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किसी भी परिस्थिति में नहीं करें धर्म का त्याग- जीयर स्वामी ..

उन्होंने कहा कि यह मानव जीवन सिर्फ खाने-पीने सुतने व संतान प्राप्ति के लिए नहीं हुआ है. हम सब सिर्फ इसी के लिए संसार में नहीं आए हैं. मानव जीवन अच्छे कर्म करने के लिए मिला है. जिसके माध्यम से मनुष्य अनंत ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है

- स्वामी जी महाराज ने कहा, व्यर्थ में ना गंवाए जीवन.

- ज्ञान यज्ञ का हुआ समापन, भव्य भंडारे का हुआ आयोजन.


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर:  श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि सन्यास का मतलब सिर्फ गेरुआ वस्त्र धारण करना दाढ़ी बाल बड़ा कर लेना तथा कमंडल धारण कर लेना मात्र नहीं है. सन्यास का सही अर्थ कामनाओं का त्याग कर अपने कर्मों को करना ही असली सन्यास है. उन्होंने कहा कि यह मानव जीवन सिर्फ खाने-पीने सुतने व संतान प्राप्ति के लिए नहीं हुआ है. हम सब सिर्फ इसी के लिए संसार में नहीं आए हैं. मानव जीवन अच्छे कर्म करने के लिए मिला है. जिसके माध्यम से मनुष्य अनंत ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है. किसी भी हाल में भयभीत नहीं होना चाहिए. इसलिए कि जो लिखा हुआ है वही होगा और जो नहीं लिखा हुआ है वह कभी नहीं होगा. इसलिए बेकार में भय नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि नीति के साथ साथ नैतिकता भी रहना बहुत जरूरी है. अगर नीति हो और नैतिकता नहीं हो तो वह पतन का कारण बन जाता है.

 महापुरुषों ऋषि-मुनियों का हमेशा आदर करना चाहिए. उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए. किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए. विषम परिस्थिति में भी धर्म का पालन करना चाहिए. जो महापुरुषों द्वारा बनाए हुए नियमों पर चलते हैं उनका हर जगह हर क्षेत्र में विकास होता है. और जो इसका अनादर करते हैं उनका नाश होना निश्चित होता है. संवाद से समझौता होता है आनंद होता है सुख की प्राप्ति होती है. तथा दुराग्रह से नाश होता है. धन संपत्ति के साथ साथ विवेक नहीं हो तो वह संपत्ति विनाश का कारण बन जाता है. धन संपत्ति को ज्यादा से ज्यादा अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए. अगर पुत्र है तो पुत्र को संस्कारी बनाना चाहिए.
स्वामी जी महाराज ने कहा कि जीवात्मा व परमात्मा में कोई दोष नहीं है. जितना पवित्र परमात्मा हैं उतनी हीं पवित्र जीवात्मा है. जिस प्रकार सोना से बना आभूषण सोना हीं कहा जाता है. उसी तरह से जीवात्मा परमात्मा की अंश से ही प्रकट हुआ है. जिस तरह से बिना मिलावट के आभूषण ठीक नहीं होता है. उसी तरह से जीवात्मा में प्रकृति, माया समेत परमात्मा के अन्य तत्वों की मिलावट कर दिया जाता है. जिसके कारण परमात्मा के मित्र होकर भी आनन्द, सुख व शांति को प्राप्त नहीं कर पाते हैं. जबतक परमात्मा इस जीवात्मा में मौजूद रहते हैं तभी तक पीड़ा, परेशानी के बाद भी जीवात्मा से बाहर कोई तत्व बाहर नहीं निकलता है. जीवात्मा व परमात्मा एक साथ रहते हैं. लेकिन विषय की सामग्री को अकेले जीवात्मा ग्रहण करता है तो उस दोष का फल जीवात्मा को हीं अकेले चखना पड़ता है.

मीडिया प्रभारी अखिलेश बाबा ने बताया कि गुरूवार को अंतिम प्रवचन था. अतः समिति के लोगों द्वारा भव्य भंडारे का आयोजन किया गया. जिसमें शामिल होने के लिए सुबह से ही आसपास के गांव के काफी संख्या में महिला व पुरुष ने हिस्सा लिया. जिसमें आसपास के हजारों लोगों ने आकर प्रसाद ग्रहण किया. तथा स्वामी जी के प्रवचन का आनंद लिया.











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