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भगवान विष्णु ने दूर किया नारद मुनि का अहंकार ..

वहां दिव्य स्थान देख कर भगवान का भजन करने के लिए बैठ जाते हैं और समाधि रत हो जाते हैं. उनकी तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल उठता है. उनकी तपस्या भंग करने के लिए वह कामदेव को भेजते हैं. कामदेव अपनी सारी कलाएं दिखाते हैं. 
रामलीला का दृश्य

- रामलीला में नारद मोह लीला तथा कृष्ण लीला में पूतना वध का हुआ मंचन
- माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान भोलेशंकर ने सुनाई रामकथा.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: भगवान भोलेनाथ को मां पार्वती कैलाश पर विराजमान हैं. माता पार्वती भगवान से राम कथा सुनाने को कहती हैं. भोलेनाथ मां पार्वती के लिए संपूर्ण कथा सुनाते हैं. बीच में नारद जी की कथा आ जाती है कि, नारद जी को अभिमान हो जाता है. इसी बात पर पार्वती जी पूछती हैं कि, नारद जी तो बड़े ज्ञानी थे. उनको अभिमान कैसे हो गया? तो भोलेनाथ विस्तार से कथा सुनाते हैं.

रामलीला समिति के तत्वाधान में रामलीला के क्रम में मंगलवार को तीसरे दिन वृंदावन की सुप्रसिद्ध लीला मंडली गोविंद-गोपाल लीला संस्थान के स्वामी कन्हैया लाल शर्मा व विष्णु कुमार दत्तात्रेय के सफल निर्देशन में रामलीला का आयोजन किया गया. जिसमें "नारद मोह लीला" का मंचन किया गया.

पार्वती जी को विस्तार से कथा सुनाते हुए भगवान भोले शंकर बताते हैं कि, एक बार भ्रमण करते हुए नारद जी हिमालय की तराई में पहुंच जाते हैं. वहां दिव्य स्थान देख कर भगवान का भजन करने के लिए बैठ जाते हैं और समाधि रत हो जाते हैं. उनकी तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल उठता है. उनकी तपस्या भंग करने के लिए वह कामदेव को भेजते हैं. कामदेव अपनी सारी कलाएं दिखाते हैं. अप्सराओं का नृत्य गान होता है. फिर भी नारद जी के ऊपर कोई असर नहीं पड़ता. अंत में हार कर कामदेव नारद जी की शरण में आ जाते हैं और नारद जी से क्षमा मांगते हैं. नारद जी उन्हें क्षमा कर देते हैं.

नारद जी को कामदेव पर जीत का अभिमान हो जाता है. वह इस बात को ब्रह्मा जी, भोलेनाथ तथा भगवान विष्णु को बताते हैं. विष्णु भगवान सोचते हैं कि, नारद जी को अभिमान हो गया है. नारद जी के अभिमान को दूर करने के लिए नारायण एक सुंदर नगर की रचना करते हैं और उसमें विश्व मोहिनी की रचना कर देते हैं. उस नगर में पहुंचकर नारद जी विश्व मोहनी पर मोहित हो जाते हैं और विश्व मोहनी से विवाह करने के लिए भगवान विष्णु से सुंदर रूप मांगते हैं. भगवान विष्णु नारद जी को बंदर का रूप प्रदान करते हैं. उनके बंदर रूप को देख सब लोग नारद का उपहास करते हैं. नारद जी क्रोध में आकर नारायण को श्राप देते हैं कि, जिसके लिए मैं आज रो रहा हूं उसी स्त्री के लिए तुम भी एक दिन तड़पोगे और उस दुखद घड़ी में तुम्हारी मदद एक बंदर ही करेगा.

नंद के आनंद के बीच हुआ पूतना का आगमन:

इसके पूर्व दिन की लीला के दौरान नंद महोत्सव पूतना वध का मंचन किया गया जिसमें दिखाया गया कि कम स्कोर जब यह मालूम हुआ कि, मेरा काल ब्रज में प्रकट हो गया तो वह अपनी बहन पूतना को दरबार में बुलाता है और काल को मारने के लिए भेजता है. इधर भगवान कृष्ण जब गोकुल में पहुंच जाते हैं तो बृजवासी नंद बाबा और मां यशोदा को बधाइयां देते रहते हैं. इधर कंस की भेजी हुई पूतना ब्रज में सुंदर रूप बनाकर आती है और भगवान कृष्ण के यहां यशोदा की बहन बन पहुंच जाती है मौका देखकर उतना भगवान कृष्ण को अपने गोद में उठा लेती है. तथा उन्हें दूध पिलाती हैं. भगवान कृष्ण दूध के साथ पूतना के प्राणों को भी खींच लेते हैं और उसे वहीं समाप्त कर देते हैं. उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु भावविभोर हो जाते हैं.














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