस दौरान मुख्य अतिथि से लोगों का परिचय करवाते हुए विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा काम करने वाले लोगों को सम्मान स्वरूप लोगों को मेडल, मोमेंटो एवं गुलदस्ता देकर सम्मानित उनके हाथों एवं मौजूद अतिथियों तथा साबित खिदमत फाउंडेशन के निदेशक डॉ. दिलशाद आलम द्वारा किया गया.
वहीं मशहूर उद्घोषक तथा समाजसेवी साबित रोहतासवी ने अपनी बुलंद आवाज में मंच संचालन कर जबरदस्त समा बांधा. इस दौरान उन्होंने देश भक्ति की कई नज़्में लोगों को सुनाई. लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन किया.
उन्होने कहा मुशायरे के शायर होने के लिए सिर्फ़ शायरी ही ज़रूरी नहीं रही, पढ़ने का अंदाज़, आवाज़, अदायगी, माहौल और फिर शायर की अपनी शख़्सियत भी अहम है, जबकि अच्छी शायरी को इनमें से किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं. शहीदों की ज़मीं है जिसको हिंदुस्तान कहते हैं. ये बंजर होके भी बुज़दिल कभी पैदा नहीं करती शायरों ने संदेश देना चाहा कि हमारे देश के जवानों ने जो कुर्बानियां दी है. वह किसी जाति या धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि अपने देश के लिए दिया है. देश सभी का है और हम सभी को आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए.
बक्सर टॉप न्यूज़ के लिए आई. के तिवारी की रिपोर्ट.
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